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________________ श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास का इतिहास १७३ 108 ONGS SAO 04 (ई) सदस्यों द्वारा श्री जसवन्तमलजी सेठिया और डूंगरमल जी सांखला को निवेदन किया गया कि वे संघ के व्यवस्थित संचालन के लिए एक संविधान का निर्माण कराकर आगामी बैठक में प्रस्तुत करें और उसके अनुसार संघ का रजिस्ट्रेशन कराया जावे । (उ) संघ की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने तथा दैनिक व्यय को वहन करने के लिए उपस्थित महानुभावों से निवेदन किया गया तो सबने ही उदार हृदय से आर्थिक सहयोग देने आश्वासन दिया। (ऊ) राणावासवासियों ने उस दिन १००००) रु० दस हजार रुपये का चन्दा लिखकर कार्य का शुभारम्भ किया जिसमें २५००) रु० श्री प्रतापमलजी मिश्रीमल जी सुराणा, २५००) रु० श्री सुमेरमलजी गणेशमलजी सुराणा, २५००) रु० श्री केसरीमलजी भंवरलालजी सुराणा, १०००) रु० श्री गणेशमलजी बरलोटा की सहयोग भावना उल्लेखनीय थी। (ए) श्री जसवन्तमलजी सेठिया, श्री डूंगरमलजी सांखला, श्री ओकचन्दजी संचेती, श्री चुनीलाल जी सियाल आदि व्यक्तियों ने जोरावर, खीमाड़ा, जाणुन्दा और रामसिंह का गुड़ा आदि गांवों में जाकर करीब ६ माह में अनुमानत: ४०,०००) चालीस हजार रुपये का चन्दा मंडाया और संघ की स्थिति को सुदृढ़ किया । प्रगति की ओर अग्रसर श्री मिश्रीमलजी सुराणा, स्थानीय उपमंत्री की देख-रेख में बौद्धिक, आध्यात्मिक और चारित्रिक शिक्षण का यह अंकुर शनैःशनैः विकसित होता रहा । सत्र के अन्त में छात्रों की संख्या १४ तक और दूसरे वर्ष १९४५-४६ ई० में १०२ तक बढ़ गई । श्री जोधसिंह तलेसरा निवासी उदयपुर के प्रधानाध्यापक काल में कक्षा ४ और ५ भी खोल दी गई जिससे आस-पास के गांवों में संघ का नाम एवं प्रभाव व्याप्त हो गया। सन् १९४६ और १९४७ में क्रमश: कक्षा ६ और ७ भी प्रारम्भ कर दी गईं जिससे छात्रों की अधिक वृद्धि हुई । फलतः स्थान एवं कमरों की कमी हुई। इसके लिये श्री राजमलजी सुमेरमलजी सुराणा ने अपना बड़ा भवन ८ कमरों वाला विद्यालय के लिये वार्षिक ५००) रुपये किराये पर (प्रथम वर्ष का नहीं लिया) दिया एवं श्री हस्तीमलजी गादिया, निवासी रामसिंह का गुड़ा ने अपना बड़ा मकान एक वर्ष के लिये और बाद में श्री जुगराजजी गादिया, निवासी रामसिंह का गुड़ा ने अपना बड़ा मकान दो वर्ष तक छात्रालय के लिये निःशुल्क किराये पर दिया जिससे छात्रों के पढ़ने एवं रहने तथा भोजन को समुचित व्यवस्था और सुख-सुविधा उपलब्ध होती रही। इसी बीच श्री लादूलालजी मेहता, निवासी जोधपुर का प्रधानाध्यापक के रूप में कार्य सन्तोषप्रद रहा जिससे छात्रों की वृद्धि एवं संघ की कीर्ति बढ़ती रही। संघ के उन्नयन में अध्यक्ष श्री छोगमलजी चोपड़ा, श्री डूंगरमलजी सांखला, श्री हस्तीमलजी गादिया तथा मंत्री श्री मोतीलालजी रांका, श्री जबरमलजी भण्डारी एवं श्री केसरीमलजी सुराणा आदि अन्यान्य सज्जनों का सक्रिय सहयोग प्राप्त होता रहा । भूमि अधिग्रहण दिनांक २७-४-१९४६ ई० की बैठक में सदस्यों ने यह अनुभव किया कि संघ को स्थाई और विशाल संस्थान का रूप देने के लिये तथा विद्यालय व छात्रालय के भवनों के लिये लम्बी-चौड़ी भूमि की आवश्यकता है। इसके लिये श्री केसरीमलजी सुराणा, श्री जवानमलजी सुराणा एवं श्री रूपचन्दजी भण्डारी ने मलसा बावड़ी के ठाकुर श्री खुमाणासिंहजी राठौड़ से स्टेशन पर भूमि बेचने का निवेदन किया। उन्होंने २० बीघा भूमि २०००) दो हजार रुपयों में और २ बीघा भूमि अपनी ओर से निःशुल्क देकर बिक्रीनामा लिख दिया। यह भूमि रेलवे स्टेशन से २०० गज ही दूर पूर्व दिशा की ओर रेलवे लाइन की दक्षिण दिशा में है। शीघ्र ही इसके चारों ओर पक्की ईटों की दीवाल बनाकर कब्जा किया गया व नैऋत्यकोण में एक पक्के कुएं का निर्माण भी कराया जिसमें उस समय ५००० रुपये व्यय हुए। S RANA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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