SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड एक विभूति तू समाज का सच्चा सेवक, कर्मयोगी, नरपुंगव है। तपोपूत और बड़ा लाड़ला, कांठा का महामानव है ।। तू तेजस्वी, तू है प्ररक, अभिनन्दन होता तेरा। किया स्वयं को समाज-अर्पण, तुझको शत-शत वन्दन है। तू समाज का महासुधारक, बड़ा क्रान्तिकारी है। ढोंग और आडम्बर को टक्कर तूने दे मारी है। छआछ त, पर्दा, दहेज की रूहें तुझ से कांप रहीं। जन्म, विवाह, मृत्यु कुरीतियां तुझ से ही तो हारी हैं। श्रावक हो तुम या साधु हो, या दोनों का मिश्रण हो। जो कुछ भी हो तुम महान् हो, एक विभूति अनुपम हो । त्यागी और तपस्वी संयम और साधना तुम ही हो। आत्म-उन्नति के रास्ते पर चलने वाले मानव हो। सामायिक के तुम प्रतीक हो, मौन तुम्हारा साथी है। क्रमशः यह उन्नीस, व सत्रह घण्टे की हो जाती है। ढाई घण्टे सोते हो तुम, ब्रह्मचर्य के पालक हो। साधु-सा है तेरा जीवन, यह धरती गुण गाती है । अखिल भारतीय महिला शिक्षण-संघ तूने बना दिया। नारी-जाति की उन्नति के लिए काम क्या-क्या न किया। ज्ञान-प्रभा की इन किरणों से नारी आगे बढ़ गई। पिछड़ेपन से उसे उबारा, महिला को सद्ज्ञान दिया ।। 0 श्रीमती स्वरूप जैन, ब्यावर 00 लोह पुरुष - श्री जयचन्द गोलछा 'सहन' (सिरसा) वीर केसरी तू इस युग का, करता है जग तेरा मान । राणाजी की तपो-भूमि कातू अनुदानी सन्त महान । लोह-पुरुष बन धर्म-संघ काकिया है तूने अनुपम काम । राणावास की मरु-धरा कोबना दिया है विद्या-धाम । जैन-जगत के स्वर्ण-पृष्ठ परहोगा अंकित तेरा नाम । कर्मठता की गौरव-गाथागायेंगे नर आठों याम । बन कर साधक निष्ठाओं कापाया तूने अद्भुत मोड़। 'सहन' विश्व के रंग-मंच परकौन करेगा तेरी होड़। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy