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________________ राजस्थान के जैन संस्कृत साहित्यकार (६) वर्धमानचरित (७) मल्लिनाथचरित (८) यशोधरचरित (१) धन्यकुमारचरित, (१०) सुकुमानचरित ( ११ ) सुदर्शनचरित, (१२) श्रीपालचरित, (१३) नेमिजिनचरित, (१४) जम्बूस्वामीचरित, (१५) सद्भाषितावली, (१६) व्रतकथाकोष ( १७ ) कर्मविपाक (१८) तत्त्वार्थसारदीपक, (११) सिद्धान्तसारदीपक (२०) आगमसार, (२१) परमात्मराजस्तोत्र, (२२) सारचतुर्विंशतिका, (२३) द्वादशानुप्रेक्षा । ૪૫૨ आदिपुराण एवं उत्तरपुराण भागवत् पुराण के २४ अवतारों की भाँति २४ तीर्थंकरों का विवेचन देते हैं । आदिपुराण में २० समों में ऋषभनाथ का चरित वर्णित है तो उत्तरपुराण में शेष २३ तीर्थकरों का चरित वागत है। मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ वर्द्धमान, यशोधर, शान्तिनाथ, धन्यकुमार एवं नेमिजिनचरित काव्यों में गामानुसार तीर्थकरों एवं महापुरुषों का चरित क्रमशः २७ २२ १६ १६ सगों में वर्णित है सद्भाषितावली एक सुभाषित ग्रन्थ है। कर्मविपाक एवं तत्त्वार्थसार जैन धर्म की दार्शनिक मान्यताओं पर प्रकाश डालता है। व्रतकथाकोष में व्रतों एवं परमात्मराजस्तोष स्तुतिग्रन्थ है। (२४) जिनवर्धनसूरि - जिनराजसूरि के शिष्य जिनवर्धनसूरि ने देवकुलपाटन में सं० १४६१ में आचार्य पद प्राप्त किया। आपका कार्यक्षेत्र जैसलमेर और मेवाड़ था । आपकी रचनाओं में सर्वप्रमुख रचना प्रत्येकबुद्धचरित एवं सत्यपुर मण्डन प्रमुख है । प्रत्येकबुद्धचरित में रघुवंश की भांति सभी तीर्थकरों का कमिक जीवन-चरित वर्णित है टीका साहित्य की दृष्टि से सप्तपदार्थी टीका एवं वाग्भट्टालंकार टीका आपकी न्याय एवं काव्यशास्त्र की मर्मज्ञ विद्वत्ता का द्योतन कराती है। 1 (२५) बाडव - बाडव एक सफल टीकाकार हैं । बाडव की टीकाओं के स्मरणमात्र से मल्लिनाथ की स्मृति हो आती है विराटनगर राजस्थान के निवासी वाडव ने प्रत्येक महत्त्वपूर्ण महाकाव्य को अपनी टीका से विभूषित किया है । मल्लिनाथ ने अपनी टीकाओं का नाम संजीवनी रखा तो "बाडव ने अपनी सभी टीकाओं का नाम अवचूरि रखा । आपने कुमारसंभव, रघुवंश, किरातार्जुनीयम्, मेघदूत, शिशुपालवध के अतिरिक्त वृत्तरत्नाकर, वाग्भट्टालंकार, विदा मुखमण्डन एवं योगशास्त्र से शास्त्रीय ग्रन्थों पर भी टीकाएँ लिखी हैं। स्तोत्रों पर टीका लिखने की परम्परा का निर्वाह कर आपने भीतरागस्तोत्र, भक्तामर स्तोत्र, जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तोष, कल्याणमन्दिरस्तोत्र एवं त्रिपुरास्तोत्र पर अवचूरि का प्रणयन किया । (२६) चारित्रबर्धन - कल्याणराज के शिष्य चारित्रवर्धन का समय १४७० १५२० था। आपका कार्यक्षेत्र झुंझनू के आस-पास रहा। बाडव की परम्परा का निर्वाह करते हुए आपने भी टीका साहित्य का प्रणयन किया । 1 आपकी प्रमुख कृतियां रघुवंग, कुमारसंभव, शिशुपालवध, मेवदूत नैषधीयकाव्यम्, रामवपाण्डवीय, आदि महाकाव्यों पर टीकाएँ हैं। सिन्दूरप्रकरण टीका भावारिवारण एवं कल्याणमन्दिरस्तोत्र की टीका जैन सम्प्रदायों में अत्यधिक लोकप्रिय रही। (२७) जयसागर - सं० १५४० में आसराज एवं सोखू के घर में जन्मे जयदत्त जिनराज का शिष्यत्व स्वीकार कर जयसागर बन गये आपके भाई मण्डलीक ने आयु में खरतर सही का निर्माण करवाया जैसलमेर, आबू, गुजरात, सिंध, पंजाब एवं हिमाचल का विहार करने वाले मुनि जयसागर ने शताधिक स्तोत्रों की रचना की। इनकी मुख्य कृतियाँ विज्ञप्ति त्रिवेणी हैं पृथ्वीचन्द्रचरित, शान्तिनाथ जिनालय प्रमस्ति सन्दोह दोहावली टीका, गुरुवारसन्oयस्तोsटीका, भावारिवारण टीका है। Jain Education International विज्ञप्तित्रिवेणी एक ऐतिहासिक रचना है, जिसमें नगरकीट, कांगड़ा आदि का दुर्लभ विवरण प्राप्त होता है । पृथ्वीचन्द्रचरित चरितकाव्य एवं शान्तिनाथ जिनालय प्रशस्ति जैसलमेर में उक्त नाम से बने मन्दिर की प्रशस्ति है। (२८) कीतिरत्नसूरि - जिनवर्धनसूरि के शिष्य एवं देवलदे के पुत्र देल्हाकंवर ही आगे चलकर कीर्ति रत्नसूरि For Private & Personal Use Only O www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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