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________________ .-.-.-.-. - -. - - - - - - - - - - - - - - - सेवा : अर्थ और सही समझ साध्वी श्री यशोधरा (युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी की शिष्या) सेवा सामुदायिक जीवन का मौलिक आधार है किन्तु प्रायः लोग भिन्न रुचि वाले होते हैं । इसलिये इस अधिकार का प्रयोग सब लोग एक जैसा नहीं करते हैं, ऐसे लोगों को भगवान् महावीर ने चार वर्गों में विभाजित किया है, यथा-- (१) कुछ लोग दूसरों से सेवा लेते हैं पर देते नहीं। (२) कुछ लोग दूसरों को सेवा देते हैं पर लेते नहीं। (३) कुछ लोग सेवा लेते भी हैं और देते भी हैं। (४) कुछ लोग न सेवा लेते हैं और न देते हैं । सामुदायिक जीवन में तीसरा विकल्प ही सर्वमान्य हो सकता है। संघीय सदस्यों की परस्परता का पहला सूत्र है-सेवा का आदान-प्रदान । यह एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जिसमें परस्पर तादात्म्य, समत्व और अभिन्नता स्थापित होती है। सेवा का अर्थ एक दूसरे के काम में सहभागी होना, राहयोग करना या काम में व्याप्त होना ही नहीं हैयह तो मात्र व्यवहार है। सेवा को गहराइयों में डुबकी लगाएँ तो रहस्य स्वयं उद्घाटित हो जायगा कि सेवा का अर्थ है-समग्रता की अनुभूति का प्रयोग । महावीर के दर्शन की सेवा के सन्दर्भ में समझें तो पाएँगे कि इसकी अन्तर्तप के भेदों में गणना हुई है। जिसके मानस में करुणा का सागर लहराता है, वही दूसरे के दुःख को अपना दु:ख एवं दूसरे की अपेक्षा को अपनी अपेक्षा समझता है, दूसरे के शरीर को अपना शरीर मानता है। ममत्व की ग्रन्थि टूट जाती है और समता की सरिता फूट पड़ती है। आचार्य श्री तुलसी के शब्दों में-- सेवा शाश्वतिको धर्मः, सेवा भेदविसर्जन्म । सेवा समर्पणं स्वस्य, सेवा ज्ञान-फलं महत् ।। सेवा शाश्वत धर्म है । सेवा- यह मेरा है, यह तेरा है, इस भेद का विसर्जन करती है । सेवा सेव्य में विलीन होकर ही की जा सकती है । सेवा ज्ञान की उत्कृष्ट उपलब्धि है। तभी तो अन्तश्चेतना से किसी के ये स्वर मुखर हए सेवाधर्मः परम गहनो योगिनामप्यगम्यः । स्वार्थ की भूमिका से ऊपर उठकर की जाने वाली सेवा में लेखा-जोखा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इस सन्दर्भ में कितनी वेधक हैं ये पंक्तियाँ-- सच्ची सेवा में कभी, रहता नहीं हिसाब । शिशु-सेवा की मात ने रखी कहीं किताब ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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