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________________ प्राकृत: विभिन्न भेद और लक्षण (४) ऐ का प्रयोग महाराष्ट्री में नहीं होता। उसकी जगह सामान्यतः ह एवं विशेषण अइ होता है जैसे शैल = सैल, ऐरावण एरावण, सैन्य सेण्ण, दैन्य देइष्ण । = = (५) कितने ही शब्दों के प्रयोगानुसार पहले, दूसरे व तीसरे वर्ष पर अनुसार का आगम होता है। अबु अयु, असुं, त्रस्कम तसं तसं आदि । (६) आदि के स्थान पर ज होता । (७) अनेक स्थानों पर र का ल होता है। Jain Education International ४७६ ( ८ ) ष्प और रूप के स्थान पर फ आदेश होता है । (E) अकारान्त पुल्लिंग एकवचन ओ प्रत्यय होता है, पंचमी से एकवचन में तो, ओ, उ, हि और विभक्तिचिह्न का लोप भी होता है व पंचनी बहुवचन में हिन्तों व सुन्तों प्रत्यय जोड़े जा सकते हैं । (१०) भविष्यकाल के प्रत्ययों के पहले हि होता है। (११) वर्तमान, भविष्य, भूत व आज्ञार्थक प्रत्ययों के स्थान में ज्ज और ज्वा प्रत्यय भी होते हैं । (१२) ति व ते प्रत्ययों में त का लोप होता है । (१३) भाव कर्म में इअ और इज्ज प्रत्यय होते हैं । For Private & Personal Use Only -0 .0 www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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