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________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ......-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-....................................... सिद्धसूरि-यह उपकेशगच्छीय मुनि थे। इन्होंने श्रीधरकृत गणितसार पर टीका लिखी थी। सिंहतिलकसरि (१२७३ ई०)-इनके गुरु का नाम विबुधचन्द्र सूरि था। ये ज्योतिष और गणित के अच्छे विद्वान् थे। इन्होंने श्रीपतिकृत गणितसार पर सं० १३३० में वृत्ति (टीका) लिखी है। ज्योतिष पर इनकी भुवनदीपकवृत्ति टीका भी मिलती है। ज्योतिष सम्बन्धी अन्य ग्रन्थ ज्योतिष पर विनयकुशलमुनि ने जोइसचक्कविचार (ज्योतिषचक्रविचार) नामक प्राकृत ग्रन्थ लिखा है। जिनेश्वरमुनि ने श्रीपतिकृत जातकपद्धति पर टीका लिखी है । खरतरगच्छीय मुनिचन्द्र ने अनलसागर नामक ज्योतिषग्रन्थ लिखा है। मानसागर मुनि का मानसागरी पद्धति नामक ज्योतिष ग्रन्थ मिलता है । यह पद्यात्मक है। इसमें फलादेश दिये हैं। मुनि राजसोम ने गणेशकृत ग्रहलाघवसारिणी पर संस्कृत में टिप्पण लिखा है। मुनि मतिविशालगणी ने प्राकृत में टिप्पणकविधि नामक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा है। इसमें पचांगतिथिकर्षण, संक्रांतिकर्षण, नवग्रहकर्षण आदि १३ विषय दिये हैं। पद्मसुन्दर मुनि ने ज्योतिष पर हायनसुन्दर ग्रन्थ लिखा है। कुछ ग्रन्थ अज्ञातकर्तृक मिलते हैंगणहरहोरा (गणधरहोरा)-होरा सम्बन्धी ग्रन्थ है। जोइसदार (ज्योतिर)-प्राकृत में है। इसमें राशि व नक्षत्रों के शुभाशुभ फल दिये हैं। जातकदीपिकापद्धति-इसमें अनेक ग्रन्थों के उद्धरण हैं । जन्मप्रदीपशास्त्र-इसमें कुण्डली के १२ भुवनों के लग्नेश के सम्बन्ध में विचार है। जोइसहीर (ज्योतिषहीर)- यह प्राकृत में है। इसमें शुभाशुभतिथि, ग्रह-बल, शुभ घड़ियाँ, दिनशुद्धि आदि विषय दिये हैं। पंचांगतत्त्व-इसमें पंचांग के तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण का निरूपण है। पंचांगतत्त्व-टीका-अभयदेवसूरिकृत। पंचांगतिथिविचरण-इसे करणशेखर या करणकोश भी कहते हैं । इसमें पंचांग बनाने की विधि दी है। पंचांगदीपिका-पंचांग बनाने की विधि दी है। पंचांगपत्रविचार-पंचांग के विषय दिये गये हैं। हिन्दी-राजस्थानी के ग्रन्थ कवि-केशव (१७वीं शती)-यह खरतरगच्छीय दयारत्न के शिष्य थे। इनका जन्म-नाम केशव और दीक्षा का नाम कीर्तिवर्धन था। यह मारवाड़ क्षेत्र के निवासी थे । इनका काल १७वीं शती है। इनका जन्मप्रकाशिका नामक ज्योतिषग्रन्थ मिलता है। रत्नधौर (१७४६ ई०)-यह खरतरगच्छीय मुनि थे। इन्होंने भुवनदीपक पर बालावबोध की रचना सं०१८०६ (१७४६ ई.) में की। ___ लाभवर्धन (१८वीं शती)—यह खरतरगच्छीय जिनहर्ष के गुरुभ्राता थे। इनका काल १८वीं शती है। इन्होंने ज्योतिष पर राजस्थानी में लीलावतीगणित और शकुनदीपिका ग्रन्थ लिखे । शीघ्रबोधचन्द्रिका-इसका रचना काल सं० १६१६ है । 'शीघ्रबोध' ज्योतिषग्रन्थ की भाषा-टीका है। रचनाकार अज्ञात है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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