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________________ .४५८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड . . . . . .. . ..-. -. -.-.-.--. .... ...... ...... ..... (४६) भट्टारक देवेन्द्रकीति-जगत्कीर्ति के शिष्य भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति का ढूढाड प्रदेश की राजधानी (आमेर) में पट्टाभिषेक हुआ । महाराज सवाई जयसिंह के राज्यकाल में ईसरदा में आपने समयसार पर टीका लिखकर सं० १७८८ में समाप्त की। (४७) महोपाध्याय रामविजय-दयासिंह के शिष्य रूपचन्द्र ही दीक्षा प्राप्ति के उपरान्त रामविजय के रूप में विख्यात हो गये । आपका कार्यक्षेत्र जोधपुर बीकानेर ही रहा । आपकी रचनाएँ काव्य, ज्योतिष, व्याकरण एवं आचारशास्त्रपरक है। गौतमीय महाकाव्य में महावीर द्वारा गौतम को अपनी ओर आकर्षित कर अपने पंथ में सम्मिलित करना वर्णित है । गुणमालाप्रकरण, सिद्धान्तचन्द्रिका, मुहूर्तमणिमाला आदि रचनाएँ व्याकरण, नीतिशास्त्र, एवं ज्योतिष के साहित्य में अभिवृद्धि करती हैं। (४८) महोपाध्याय क्षमाकल्याण-अमृतधर्म के शिष्य क्षमाकल्याण का जन्म सं० १८०१ में केसरदेसर नामक स्थान में हुआ। मुनिजिनविजय के अनुसार राजस्थान के जैन विद्वानों में आप एक उत्तम कोटि के विद्वान् थे। इसके बाद राजस्थान में ही नहीं अन्यत्र भी इस श्रेणी का कोई जैन विद्वान् नहीं हुआ। इनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त होती हैं, जिनमें कुछ निम्न हैं :१. तर्कसंग्रहफक्किका २. भूधातुवृत्ति ३. समरादित्य केवलीचरित ४. यशोधरचरित ५. चैत्यवंदन-चतुर्विंशतिका ६. विज्ञानचन्द्रिका ७. सूक्तिरत्नावलि ८. परसमयसारविचारसंग्रह ६. प्रश्नोत्तर सार्धशतक । इनके अतिरिक्त गौतमीय महाकाव्य की टीका इनकी टीका पद्धति पर प्रकाश डालती है। (४६) भट्टारक सुरेन्द्रकोति-आपका पट्टाभिषेक सं० १८२२-२३ में जयपुर में हुआ। आपकी सात रचनाएँ उपलब्ध हैं१. अष्टाह्निका कथन २. पंचकल्याण विधान ३. पंचमास-चतुर्दशी-व्रतोद्यापन ४. लब्धिविधान ५. पुरन्दर व्रतोद्यापन ६. सम्मेदशिखर पूजा ७. प्रतापकाव्य (५०) जिनमणि-सं० १९४४ में जन्मे मनजी की जन्मभूमि बाकड़िया बड़गाँव है । सं० १९६० में पालीताणा में आपकी दीक्षा हुई । सं० २००० में बीकानेर में आचार्य पद प्राप्त किया। कोटा, बम्बई, कलकत्ता में कार्यरत जिनमणि गुरु सुमतिसागर के शिष्य थे। संस्कृति की दृष्टि से एक ही रचना उल्लेखनीय है-साध्वी व्याख्यान निर्णय । यह व्याख्यान की दृष्टि से उपयोगी विषयों का संकलन है। (५१) बुद्धि मुनिगणि-केसरमुनि के शिष्य बुद्धिमुनिगणि का जन्म सं० १९५० में हुआ। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में विहार कर अपने जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया । आपकी प्रमुख कृतियाँ कल्पसूत्र टीका, कल्याणक परामर्श, पर्युषणा परामर्श है। इन कृतियों के अतिरिक्त साधुरंगीय सूत्रकृतांग दीपिका, पिण्डविशुद्धि आदि ग्रन्थों का सम्पादन बड़ी योग्यता एव विद्वता से किया है। (५२) आचार्य घासीलाल-सं० १९४१ में जसवन्तगढ़ में जन्मे आचार्य घासीलाल स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य जवाहरलालजी शिष्य के थे । व्याकरण, कोश, काव्य, स्तोत्र आदि में आपकी अमित गति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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