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________________ -जैन मन्त्रशास्त्रों को परम्परा और स्वरूप ३७५ से अलग है। इस ज्वालिनी कल्प की एक प्रति स्व० माणिव चन्द्र के ग्रन्थ संग्रह बम्बई में है, जिसमें १४ पत्र हैं और जो विक्रम संवत् १५६२ की लिखी हुई है। कल्याणमन्दिर स्तोत्र ४४ श्लोक परिमाण यह कृति दिगम्बराचार्य श्री कुमुदचन्द्र ने ११२५ ईसवी सन् के लगभग रची है। इसका प्रत्येक श्लोक ऋद्धि मन्त्र एवं यन्त्र से गभित है। इस स्तोत्र पर कई विद्वानों ने ऋद्धि मन्त्र-यन्त्र सहित टीकाएँ लिखी हैं। जैन मन्त्र साहित्य में यह कृति अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है । इस पर कल्याणमन्दिर स्तोत्र मूल, नूतन पद्यानुवाद, अर्थ मन्त्र-यन्त्र ऋद्धि, साधन विधि, गुण, फल तथा श्रीमद्देवेन्द्रकीति प्रणीत कल्याण मन्दिर स्तोत्र पूजा सहित पुस्तक श्री पं० कमलकुमार शास्त्री ने लिखी है।' __ श्री वर्धमान विद्या कल्प ७७ श्लोक परिमाण यह कृति २ श्री सिंहतिलकसूरि ने ईस्वी सन् १२६६ में रची है । इसमें यन्त्र लेखन विधि के साथ वाचनाचार्य मन्त्र, उपाध्याय विद्या, आचार्य तुल्य यति योग्य विद्या आदि का वर्णन किया गया है। श्री वर्धमान विद्याकल्प (द्वितीय)3 ६६ श्लोक परिमाण यह कृति भी श्री सिंहतिलकसूरि ने संवत् १३२३ (ईसवी सन् १२६६) में रची है।" इसमें स्तुति के साथ चतुर्विशति विद्याओं का वर्णन इस प्रकार किया है-श्री ऋषभविद्या, श्री अजितविद्या, श्री सम्भवविद्या, श्री अभिनन्दनविद्या, श्री सुमतिविद्या, श्री पद्मप्रभविद्या, श्री सुपार्श्वविद्या, श्री चन्द्रप्रभविद्या, श्री सुविधिविद्या, श्री शीतलविद्या, श्री श्रेयांस विद्या, श्री वासुपूज्यविद्या, श्री विमलविद्या, श्री अनन्तविद्या, श्री धर्मविद्या, श्री शान्तिविद्या, श्री कुंथुविद्या, श्री अरविद्या, श्री मल्लिविद्या, श्री मुनिसुव्रतविद्या, श्री नमिविद्या, श्री नेमिविद्या, श्री पार्श्वविद्या, श्री वर्धमानविद्या; अन्त तथा में साधन-विधि दी हुई है। मन्त्रराजरहस्यम् ६२६ श्लोक परिमाण यह कृति श्री सिंहतिलकसूरि ने संवत् १३२७ (ई० स० १२७०) में रची है। आचार्य ने इस कृति को निम्न शिर्षकों में विभक्त कर परिपूर्ण किया है। पंचाशल्लब्धि पदानि प्रत्येक तेसां कृत्यकारित्वं च, बष्टचत्वारिंशत्स्तुतिपदी युक्त यन्त्रोल्लेख: जपभेद निरूपणं, सूरिमन्त्रस्य वाचना प्रकाराः, मन्त्रजाप योग्यस्थानादि मन्त्र १. श्री कुन्थुसागर स्वाध्याय, खुरई, म०प्र० से प्रकाशित वीर नि० सं० २४७८ २. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह, सूरिमन्त्र कल्प सन्दोह, पृ० १.६ पर प्रकाशित । ३. वही, पृ० १०-२० । ४. इत्यवचिन्त्य बहुश्रुतमुखाम्बुजेभ्यो मयाऽऽत्मने लिखितः । श्री वर्धमान विद्याकल्पस्त्रि-द्वि-त्रिकेन्दु(१३२३)मितेवर्षे ॥१५॥ श्री विबुधचन्द्रगणभ्रत शिष्यः श्रीसिंहतिलकसूरिमम् । साह्लाद देवतोज्ज्वल विशदमना लिखितवान् कल्पम् ॥६६॥ सं० मुनि जम्बूविजयजी, सूरिमन्त्र कल्पसमुच्चय, भाग १, पृ० १-७४ संयतगुण-त्रयोदश १३२७ वर्षे दीपालिपर्वमदिवसे । साह्लाद देवतोज्ज्वलमनसा पूर्ति मयेदमानीतम् ॥६२६॥ (इति) श्रीयशोदेवसूरि शिष्य श्री विबुधचन्द्रसूरि शिष्य श्रीसिंहतिलकसूरिभिर्मन्त्रराजरहस्यं रचितं । सर्वान ८०० ग्रन्थ श्लोक संख्या ॥ श्रीरस्तु।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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