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________________ १३६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड .............................................................. जय भिक्षु जय तुलसी कर्मठ नर-रत्न, कर्मयोगी श्रद्धय काका साहब श्रीमान केसरीमलजी सुराणा पवित्र चरणों में समर्पित RSSESESEDESESESEBEDES अभिनन्दन-पत्र 889RESESESENSESERES मान्यवर ! हम आदर्श निकेतन के छात्र परम विनीत भाव से श्रद्धापूर्वक आपके कर-कमलों में इस अभिनन्दन पत्र को समर्पित करते हुए अत्यन्त गौरव का अनुभव कर रहे हैं । आपका अध्यात्म से परिपूर्ण जीवन न सिर्फ समाज वरन् राष्ट्र के लिए एक ऐसी प्रज्वलित मशाल है जिसका भारतीय लोक-जीवन में दूसरा उदाहरण मिलना कठिनतम है। महानुभाव ! सादा जीवन की प्रतीक आपकी वेशभूषा, प्रेम से आतप्रोत प्रसन्न मुख, अचूक व अविलम्बित निर्णय प्रवृत्ति हमको आपकी स्पष्ट जीवन-प्रणाली से स्वाभाविक प्राप्त हुए हैं। उन्हें अपने जीवन में सोत्साह उतारने में ही अपना कल्याण समझेंगे। इन अबोध बालकों का 'प्रिय छात्रो' ऐसे शब्दों द्वारा संबोधन करते हुए सुबोध व प्रबोध करने हेतु कष्ट उठाकर भी आपने हृदय में प्रसन्नता ही अनुभव की है। श्रद्धेय काका साहब ! आपकी संयम वृत्ति, सन्तोषी प्रकृति, सतत अध्ययनशीलता, आध्यात्मिक रुचि और कठोर तपश्चर्या का ही यह पुण्यप्रताप है कि हम राणावास, जैसे छोटे से स्थान में विश्व वंद्य, अणुव्रत आन्दोलन के अनुशास्ता, युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी की असीम कृपा से प्रतिवर्ष चारित्रात्माओं के चातुसि एवं शेष काल में सद् संगति और प्रवचनों का लाभ उठाते रहे हैं और ज्ञान-दर्शन-चारित्र की त्रिवेणी में स्नान करते रहे हैं । शिक्षा एवं समाजसेवी ! __राणावास जैसा छोटा स्थान विद्यानगरी बना है, जिस राणावास को कोई नहीं जानता था उसे सारा भारतवर्ष जानने लग गया है यह सब निरन्तर आपके प्रयासों का सुफल है । आपने शिक्षा-जगत में जो योग दिया है वह अद्वितीय स्थान रखता है । इन सब कार्यों में आपकी धर्मपत्नी परम श्रद्धे या श्रीमती सुन्दरबाई सुराणा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है अतः हम सभी छात्र उनके बड़े आभारी हैं। कर्मठ लोह पुरुष ! आप अपनी बात के व धुन के धनी हैं । आपने जिस काम को हाथ में लिया उसे पूरा करके ही दम लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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