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________________ १७४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड mmmm. mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm...mm.me.mart इसी वर्ष संघ का संविधान स्वीकृत कर सरकार से रजिस्ट्रेशन संख्या १००/४६-४७ से कराया गया । अपूर्व योगदान १. श्री केसरीमलजी सुराणा ने अपने बुलारम के वाणिज्य-व्यवसाय का परित्याग कर संयमी एवं आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिये सन् १९४७ में यहाँ पधारकर स्थायी निवास किया । इन्होंने अपना सारा समय सामायिक और धर्म-जागरणा करने तथा चारित्रात्माओं की सेवा करने में लगाने का निश्चय किया। साथ ही संघ की प्रवृत्तियों को सुसंचालित करने और उन्हें सुदृढ़ बनाने के लिए समय देना प्रारम्भ कर दिया। तब से अब तक इतना लम्बा समय हो गया है, फिर भी ये दिन दूनी और रात चौगुनी सुरुचि एवं उत्साह से संघ की उन्नति में भगीरथ प्रत्यन कर रहे हैं। २. श्री दयालसिंहजी गहलोत निवासी ब्यावर को दि० १४ नवम्बर, १९४७ ई० को प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्ति की गई। ये संयमी तथा सदाचारी और गांधीवादी विचारों के व्यक्ति हैं । इनके १३ वर्ष के कार्यकाल में विद्यालय तथा छात्रालय दोनों की प्रवृत्तियों में अत्यधिक उन्नति हुई । इनके समय में कक्षा ८, ६ एवं १० प्रारम्भ की गईं । प्रथम बार सन् १९५७ में कक्षा १० के १६ छात्र बोर्ड की परीक्षा में बैठे और परिणाम ८४ प्रतिशत उत्तीर्ण का रहा । इसके पश्चात भी परिणाम उच्च स्तर पर ६८ प्रतिशत के रहे हैं। ३. श्री जसवन्तमलजी सेठिया, श्री डूंगरमलजी सांखला एवं श्री कुन्दनमलजी सेठिया ने मद्रास, बेंगलौर और कोलार आदि क्षेत्रों में चन्दा एकत्रित करने के लिए यात्राएं की जिनमें करीब एक लाख रुपये संग्रह किये । इस यात्रा में श्री अमोलकचन्दजी मूथा निवासी, बेंगलोर का आर्थिक सहयोग उल्लेखनीय था। आदर्श निकेतन छात्रावास का निर्माण दिनांक १४-८-४७ ई० को संघ का वार्षिकोत्सव श्री डूंगरमलजी सांखला की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इसमें सर्व सदस्यों की यह सम्मति रही कि छात्रों को पढ़ाने, रखने एवं भोजन की समुचित व्यवस्था के लिये निजी भवन निर्मित किये जायें । फलस्वरूप सर्वसम्मति से विद्यालय, छात्रावास एवं भोजनालय के पक्के भवन बनाने की स्वीकृति प्रदान की गई । साथ ही कमरों पर नामांकन शिलालेख लगाकर धनराशि प्राप्त करना स्वीकृत किया गया। श्री जसवन्तमलजी सेठिया के निर्देशन में श्री डी० एम० रांका द्वारा निर्मित नक्शा स्वीकार किया गया । फलत: मिति वैशाख शुक्ला ३ (अक्षय तृतीया) संवत् २००५ के शुभ मुहूर्त में संघ के प्रधानमंत्री श्री जबरमलजी भण्डारी, जोधपुर के करकमलों द्वारा भवन का शिलान्यास किया गया। श्री मोतीलालजी रांका के नेतृत्व एवं श्री केसरीमलजी सुराणा के निरीक्षण में निर्माण कार्य द्रुत गति से प्रारम्भ हुआ। दो वर्ष के अल्पकाल में यह दो मंजिला भवन (२६ कमरे, आगे बरामदा, बीच में बड़ा हाल, दायें-बायें ऊपर चढ़ने की नाल) तैयार हो गया जिसमें उस समय १,५२,०००) एक लाख बावन हजार रुपये व्यय हुए, इसका उद्घाटन तेरापंथ समाज के प्रतिष्ठित श्रावक एवं समाजभूषण श्री छोगमलजी चोपड़ा नि० गंगाशहर के करकमलों द्वारा मिति आश्विन शुक्ला १० संवत् २००७ तदनुसार दि० २० अक्टूबर १९५० ई० को सम्पन्न हुआ। साथ ही भोजनालय में रसोईघर, भण्डारघर, जीमने का बड़ा हाल आदि भी निर्मित किये गये। भवन के छोटे कमरों पर २५००) रुपये और बड़े कमरों पर ५०००) रुपये देने वाले दानदाताओं के नाम के शिलालेख लगाये गये। नीचे के हाल पर सब मिलाकर २५०००) रुपये देने वाले श्री बस्तीमलजी छाजेड़ नि० सिरियारी और ऊपर के हाल पर सब मिलाकर १००००) रुपये देने वाले श्री राजमलजी सुमेरमलजी सुराणा के नाम के शिलालेख लगाये गये। विद्यालय के लिए पृथक नया भवन सन् १९५० ई० में आदर्श निकेतन भवन की पहली मंजिल में छात्रालय और ऊपर की मंजिल में विद्यालय प्रारम्भ कर दिये। श्री दयालसिंहजी गहलोत, प्रधानाध्यापक की देख-रेख में अमापन कक्षा १ से ८ तक निरन्तर चलता रहा। समाज के दानवीर सज्जनों के आर्थिक सहगोग, प्रबुद्ध व्यक्तियों की सप्रेरणा, श्री केसरीमलजी सुराणा के क्रियात्मक सहयोग से संघ की आर्थिक स्थिति मुढ़ होती रही, जिससे छात्रों की वृद्धि ३८५ हो गयी। 0--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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