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________________ ३८. कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड जाप विधि फलादिकं च, पार्श्वनाथसन्तानीय केशि गणधर मन्त्र:, कोट्यंशादिविचारः, महत्यादिमन्त्र चतुष्क विचार:, सुरिमन्त्राभिधान कारणं तदधिकारी व मुद्रा विचारः, विद्या प्रस्थान-पीठ स्वरूपम् 'ॐ' आदि बीज त्रय प्रयोग विचारः, एकोनचत्वारिशंत्पदात्मक मरिमन्त्रविचार:, त्रयोदशलब्धि पद-सप्तमेरु युत सूरिमन्त्रविचारः, द्वात्रिशंल्लब्धि पद्या चतुर्विशति लब्धि पद्या च युक्तस्य षट् प्रस्थानमयस्य सूरिमन्त्रस्यविचारः, षोडशस्तुतिपदयुक्तस्य षटप्रस्थानमयस्य सूरिमन्त्रस्यविचार:, त्रयोदशमेरुयुक्तस्य सूरिमन्त्र विचारः, ह्रीं कार विकारः, मात्र राजमान विकारः, द्वादश तन्धिाद, त्रयोदशमेरुयुक्तस्य सूरिमन्त्रस्य विचारः, षोडशस्तुतिपदषण्मेरुकूटाक्षर युक्तस्य सूरिमन्त्रस्य विचारः । ॐकारस्य ह्रींकारस्य ग्रहादिशान्तिकस्य च विचारः, मायाबीज विचारः, अहंकार रहस्यम्, देहस्थस्य आधार चक्रादिपीठ चतुष्कस्य विचारः, जापमाहात्म्यम् यन्त्रलेखन प्रकारः, षोडश लब्धिपद षण्मेरुयुक्तस्य सुरिमन्त्रस्य विकारः, द्वादशलब्धि पर युक्त पंचमेरु वाचनायां विशेषः, उपविद्यामेरुरहित सूरिमन्त्रविचार:, शान्तिक विचारस्तद्विधिश्च स्तम्भादिविचारः, सूरिमन्त्र महिमादिविचारः, सूरिमन्त्रनित्य पूजन विधिः, षोडशलब्धिपद, त्रयोदशमेरुसहित सूरिमन्त्रस्य वाचनान्तरम् अक्ष विचारः वासक्षेप मुद्रादि विचारः आशिर्वचन पूर्व ग्रन्थकारकृताग्रत्य समाप्तिः । विद्यानुवाद यह विविध मन्त्र एवं तन्त्र की संग्रहात्मक कृति है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति सरस्वती दि० जैन मन्दिर, इन्दौर में विद्यमान है। इस कृति में कहीं भी संग्रहकर्ता अयवा ग्रन्थकर्ता का नाम नहीं दिया गया है। पं० श्री चन्द्रशेखर शास्त्री ने इसे मुनि कुमारसेन द्वारा संग्रहीत बताया है। इसमें निम्न २३ परिच्छेद हैं-१. मन्त्रीलक्षण, २. विधि मन्त्र, ३. लक्ष्म, ४. सर्व परिभाष, ५. सामान्य मन्त्र साधन, ६. सामान्य यन्त्र, ७. गर्भोसत्ति विधान, ८. बाल चिकित्सा, १. ग्रहोपसंग्रह, १०. विषहरण, ११. फणितन्त्र मण्डल्याद्य १२. पनयोरुजांशमनं, १३-१४-१५. कृते खग्वधोवधः, १६. विधान उच्चाटनं, १७. विद्वेष, १६. स्तम्भन, १६. शान्ति, २०. पुष्टि, २१. वश्यं, २२. आकर्षणं, २३. नर्म आदि। प्रतिष्ठातिलक १८ परिच्छेद एवं अन्त में परिशिष्ट प्रकरण परिमाण यह कृति दिगम्बर जैनाचार्य श्री नेमीचन्द ने १३वीं सदी ईस्वी के लगभग रची है। दोनी पखाराम ने भवन्द सोनापुर से यह प्रकाशित है। यह एक तरह से मन्त्र-यन्त्रों का सागर है। इसमें निम्न यन्त्र अपना विशिष्ट महत्त्व रखते हैं-महाशान्तिपूजायन्त्र, बृहच्छांतिक यन्त्र, जलयन्त्र, महायाग मण्डल यन्त्र, लघुशान्तिक यन्त्र, मृत्युंजययन्त्र, सिद्धचक्रयन्त्र, पीठयन्त्र, सारस्वतयन्त्र, निर्वाणकल्याण यन्त्र, वश्ययन्त्र शान्तियन्त्र, स्तम्भनयन्त्र, आसनपदवास्तुयन्त्र, जलाधिवासनयन्त्र, गन्धयन्त्र, अग्नित्रय होमयन्त्र, अन्नित्रय द्वितीय प्रकार यन्त्र, अग्नित्रय होम मण्डप यन्त्र, उपपीठपद वास्तु यन्त्र, परम सामायिक पद वास्तुयन्त्र, उनपीठ पद वास्तु यन्त्र, नवग्रह होम कुण्ड मण्डल, स्थंडिलपद वास्तु यन्त्र, मंडुकपद वास्तु यन्त्र आदि । श्रीसूरिमन्त्रबृहत् कल्प विवरण' इस कृति को श्री जिनप्रभसूरि ने १३०८ ईसवी के आसपास रचा है। इसमें ये प्रमुख प्रकरण हैं(१) विद्यापीठ (२) विद्या (३) उपविद्या (४) मन्त्रपीठ (५) मन्त्रराज । (१) विद्यापीठ-(मानदेवी वाचनानुगता) द्वादशपदी, (धर्मघोषाम्नायानुगता) त्रयोदश पदी, (पट लेख्या) अष्टादशपदी, चतुर्विंशतिपदी, अष्टपदी (दिगम्बराम्नायानुगता) षोडशपदी (जिनप्रभूसूरि पूर्व परम्परागता) अष्टौ विद्याः तासांजपविधिः फलं च, अशिकेपशमिनी द्वात्रिंशत्स्तुतिपदी, अप्रस्तुता अपि केचन मन्त्रा , अत्यन्तगोप्यानि, आम्नायान्तराणि लब्धि पद प्रभावश्च शल्योद्धारनिर्णय विद्या प्रथम पीठ विवरण समाप्तिश्च । 0. १. भैरवपद्मावतीकल्प, भूमिका, पृ० ७-८ २. सं० मुनि जम्बूविजयजी, सूरिमन्त्र कल्प समुच्चय, भाग १, पृ. ७७-१०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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