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________________ श्रद्धा-सुमन संत या समाज-सेवक श्री भंवरलाल सांखला करीब नौ वर्ष के दीर्घ-काल तक मुझे पूज्य काका पवित्र और महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है, जिसे सदा गौरवशाली साहब के संसर्ग में रहने का अवसर मिला । मेरे खयाल से बनाये रखना प्रत्येक शिक्षक का कर्तव्य है । अपने व्यावकिसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को परखकर इसका अपने पर सायिक दायित्वों की अनुपालना, मैं पूज्य काका साहब की प्रभाव पड़ जाने हेतु उक्त अवधि पर्याप्त होती है । मैं काका प्रेरणा से अल्पांश मात्रा में ग्रहण कर पाया है । आशा है साहब द्वारा संचालित श्री सुमति शिक्षा सदन उच्च माध्य- ईश्वर मुझे उन्हें पूरा करने की शक्ति प्रदान करेगा। मिक विद्यालय में एक अध्यापक के पद पर कार्यरत था। समाज-कल्याण में कार्यरत काका साहब आत्म-कल्याण यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे उक्त संस्था में एक बहुत में किसी संत से पीछे नहीं है। एक संन्यासी की तरह पूर्ण लम्बे समय तक सेवा करने का अवसर मिला। यहाँ की त्यागमय जीवन यापन करते हुए समाज की भी बड़ी भारी चिर-स्मरणीय उपलब्धियाँ मेरे जीवन में सदा रहेंगी शिक्षक सेवा कर रहे हैं । अत: मैं प्रायः यह सोचा करता हूँ कि के गौरव को बढ़ा देने वाली अनेक बातें मुझे इस महापुरुष यह महापुरुष एक संत है या समाज-सेवक ? की प्रेरणा से सीखने को मिलीं। अध्यापन-व्यवसाय एक सफल समाज-सुधारक " श्री गजराज के० सेमलानी (रानी) आपको समाज-सुधारक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नारी-शिक्षा के आप पक्ष में हैं। आज हमारे समाज नहीं होगी। आज आप समाज में व्याप्त कुप्रथाओं में नारी-शिक्षा की भारी कमी है। यह कहकर स्कूल छुड़वा और कुरीतियों को दूर करने की और स्वच्छ दिया जाता है कि आखिर लड़की को बड़ा होकर चूल्हा समाज की स्थापना की मशाल हाथ में थामे हुए हैं । बाल फूंकना है। इस कारण आज कई लड़कियाँ अज्ञानता विवाह, अशिक्षा, पर्दाप्रथा, मृत्यु-भोज और दहेज-प्रथा का की अंधेरी कोठरियाँ में ही भटक रही हैं। उन्हें ज्ञान व आज मानव में रेगिस्तान की तरह फैलाव हो रहा है। उच्च शिक्षा का प्रकाश चाहिए। आप ऐसा प्रकाश दिलाने आप इन्हें समूल नष्ट करने के लिये कृतसंकल्प हैं। इसके की कोशिश में लगे हैं । आपकी वजह से राणावास में आज लिये आपने अपने आपको व अपने परिवार को उदाहरण छात्राओं की शाला और छात्रावास में काफी विकास के लिए प्रस्तुत किया है। अर्थात् इन कुरीतियों को दूर हुआ है। करने की शुरुआत आपने अपने घर से की है। 00 समुद्र की तरह गहरे श्री उगमराज के० धोका (रानी) श्री सुराणाजी महान् समाज-सुधारक के गुणों से ही समाज-सेवी एवं दानदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता परिपूर्ण नहीं है अपितु बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी भी हैं। है। आपकी मधुर वाणी रससिक्त है। पत्थर का हृदय भी आपका हृदय अथाह समुद्र की भाँति गहरा है। आपका मोम बनके रह जाता है और परिणाम यह होता है कि स्वभाव बड़ा ही सरल है। आपकी मधुर वाणी में लाखों आपकी बात को तत्काल स्वीकार करना पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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