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________________ २४८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड .-. 0 . 0 . 0 . - - . s e .-.-.-.o mtaram.0.0 ..0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.mms ... किया जाता है, तैयारियां समय-समय पर की जाती हैं। इतना विशाल संस्थान होने से यहाँ प्रतिवर्ष कई अतिथियों का आगमन होता है। उनके लिए भी तैयारियाँ करनी पड़ती हैं । अतः छात्रावास जीवन में रहने से विद्यार्थी का एक-दूसरे से सीखने का, समझने का व व्यावहारिक ढंग से रहने का अवसर मिलता है। सहनशीलता रखने का अवसर मिलता है। छात्रावास में अपना स्वयं का बैण्ड है। उसे भी काफी विद्यार्थियों को सिखाया जाता है। इसके अतिरिक्त आस-पास के प्राकृतिक स्थानों में भी छात्रों को वर्ष में एक-दो बार पिकनिक के लिए ले जाया जाता है। समय-समय पर पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी के दर्शन करने हेतु भी ले जाया जाता है। समय-समय पर यहाँ के विद्यार्थी जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, गंगाशहर, बीदासर, लाडनूं, सुजानगढ़, चूरू, उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमन्द, लुधियाना आदि स्थानों पर आचार्य श्री दर्शनार्थ गये हैं। अब तक आचार्य श्री तुलसी के १४ बार दर्शन विभिन्न स्थानों पर किये हैं। छात्र-समितियां छात्रों की देख-रेख, अनुशासन व व्यवस्था के लिए छात्रावास में छात्रसमितियाँ भी हैं। उन समितियों के लिए यहाँ चुनाव प्रणाली नहीं है। जो विद्यार्थी कार्यक्षेत्र में रुचि रखते हैं, जिनमें सेवा की भावना है उन्हें अधीक्षक द्वारा उनकी रुचि का काम सौंप दिया जाता है। प्रत्येक कमरे का एक मानीटर होता है जिसे छात्रावास में दलमन्त्री के नाम से पुकारा जाता है (दल का अर्थ कमरा है)। उसके आदेश-निर्देश से उसके कमरे के विद्यार्थी समयचक्रानुसार कार्य करते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी की रिपोर्ट देना दलमन्त्री का कर्तव्य है। इसी तरह सदन में एक सदनप्रधान मनोनीत किया जाता है, जो पूरे सदन पर नियन्त्रण रखता है व हर कार्य-क्रम में जागरूक रहने के लिए जागरूक करता रहता है। इसी तरह छात्रावास में योग्य विद्यार्थी को छात्रप्रमुख की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। कुछ समितियों के प्रधान इस प्रकार हैं१. भोजन-प्रधान २. सदन-प्रधान ३. छात्र-प्रमुख, ४. व्यायाम-प्रधान, ५. सांस्कृतिक प्रधान, ६. धोबी-प्रधान । इस तरह काफी विद्याथियों को स्वयं अनुशासित रहने का व दूसरे से अनुशासन रखवाने का बड़ा सुन्दर अवसर मिलता है। स्वावलम्बी जीवन यहाँ के छात्रावास का जीवन पूर्ण स्वावलम्बी जीवन है । घर छोड़ने के पश्चात् विद्यार्थी को बहुत से कार्य अपने हाथों से करने पड़ते हैं। यद्यपि जिन कार्यों को उन्होंने घर पर कभी हाथ भी नहीं लगाया है वे उन्हें यहाँ करने पड़ते हैं। उन्हें तरह-तरह के कार्य सीखने का अवसर मिलता है। स्वावलम्बन के कार्यों का ब्यौरा इस प्रकार है (१) अपने स्वयं के कपड़ों की स्वच्छता, (२) अपने थाली, कटोरी, लोटा साफ करने का अवसर. (३) कमरे को साफ-सुथरा रखने की प्रवृत्ति, (४) फटे हुए कपड़ों को सीना व बटन लगाना, (५) अधीक्षकों द्वारा बताए हए छात्रावास के प्रांगण में श्रमदान करना, (६) बगीचे में कार्य करने का अवसर भी उन्हें मिलता है जिससे पेड़-पौधों की जानकारी का अवसर मिलता है, (७) अकेले यात्रा करने का अवसर । दैनिक उपस्थिति का तरीका प्रतिदिन ४५० विद्यार्थियों की उपस्थिति केवल दस मिनट के अन्दर ले ली जाती है। मुख्य गृहपति श्री मूलसिंह जी चूण्डावत इस कार्य को बड़ी आसानी से कर लेते हैं। उनकी देख-रेख में अन्य गृहपति भी इस कार्य में दक्ष हो गये हैं । घण्टी लगने पर सामूहिक रूप से दल के अनुसार बैठने की प्रवृत्ति शुरू से डाली जाती है। दलमन्त्री अपने दल की उपस्थिति लेकर क्रमशः अपनी रिपोर्ट दे देते हैं। इस प्रकार उपस्थिति का कार्य बहुत शीघ्र निपट जाता है । यह कार्य प्राय: सुबह और सायं की प्रार्थना के समय होता है। Jain Education International For Povate & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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