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________________ राजस्थान का जैन संस्कृत साहित्य ४४५ प्रतिष्ठापना के साथ-साथ पूज्यपाद के समाधितन्त्र और आचार्य गुणभद्र के आत्मानुशासन पर लोकप्रिय संस्कृत टीकाएँ लिखीं। इन्हीं के शिष्य भट्टारक पद्मनन्दि (सं० १३८५) संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे। इन पर सरस्वती की असीम कृपा थी । एक बार उन्होंने पाषाण की सरस्वती की मूर्ति को मुख से बुला दिया था। राजस्थान में चित्तौड़, मेवाड़, बूंदी, नैणबाँ, टोंक, झालावाड़ के साथ गुजरात इनकी साहित्य-साधना एवं धर्म प्रचार के केन्द्र रहे। भट्टारक सकलकीति ने इन्हीं से नैणवाँ में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की। इनकी प्रमुख कृतियों में श्रावकाचार, द्वादशव्रतोद्यापन, पार्श्वनाथस्तोत्र, देवशास्त्रगुरुपूजा हैं। वि० की १४वीं शताब्दी में जिनप्रभसूरि ने द्वयाश्रय श्रेणिक काव्य लिखा, जिसमें व्याकरण की वृत्ति एवं श्रेणिक का जीवन चरित्र दोनों साथ चलते हैं । मुहम्मद तुगलक के प्रतियोधक एवं धर्मगुरु जिनप्रभसूरि ने वि० सं० १३८६ में विविधतीर्थकल्प नामक ग्रन्थ का निर्माण किया । तीर्थयात्रा में जो देखा, उसका सजीव वर्णन हुआ है। इसमें भक्ति, इतिहास और चरित तीनों एक साथ मिलते हैं। १५वीं शताब्दी में राजस्थान में बागड़ प्रान्त में भट्टारक सकलकीति का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। सकलकीति संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे। उन्होंने पुराण, न्याय, काव्य, आदि पर २८ से भी अधिक ग्रन्थ लिखे। मूलाचारप्रदीप, आदिपुराण, उत्तरपुराण, शान्तिनाथचरित्र, यशोधरचरित्र, सुकुमालचरित्र, सुदर्शनचरित्र, पार्श्वनाथचरित्र, व्रतकथाकोष, सुभाषितावली, जम्बूस्वामीचरित्र, सिद्धान्तसारदीपक आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं । राजस्थान में जैन संस्कृत साहित्य की संरचना में ब्रह्म जिनदास का योगदान भी कम नहीं है। गुजरात के अणहिलपुरपट्टण में जन्म लेने के बाद मेवाड़ में बागड़ प्रान्त में भट्टारक सकलकीति के सान्निध्य में सं० १४८० से १५२० तक साहित्याराधन में रत रहने वाले ब्रह्म जिनदास ने हिन्दी के साथ संस्कृत भाषा में भी काव्य रचना की, जिनमें पद्मपुराण, जम्बूस्वामीचरित्र, हरिवंशपुराण मुख्य हैं । भट्टारक ज्ञानभूषण की तत्त्वज्ञानतरंगिणी (रचना काल सं० १५६०) आत्मसम्बोधन काव्य है। ये सागवाड़ा गादी के भट्टारक थे। षट्भाषा चक्रवर्ती शुभचन्द्र (सं० १५७३) विविध विद्याधर (शब्दागम, युक्त्यागम एवं परमागम) के ज्ञाता थे। इनकी २४ संस्कृत रचनाओं में चन्द्रप्रभचरित्र, करकण्डुचरित्र, कार्तिकेयानुप्रेक्षा-टीका, जीवन्धरचरित्र, पाण्डवपुराण, श्रेणिकचरित्र विशेष प्रसिद्ध हैं । आचार्य सोमकीति ने १५वीं शताब्दी में संस्कृत में सप्तव्यसनकथा, प्रद्युम्नचरित्र एवं यशोधरचरित्र रचनाएँ लिखीं । इस्सी शताब्दी में जिनदत्त सूरि ने जैसलमेर में ज्ञानभण्डार की स्थापना की । वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे।" ___सं० १५४४ में कमलसंयमोपाध्याय ने उत्तराध्ययन पर संस्कृत टीका लिखी। ब्रह्म कामराज ने सं० १५६० में जयपुराण लिखा। १ संस्कृत साहित्य एवं साहित्यकार : डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल पृ० १०३ २ भट्टारक सम्प्रदाय : श्री वी० पी० जोहरापुरकर ३ राजस्थान का जैन साहित्य, पृ० ५६ । ४ राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ०९ ५ ब्रह्म जिनदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डा. प्रेमचन्द्र रावका ६ राजस्थान के जैन संत, पृ० ६४ ७ मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ०७६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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