SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 819
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -0 ४५२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड आपकी तीन रचनायें प्रसिद्ध है. पंचप्रस्थान न्याय तर्क व्याख्या २. पानीय वादस्वल, २. हेमचन्द्रीय द्वयाश्रय काव्य टीका । (२०) जनप्रभरि - जिनसिंह सूरि के शिष्य जिनप्रभसूरि मोहिलीवाड़ी (अनु) के निवासी रत्नपाल एव खेतलदेवी के पुत्र थे। आपने सं० १३६६ में दीक्षा प्राप्त करके सं० १३४१ में आचार्य पद प्राप्त किया। आपकी प्रमुख रचनायें श्रेणिकपरित एवं विविध तीर्थकल्प मौलिक कृतियाँ हैं। इनके अतिरिक्त कल्पसूत्र, साधु प्रतिक्रमण पावस्यक अनुयोग चतुष्टयव्याख्या प्रव्रज्याभिधान, कातंत्र विभ्रमटीका, अनेकार्य संग्रह शेष शेष-संग्रह, विदग्धमुखमण्डन, गायत्री विवरण आदि पर टीका लिखी। (२१) जिनकुशलसूर श्वेताम्बर सम्प्रदाय के तीसरे दादाजी जिनकुशलसुरि के गुरु कलिकालकल्पतरु जिनचन्द्र सूरि थे । सं० १३०३ में रचित इनकी एकमात्र कृति चैत्यवंदन कुलक वृत्ति है । Jain Education International - (२२) पद्मभट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य पद्मनन्दि जाति से ब्राह्मण थे। भट्टारक पद्यनन्दि भट्टारक बनने से पूर्व आचार्य पद से सुशोभित होते थे । ३४ वर्ष की आयु में सं० १६८५ में भट्टारक पद प्राप्ति करने वाले नन्दि ने अपनी भक्ति के प्रभाव से पाषाणमयी सरस्वती को मुख से बुला दिया था। आपका कार्यक्षेत्र मेवाड़, हाड़ौती, झालावाड़, टोंक आदि थे। आपकी अधिकतर रचनाएँ पूजा, संतोष, कथा आदि वर्गों में आती है१. धावकावार, २ व्रतोपना २. नन्दीश्वर भक्तिपूजा, ४. सरस्वती पूजा, ५. सिद्धपूजा, ६ वीतरागस्तोत्र ७. पार्श्वनाथस्तोत्र ८ लक्ष्मीस्तोत्र, ९. मांतिना वस्तवन, १०. परमात्मराजस्तोत्र ११. भावना चौबीसा, १२. देवतास्वगुरुपूजा, १३. रत्नत्रय पूजा, १४. अनन्तव्रतकथा । (२३) भट्टारक सकलकीर्ति - सन्त सकलकीर्ति का जन्म १४४३' में करमसिंह एवं शोभादेवी के घर हुआ। आपका बचपन का नाम पूर्णसिंह पदर्थ था । २६ वर्ष की आयु में सम्पूर्ण सम्पत्ति को त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया । नैणवां नामक ग्राम में भट्टारक पद्मनन्दि के पास आप रहे । आपने न केवल स्वाध्याय किया अपितु शिष्यों को भी अध्यापन करवाया। ब्रह्म जिनदास ने आपको निर्ग्रन्थराज हरिवंशपुराणकार ने तपोनिधि तथा सकलभूषण नेपुण्यमूर्ति कहा। इनकी मृत्यु महसाना में १४६६ में हुई । आपकी रचनाएँ लगभग ५० हैं । उनमें संस्कृत रचनाओं के नाम क्रमशः निम्न प्रकार है (१) मूलाधार प्रदीप, (२) प्रश्नोतरोपासकाचार, (३) आदिपुराण (४) उत्तरपुराण ( ५ ) शान्तिनायचरित , १. हरषी सुणीय सुवाणि पालइ अन्य उअरि सपर । पोउद त्रिताल प्रमाणि पुरद विनपुत्र जनमीजं ॥ २. न्याति महि मुतवन्त बडहरवाए। करमसिंह वितपन्न उदयवन्त हम जाणीइय ॥ शोभित तरस अयांग मूली सहीस्य सुन्दरीय सील पगारित अंग पेखु प्रत्यक्षे पुरंदरीय ॥ ३. ततोऽभवस्य जगत्प्रसिद्धे, पट्टेमनोशे सकलादिक्रीतिः । महाकविः शुद्धचरित्रधारी, निर्ग्रन्थराजा जगद्रि प्रतापी ।। ४. तत्पट्टपकेजविका सभास्वान्, वभूव निम्दरः प्रतापी । महाकवित्वादिकलाप्रवीणः, तौनिधिश्री सकलादिकीर्तिः ॥ ५ तत्पट्टधरीजनचित्तहारी, पुराणमुख्योत्तमशास्त्रकारी। भट्टारक श्री सकलाविकीर्तिः प्रसिद्धनामाजनि पुष्पमूर्तिः ॥ : " For Private & Personal Use Only - जम्बूस्वामिचरितम् हरिवंश पुराण - उपदेशरत्नमाला www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy