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________________ २७४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड सम्बन्ध में जिसमें व्यवस्था की गई है. उसको द्रव्यानुयोग कहा है। द्रयानुयोग में दृष्टिवाद आदि को रखा गया है । तर्कशास्त्र में वस्तुस्वरूप का वर्णन दस विभागों में किया गया है१. द्रव्यानुयोग-द्रव्य का विचार । २. मातृकानुयोग-सत् का विचार । ३. एकाथिकानुयोग-एक अर्थ वाले शब्दों का विचार । ४. करणानुयोग-साधन का विचार । ५. अर्पितानर्पितानुयोग-मुख्य और गौण का विचार । ६. भाविताभावितानुयोग–अन्य से अप्रभावित और प्रभावित । ७. बाध्याबाध्यानुयोग-सादृश्य और वैसादृश्य का विचार । ८. शाश्वताशाश्वतानुयोग-नित्यानित्य का विचार । ६. तथाज्ञान अनुयोग-सम्यग्दृष्टि का विचार । १०. अतथाज्ञान अनुयोग-असम्यग्दृष्टि का विचार । हत्थस अतो पावसजतो, वाचाय सञतो समुत्तमो । अज्झतरतो समाहितो, एको सन्तुसितो तमाहु भिक्खु ॥ --धम्मपद २५-३ जिसके हाथ, पैर और वागी में संयम है, जो उत्तम संयमी है, जो अध्यात्मरत, समाधियुक्त, एकाकी और सन्तुष्ट है, उसी को भिक्षु (साधु) कहा जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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