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________________ ३२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड भी लाभकारी होगा कि शिक्षार्थी समुदाय के शिक्षित नवयुवाओं को अंशकालिक अनुदेशक के रूप में काम देने की संभावनाओं की खोज की जाय । इस प्रकार की व्यवस्था की जाय कि विकास अभिकरणों के कार्यकर्ताओं का उपयोग करना, शिक्षार्थी समूहों में से अनुदेशक चुनना सम्बद्ध जनों में परस्पर ऊँचे दर्जे के समन्वय की अपेक्षा रखती है तथा नियम और कार्य प्रणाली में भी पर्याप्त लचीलेपन की माँग करती है । इसके उपरान्त अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों में संलग्न व्यावसायिक अध्यापकों तथा अन्य कर्मचारियों—अनुदेशकों के लिए प्रशिक्षण तथा अभिनवन की भी आवश्यकता होगी। कुछ समय के लिए व्यावसायिक शिक्षक का उपयोग हो सकता है किन्तु सफलता खतरे में पड़ सकती है। इसमें व्यक्तिश: जांच की प्रणाली विकसित की जायगी। प्रत्येक शिक्षार्थी को अपनी गति से सीखने और आगे बढ़ने का अवसर दिया जायगा । अनौपचारिक शिक्षा में शिक्षार्थियों को प्रेरित करने में स्तर सीखने की क्षमता को भी दृष्टिगत रखना होगा । इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि इसमें औपचारिक शिक्षा के समान परीक्षा आयोजित नहीं होगी। वस्तुतः इसमें किसी विशेष पद्धति पर कोई विशेष जोर नहीं दिया जायगा । मूल्यांकन का मुख्य तरीका प्रेक्षण (Observation) एवं मौखिक परीक्षा के रूप में होगा जिसमें बालक, अध्यापक एवं परिवीक्षक अपना स्व-मूल्यांकन कर सकेंगे। - अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम भारत में अपेक्षाकृत नया है। इसके गर्भ में अनेक संभावनाएँ छिपी हुई हैं। लगन तथा सूझ-बूझ से नये क्षेत्रों में इसके साथ प्रयोग किये जाने चाहिए। इसका आयोजन एवं नियोजन एक जटिल एवं गुरुतर दायित्व का कार्य है । अतः यह आवश्यक है कि जो लोग अनौपचारिक शिक्षा में कार्य करें वे इसके विभिन्न कार्यक्रमों पर गौर करें तथा उन्हें देश को आवश्यकताओं से जोड़ने का प्रयास करें, तभी इसकी सफलता की कामना की जा सकती है। xxxxxxx xxxxxxx X X X X X xxxxx सुवचन सीसं जहा सरीरस्स जहा मूलं दुमस्स य । सव्वस्स साहु धम्मस्स तहा झाणं विधीयते । -इसिभासियाई २२।१३ जैसे शरीर में मस्तक, तथा वृक्ष के लिए उसका मूल--जड़ महत्त्वपूर्ण है, वैसे ही आत्म-दर्शन के लिए ध्यान महत्त्वपूर्ण है। xxxxx X X X X X xxxxxxx xxxxxxx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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