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________________ ये भद्रबाहु चतुर्दश पूर्वधर से भद्रबाहु से भिन्न हैं । समन्तभद्र – आचार्य समन्तभद्र के नाम से प्रश्नशास्त्र सम्बन्धी केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणि ग्रन्थ मिलता है । डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री ने इसका संपादन किया है । इन्हें आप्तमीमांसाकार समन्तभद्र से भिन्न माना है । जैन ज्योतिष: प्रगति और परम्परा ४११ इस ग्रन्थ में अक्षरों का वर्गीकरण करके तदनुसार कार्य की सिद्धि लाभालाभ, रोगनिवारण, जय-पराजय आदि का विचार है । भट्टवोसरि ( १०वीं शती) – यह दक्षिण के दिगम्बर जैन आचार्य दामनन्दि के शिष्य थे। इन्होंने आयनाणतिलय (आयज्ञागतिलक) नामक प्रश्नशास्त्र सम्बन्धी अन्य प्राकृत में लिखा है, इसमें ध्वज, घूम, सिंह, गज, खर, स्नान, वृष और ध्वांक्ष (कौआ) इन आठ 'आयों' के द्वारा फलादेश का विस्तार से विवेचन है । इस पर स्वयं भट्टवोसरि ने स्वोपज्ञ टीका लिखी है । भी प्राप्त हैं मल्लिषेण (१०४३ ई० ) – यह कर्नाटक के निवासी थे । इनके गुरु दिगम्बर आचार्य जिनसेनसूरि थे । प्रश्न-शास्त्र पर इन्होंने सुग्रीव आदि मुनियों के ग्रन्थों के आधार पर आयसद्भाव नामक ग्रन्थ की रचना की है । इसमें भट्टवोसरि का भी उल्लेख है । इसमें २० प्रकरण हैं तथा ध्वज, धूम, सिंह, मंडल, वृष, खर, गज, वायस, इन आठ 'आयों' के स्वरूप व उनके आधार पर फलादेश बताया गया है । हरिश्चन्द्रगणि—इनका प्रश्नपद्धति नामक ज्योतिष ग्रन्थ मिलता है। प्रश्नशास्त्र पर कुछ अज्ञात ग्रन्थ (१) अक्षरचूडामणिशास्त्र — संस्कृत में । 1 (२) चन्द्रोन्मीलन- इसमें ५५ अधिकार हैं। इसमें प्रश्नकर्त्ता के प्रश्न के वर्गों को संयुक्त, असंयुक्त अभिघातित, अभिप्रमित, आलिंगत और दग्ध इन छः संज्ञाओं में विभाजित किया गया है । [रमल या पाशककेवली गर्गाचार्य - आचार्य गर्ग ने पाशककेवली सम्बन्धी कोई ग्रन्थ लिखा था । --- मुनि भोजसागर (१८वीं शती) — इन्होंने रमलविद्या नामक ग्रन्थ लिखा है। इसमें उल्लेख है कि आचार्य कालकर इस विद्या को यवनदेश से भारत में लाये। मुनि विजयदेव इनके रमलविद्या ग्रन्थ का उल्लेख मिलता है। पाशाकेवली - अज्ञातकर्तृक । यह संस्कृत में है । इसमें अदअ, अअय आदि कोष्ठक देकर अ, व, य, और द के प्रकरण दिये हैं । इसमें शुभाशुभ फल दिये हैं । गणित ज्योतिष यल्लाचार्य - यह प्राचीन मुनि थे। इन्होंने गणितसंग्रह लिखा था । नेमिचन्द्र – इनका रचा क्षेत्रगणित मिलता है । मुनि तेजसिंह यह लौकागच्छीय मुनि थे। इन्होंने दमित पर २६ पद्यों में इष्टांकपंचविशतिका नामक छोटासा ग्रन्थ लिखा है । अनन्तपाल (१२०४ ई० ) – यह पल्लीवाल जैन गृहस्थ थे। इनका लिखा पाटीगणित नामक गणित सम्बन्धी ग्रन्थ मिलता है। इसमें अंकगणित सम्बन्धी विवरण है। इनके भाई जनपाल ने सं० १२६१ में तिलकमंजरीकथासार लिखा है । सिंह (१३ शती) – यह आगमगच्छीय आचार्य देवरत्नसूरि के शिष्य थे। इन्होंने कोष्ठचितामणि नामक ग्रन्थ प्राकृत में लिखा है। संस्कृत में इस पर स्त्रयं ने कोष्टकचितामणि टीका लिखी है । Jain Education International +++ For Private & Personal Use Only -0 ० www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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