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________________ १६४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड सिरियारी नगर स्वामीजी का चरम संस्कार-स्थल होने से पूर्व भी स्वामीजी से काफी सम्बन्धित रहा है। स्वामीजी जब गृहस्थावस्था में थे तब उनका विवाह यहाँ के बांठिया परिवार में हुआ था। तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के अवसर पर तेरापंथ प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के जीवन से सम्बन्धित स्थानों के जीर्णोद्धार की एक विशाल योजना बनी । सिरियारी की वे हाटें, जिनमें आचार्य श्री भिक्षु ने सात चातुर्मास किये तथा संस्कार-स्थल के चबूतरे का जीर्णोद्धार योजना में था। समाज के मूक व प्रगतिशील युवक नेता श्री सम्पतकुमारजी गधैया इन स्थलों की खोज में सिरियारी आये । चबूतरे की खोज करना आसान काम नहीं था, कारण कि नदी के प्रवाह से चबूतरे के पत्थर अस्त-व्यस्त हो चले थे किन्तु गधयाजी निराश नहीं हुए। इस स्थल का पता लगाने की चाव बनी रही। इसी बीच यहाँ के एक कर्मठ कार्यकर्ता श्री बस्तीमली छाजेड़ मिले और अब ये लोग इस दुर्गम कार्य को करने की भावी योजना बनाने लगे। बगड़ी निवासी कुन्दनमलजी सेठिया, श्री मोतीलालजी राका आदि व्यक्तियों ने मिलकर निश्चय किया कि राणावासनिवासी काका साहब श्री केसरीमलजी सुराणा का सहयोग प्राप्त करना अति आवश्यक है । अतः ये सभी महानुभाव काका साहब के पास अपनी योजना लेकर आये । काका साहब को यह योजना सुन्दर प्रतीत हुई और इन्होंने अपना अमुल्य समय इस योजना में लगाया । भावी तैयारी के बाद स्मारक निर्माण समिति गठित की गई और इन स्थलों के जीर्णोद्धार का कार्य प्रारम्भ किया गया । काका साहब व अन्यों के अथक परिश्रम के फल से गांव सिरियारी के बाहर नदी के तट पर पहाड़ की तराई में भिक्ष स्मारक रूपी भव्य भवन बनाया गया जो अब उस अतीत की याद दिला रहा है। अन्तेवासी शिष्य की जन्मभूमि आचार्य भिक्ष के प्रिय शिष्य मुनि श्री हेमराजजी का भी सिरियारी के साथ महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध रहा है। हेमराजजी स्वामी का जन्म सिरियारी में ही आछा ओसवाल वंश में हुआ। हेमराजजी स्वामी वृद्ध अवस्था में यहाँ पधारे। आपका शरीर अस्वस्थ हो गया तथा आपका भी यहीं समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। खोज से पता चलता है कि आपके प्रमुख श्रावक यहाँ पर थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह नगर तेरापंथ समाज का प्रमुख तीर्थ है । तेरापंथ समाज के साथ इस नगर का गहरा सम्बन्ध है और भविष्य में भी इसका सम्बन्ध अधिक बढ़ता रहेगा। 0000 कांठा के तेरापंथी तीर्थ (४) विद्याभूमि राणावास प्रो० पी० एम० जैन (इतिहास-विभाग, जैन तेरापंथ महाविद्यालय, राणावास) प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण, भौतिक वातावरण से परे, शहरों की चकाचौंध से दूर, वीर-भूमि राजस्थान के हृदय-स्थल में, मेवाड़-मारवाड़ की सीमा-रेखा पर कांठा प्रान्त में, अरावली पर्वतमाला के गोरम पहाड़ की तलहटी में प्राकृतिक छटा से सुशोभित, तेरापंथ के आद्य-प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्ष स्वामी के निर्वाण-स्थल सिरियारी के समीपवर्ती विद्या-केन्द्र, शान्त वातावरण से युक्त, स्वास्थ्यानुकूल जलवायु से परिवेष्ठित मारवाड़ जंकशन-उदयपुर रेल मार्ग पर स्थित विद्यानगरी राणावास की ख्यातिरूपी कस्तूरी की सौरभ स्वतः विकीर्ण होती रही है। मरुभूमि में राणावास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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