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________________ जन ज्योतिष : प्रगति और परम्परा रमलशास्त्र में अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी इन चार तत्त्वों की दशा का आधार माना जाता है। इनके • सोलह भेद हैं। पासे पर उनके प्रतीक सोलह चिह्न होते हैं । 1. ३५७ मुसलमानों के सम्पर्क के बाद संस्कृत में इस पर स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे गये। इनमें अरबी शब्द भी व्यवहृत हुए हैं । अत: इसे मुसलमानों के सम्पर्क से विकसित हुआ माना जाता है । जैन विद्वानों ने ज्योतिष की प्रत्येक विधा पर महत्त्वपूर्ण रचनाएँ लिखी हैं ये रचनाएँ प्राकृत, अपभ्रं • संस्कृत, हिन्दी के अतिरिक्त राजस्थानी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, तेलगु आदि प्रान्तीय भाषाओं में मिलती हैं। इससे इसकी व्यापकता प्रदर्शित होती है । जैन मान्यता में कालविभाग एवं लोकविभाग ज्योतिष का सम्बन्ध काल एवं खगोल-भूगोल से है । सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में इनका परिचय मिलता है, इससे सृष्टि के विकास क्रम का पता चलता है । लोक विभाग- सम्पूर्ण विश्व के दो विभाग हैं—एक 'अलोकाका', जहाँ आकाश के सिवा कोई जड़ या नेतन द्रव्य मौजूद नहीं है, दूसरा 'लोकाकाश', जहाँ पाँच द्रव्य (जीव, पुद्गल, उनके गमनागमन में सहायक धर्म एवं अधर्म द्रव्य इय्य-परिवर्तन में निमित्त भूत 'काल') होते हैं अत: इसे 'द्रव्यलोक' भी कहते हैं। द्रव्यलोक के तीन भाग हैऊर्ध्व, मध्य और अधो लोक । ऊर्ध्वं लोक में सर्वप्रथम ज्योतिर्लोक हैं, जिसमें सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारे स्थित है। इसके ऊपर १६ स्वर्ग हैं सौधर्म, ईमान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, सान्तव, कापिष्ठ, शुक्र, महागुरू, शतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत । इनको 'कल्प' भी कहते हैं । स्वर्गों के ऊपर नौ ग्रैवेयक और उनके ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि नामक पाँच कल्पातीत देव - विमान हैं । इसके ऊपर लोक का अन्तिम भाग है, जहाँ मुक्तात्माएँ रहती हैं। अधोलोक में क्रमशः नीचे की ओर ७ नरक हैं- रत्न, शर्करा, बालुका, पंक, धूम, तम और महातम प्रभा । इसमें तीन महान् द्वीप हैंधातकीखण्ड और पुष्कर का असंख्य द्वीप व सागर हैं। अलंध्य पर्वत हैं। जम्बूद्वीप, मध्यलोक में पृथ्वी है । यह गोलाकार है और इसमें -जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्कर । पुष्करद्वीप के मध्य में आधा भाग — इस प्रकार ढाई द्वीप में मनुष्यलोक है। पृथ्वी के मध्य में जम्बूद्वीप (एक लाख योजन विस्तृत) के चारों और लवण समुद्र (२ लाख योजन विस्तृत) है। लवण समुद्र के चारों ओर घातकीखण्ड (४ लाख योजन विस्तृत) है। - धातकीखण्ड के चारों ओर कालोदधि (८ लाख योजन विस्तृत ) है । कालोदधि के चारों ओर पुष्करद्वीप ( १६ लाख योजन विस्तृत) है । जम्बूद्वीप में ७ क्षेत्र हैं- भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत, ऐरावत। इनके विभाजक ६ कुलपर्वत हैं — हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मि, शिखरी । सबसे मध्य में विशाल विदेहक्षेत्र है । इसके मध्य में मेरुपर्वत है। भरतक्षेत्र में हिमालय से निकलकर पूर्व समुद्र की ओर गंगा तथा पश्चिम समुद्र की ओर सिन्धुनदी बहती हैं। बीच में विन्ध्यपर्वत है। इन दोनों नदियों और पर्वतों से भरतक्षेत्र के ६ बंद हो गये है। इन पर एकछत्र (विजयार्थ) शासन करने वाला शासक 'पट्खण्ड चकवर्ती' कहलाता है। गंगा-सिन्धु का मध्यवर्ती देश 'आर्यखेड' कहलाता है । इसको 'मध्यदेश' भी कहते हैं । इसमें ही तीकथंरों आदि ने जन्म लिया । Jain Education International काल विभाग जैनमान्यतानुसार काल की सबसे छोटी अविभाज्य इकाई 'समय' और सबसे लम्बी इकाई 'कल्प काल' है । कल्पकाल का मान बीस कोटाकोटि 'सागर' है, जो असंख्य वर्ष जितना है । प्रत्येक कल्पकाल के दो विभाग हैं - अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी । जम्बूद्वीप में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के रूप में कालचक्र घूमता रहता है । जैन मान्यता में विश्व में समस्त जड़ चेतन अनादि और अनन्त हैं। इसको न किसी ने बनाया और न कभी इसका विनाश होता है जगत के उपादान द्रव्यों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। इसका निमित्त 'काल' है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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