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________________ श्री जैन तेरापंथ महाविद्यालय, राणावास १६७ संघ द्वारा महाविद्यालय के संचालन का गुरुतर दायित्व ग्रहण किया गया। इस वर्ष प्रो० जी० एल० माथुर को महाविद्यालय के प्राचार्य के रूप में तथा प्रो० डी० वी० सी० भण्डारी, सहित तीन व्याख्याताओं को नियुक्त किया गया । सन् १९७५ में राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता मिलने पर कला महाविद्यालय के प्राचार्य के रूप में प्रो० आर० पी० शर्मा तथा चार अन्य व्याख्याताओं की और नियुक्ति की गई । जब जुलाई, १९७६ में कला महाविद्यालय तथा वाणिज्य महाविद्यालय को समन्वित करके श्री जैन तेरापंथ महाविद्यालय के रूप में इसका स्वरूप परिवर्तित किया गया तो नये प्राचार्य के रूप में जुलाई, १९७६ में प्रो० एस० सी० तेला ने कार्य भार सम्हाला। उसके बाद तो इस महाविद्यालय के स्टाफ में निरन्तर अभिवृद्धि हो रही है। वर्ततान में कला संकाय, वाणिज्य संकाय के प्राध्यापकों सहित पुस्तकालयाध्यक्ष, शारीरिक प्रशिक्षक, कार्यालय अधीक्षक एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के रूप में बीस से अधिक व्यक्तियों का स्टाफ है। छात्र प्रवेश-महाविद्यालय के द्वार सभी के लिये खुले हैं। धर्म, जाति, वर्ग आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है। विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार प्रवेश दिया जाता है। प्रत्येक विद्यार्थी को प्रवेश आवेदन-पत्र प्रस्तुत करना होता है। प्रवेश से पूर्व प्रत्येक विद्यार्थी को प्रवेश-समिति एवं प्राचार्य जी के सम्मुख साक्षात्कार हेतु उपस्थित होना होता है। प्रवेश के समय विद्यार्थी के आचरण, चरित्र आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है । अवांछनीय विद्यार्थियों को प्रवेश से तुरन्त रोक दिया जाता है। इस महाविद्यालय की यह एक उल्लेखनीय विशेषता है कि वह संख्या से मोह नहीं रखता। विद्यार्थी भले ही कम हों, परन्तु जो भी हों वे शुद्ध आचरण वाले एवं चरित्रवान हों । महाविद्यालय प्रवेश संख्या में अभिवृद्ध हेतु प्रतिवर्ष प्रवेश-अभियान चलाया जाता है, समाचार पत्रों में प्रवेश-सूचना प्रकाशित कराई जाती है तथा एक मुद्रित प्रवेश-सूचना विज्ञप्ति भी आस-पास के क्षेत्र में प्रेषित की जाती है। छात्र संख्या कालेज कला संकाय वाणिज्य संकाय क्र० सत्र प्रथम द्वितीय तृतीय योग प्रथम द्वितीय तृतीय योग बहद योग दोनों सं० वर्ष वर्ष वर्ष । वर्ष संकाय १. १९७५-७६ १६ - - १६ १६ २. १९७६-७७ १२ १० - २२ ३१ १३ ३. १९७७-७८ १३ ०८ १० ३१ ४५ २६ १२ ८३ ११४ ४. १९७८-७६ २१ १४० ५. १६७६-८० ०३२३६७ ३६ १६ १२५ १४८ ६. १९८०-८१ १६ १५७ १८८ सत्र एवं समय महाविद्यालय में राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित तिथियों के अनुसार सत्र का प्रारम्भ और सत्र की परिसमाप्ति होती है। महाविद्यालय में एक ही पारी (शिफ्ट) का संचालन होता है, जिसका समप सामान्यत: प्रातः १०-३० बजे से सायं ४-३० बजे तक रहता है। महाविद्यालय के कार्य का प्रारम्भ प्रतिदिन प्रार्थना से होता है और उसमें सभी कक्षाओं के विद्यार्थी सम्मिलित होते हैं। संकाय एवं विषय महाविद्यालय में कला एवं वाणिज्य संकायों का संचालन होता है। दोनों संकायों में स्नातक स्तर की कक्षाओं के अध्ययन की सुविधाएं उपलब्ध हैं। वर्ष १६७ २ ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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