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________________ ३८४ कर्मयोगी श्री केसरीमसजी सुराणा अभिनन्दन अन्य : पंचम खण्ड ........................................................................... मायाबीज ह्रींकार की पूजा में धरणेन्द्र-पद्मावती की पूजा, दश दिशाओं में पार्श्वनाथ की पूजा, चौबीस यक्ष-यक्षिणी पूजा, सोलह विद्यादेवी पूजा, नवग्रह पूजा आदि विषय हैं। यह रचना मन्त्रपूत अथवा यान्त्रिक शक्ति से युक्त होने पर शान्तिक एवं पौष्टिक अभिकर्म की पूर्ति करती है। चिन्तारणि (मन्त्र, यन्त्र तथा तन्त्र संग्रह) : इस कृति' का संकलनकर्ता एवं समय अज्ञात है । अनुमान से १८वीं-१६वीं शती में सागवाड़ा (बागड़ प्रान्त) गद्दी के भट्टारक अथवा उनके किसी पण्डित ने संग्रह किया होगा। इस संग्रह में मन्त्र-यन्त्र एवं औषध प्रयोग विधि में बागड़ी बोली, मारवाड़ी तथा मालवी बोली के शब्दों का प्रयोग किया गया है। उसमें कहीं-कहीं शैव मन्त्रों, हनुमान मन्त्रों का भी समावेश किया गया है। इस संग्रह की पुष्पिका में निम्न पंक्तियां लिखी हुई हैं :-- वृषभादि चतुर्विशस्सुत्रयः त्रिशत् योज्या चतुर्विशतिभिर्भक्त शैसं शान्तिनात् षोडशात्कथितं व्याः इति तीर्थकर इति चिन्तारणि समाप्तम् । इस मन्त्र-मन्त्र-तन्त्र संग्रह का नामकरण उपरोक्त पंक्तियों के आधार पर चिन्तारणि रखा गया है। मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र संग्रह अज्ञात व्यक्ति द्वारा संग्रहीत इस कृति का समय ज्ञात नहीं हुआ है। इसमें प्रथम पृष्ठ पर बारीक अक्षरों में णमोकार कल्प प्रारम्भ लिखते हुए लिखा हुआ है। इसको बागड़ी, मारवाड़ी बोली के शब्दों में लिखा गया है। इसमें ६ तक पत्र संख्या है। अनुमान से इसका संग्रह १८-१९वीं शती में सागवाड़ा (बागड़ प्रान्त) गद्दी के भट्टारक के किसी अनुयायी ने किया होगा। इसमें मुख्यतया वशीकरण, उच्चाटन, मारण, विद्वेषण आदि मन्त्र-यन्त्रों का ही संग्रह किया गया है। मन्त्र शास्त्र ___ इस कृति के रचनाकार एवं रचनाकाल के विषय में किसी प्रकार के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं । इसकी रचना अनुमान से सागवाड़ा (जिला डूंगरपुर) गद्दी के १८-१९वीं शती के भट्टारक के किसी अनुयायी भक्त ने की होगी। इसमें पत्र-संख्या २४ के बाद पत्र गायब हैं। इसको बागड़ी, मारवाड़ी, मालवी बोली के शब्दों में लिखा गया है यह मन्त्र, यन्त्र एवं तन्त्र का अनूठा संग्रह है। इसमें कहीं-कहीं मुसलिम, शाबर मन्त्रों एवं वैष्णव मन्त्रों का भी समावेश किया गया हैं। मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन यह कृति डॉ० नेमिचन्द शास्त्री द्वारा सन् १९५६ में प्रणीत है। इसमें लेखक ने णमोकार महामन्त्र का वैज्ञानिक दष्टि से परिशीलन किया है। इसके प्रत्येक अक्षर एवं पद का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। इसको साधने की विधि एवं इससे सम्बन्धित कई मन्त्रों का संग्रह भी साथ में दिया है। किसने कब इस महामन्त्र की साधना से अपना कल्याण किया, उनके बारे में १७ कथाएँ भी दी हैं ।। १. लेखक के संग्रहालय में सुरक्षित है। २. 'ॐ नमो भगवतेरुद्राय ह्रीं ह्र हफट् स्वाहा अनेन मन्त्र सर्वभूताडाकिणीयोगिनीदमन मन्त्रः' पृ० १२ पर ३. लेखक के संग्रहालय में सुरक्षित है। ४. वही। ५. ॐनमौल्लाइल्ला इल्ल इल्लाईल्ली ईल महमद रसलिला: सलमान पैगम्बर सकरदिन ममहादिन हस्तावतारदिपा वतारः पत्रावतार कजलावतार आगच्छ-आगच्छ सत्यं ब्रू हि-सत्यं ब्रूहि स्वाहा, पृ० १० ६. भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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