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________________ २६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : प्रथम खण्ड .... . ................................................................... नहीं । सांप को देखते ही वे वापस अन्दर लौट गये। हुए। वे परीक्षा में खरे उतरे । घटना को सुनते ही मुझे ध्यानमग्न हो गये। लोगस्स मन्त्र का उच्चारण करने कवि की निम्न पंक्तियाँ स्मरण हो आई - लगे । लगभग पूरे एक घण्टे तक आपने जाप किया होगा। टपकाते हैं राल भेड़िये खाने को मुंह बाये हैं, फिर बाहर आये। देखा तो साँप बिल्कुल शान्त अवस्था घोर नाद करते है नाले नद विस्तार बढ़ाए हैं । में था। थोड़ी देर बाद आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दरबाई पर साहसी पथिक निर्भय हो अपने पथ पर जाता है। सुराणा बाहर से लौटी । आपने संकेत किया मार्ग में देख श्री सुराणाजी निर्भीक होकर के साधना पथ पर एक कर चलना चाहिए। श्रीमती सुन्दरबाईजी ने चारों ओर विमल एवं स्थिर प्रज्ञा वाले पुरुष की तरह बढ़ते रहे हैं । देखा परन्तु सर्प उन्हें दिखाई ही नहीं दिया। कहीं अदृश्य हो गया। यह सब श्री सुराणाजी की तपस्या, साधना और उपासक अवस्था में कामदेव श्रावक की कहानी भी मन्त्रोच्चारण का ही प्रतिफल है। कुछ ऐसी ही है । सामुद्रिक यात्रा के दौरान नौका में बैठे हुए कामदेव के साथ भी ऐसा ही कुछ घटित हुआ। इस ऐसे उपसर्ग श्री सुराणाजी की साधना में कई बार धर्म-नाव को छोड़ने की धमकी दैत्य ने दी। दैत्य ने कहाआये हैं पर वे कभी अधीर नहीं हुए। महान् पुरुष जो इस नाव को छोड़ दो वरना तुम्हीं क्या तुम्हारे साथ होते हैं वे न तो अनुकूल परिस्थिति में इतराते हैं और न सैकड़ों व्यक्ति मारे जायेंगे। उसके बीभत्स रूप और हृदयही प्रतिकूल परिस्थिति में घबराते हैं । विदारक ललकार को सुनकर नौका में बैठे सारे यात्री ७. दैत्याकार प्राणी का उपसर्ग काँप उठे । जीवन का भय उन्हें खाये जा रहा था । स्वजनअर्द्ध रात्रि का नीरव समय । सामायिक पट्ट पर परिजन एवं दोस्तों ने प्राणों की भीख मांगी-आयुष्मान आसीन काका साहब धर्म जागरण की लौ प्रज्वलित कर कामदेव ! कुछ समय के लिए धर्म को तिलांजलि दे दो। रहे थे। उसे बुझाने उठा एक भयंकर तूफान, दैत्याकार जिन्दे रहे तो धर्म और कर सकेंगे। ऐसा धर्म क्या काम एक भीमकाय प्राणी, लपलपाती लम्बी जीभ, लम्बे-लम्बे का जो जीवन को ही ले ले। नुकीले दांत, डरावनी आँखें, रूप इतना बीभत्स कि देखें डूबती-तैरती नाव तूफान में लड़खड़ा रही थी। तो कलेजा बैठ जाय । आते ही उस दैत्य ने सुराणाजी को कामदेव ने कहा-आप विचलित नहीं होइये । धर्म में ललकारा-अरे ! सामायिक छोड़ दे अन्यथा खत्म कर विश्वास रखिये। दूंगा। और टूट पड़ा भूखे भेड़िये की तरह, जैसे अभी कच्चा , ही चबा जायेगा। काकासाहब यह सब देखकर स्तब्ध रह विपत्ति जब आती है कायर को ही दहलाती है, गये । आश्चर्य ! महान् आश्चर्य ! इतने में दैत्य बोला--- सूरमा नहीं धीरज खोते क्षण एक नहीं विचलित होते, अबे ! क्या बहरा हो गया है ? सुनता नहीं ? बैठा है कष्टों को गले लगाते हैं कांटों में राह बनाते हैं। ध्यान की मुद्रा में । देखता हूँ तेरे ध्यान को । कैसे ध्यान धर्म का प्रताप बड़ा तेज होता है। धर्म को छोड़ने लगाता है ? और एक ही झपाटे में धम से काकासा को वालों को आज तक कभी सुख नहीं मिला है । कामदेव गिरा दिया । काकासाहब कुछ क्षणों के लिए घबरा गये। ने आगे कहा-शरीर के कपड़े उतार कर फेंके जा सकते किसी तरह अपना होश सम्भाला और पुन: पट्ट पर बैठ हैं, धर्म को नहीं। धर्म कोई थोपी हुई वस्तु नहीं गये । बैठे ही थे कि पुनः धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े फिर है । धर्म मेरे शरीर की रग-रग में समाहित है। धर्म फिर सम्भले । फिर गिरा दिया । एक बार, दो बार नहीं, को छोड़ने की बात सोची भी नहीं जा सकती । आखिर सात बार उसने उठाया और पटका । साधनाशील सुराणाजी कामदेव की विजय हुई। देवता उसकी दृढ़ आस्था से हर बार ध्यानमग्न रहे। उन्होंने तत्काल एक संकल्प अभिभूत हो जाता है और क्षमाप्रार्थी बन क्षमा मांगता है। लिया कि यदि मैं इस उपसर्ग से बच गया तो चौविहार श्री सुराणाजी का उपसर्ग हमें कामदेव के उपसर्ग तेला करूंगा। और यदि इसी समय प्राण निकल गये तो की याद दिला देता है। सामायिक न छोड़ने का दृढ़ सागारिक अनशन में स्थित हूँ ही। प्राणों का व्यामोह संकल्प जैसे इतिहास की पुनरावृत्ति है। अर्द्ध-रात्रि में उन्हें अपने पथ से विचलित नहीं कर सका। ऐसे भयंकर आया दैत्य न जाने कहाँ अदृश्य हो गया। श्री सुराणाजी संकट में भी श्री सुराणाजी अपने पथ से विचलित नहीं भी कामदेव की तरह धर्म की कसौटी पर खरे उतरे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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