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________________ जैन धर्म और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान १८३ सुन्दर व नीरोग रखने के लिए तथा आयुपर्यन्त शरीर की रक्षा के लिए निर्दुष्ट, परिमित, सन्तुलित एवं सात्त्विक आहार ही सेवनीय होता है । आहार में कोई भी वस्तु ऐसी न हो जो स्वास्थ्य के लिए अहितकर अथवा रोगोत्पादक हो। अत: सदैव शुद्ध और ताजा भोजन ही हितकर होता है । आहार सम्बन्धी विधि-विधान के अनुसार उचित समय पर भोजन करने का बड़ा महत्व है। जो लोग समय पर भोजन नहीं करते वे अक्सर आहार एवं उदर सम्बन्धी व्याधियों से पीड़ित रहते हैं । आहार-भोजन के समय के विषय में जैनधर्म का दृष्टिकोण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं वैज्ञानिक है । यद्यपि यह तो निर्देशित नहीं किया गया है कि मनुष्य को भोजन किस समय कितने बजे तक कर लेना चाहिए ? किन्तु उसकी मान्यता एवं दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्य को सूर्यास्त के पश्चात् अर्थात् रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। इसका धार्मिक महत्त्व तो यह है ही कि रात्रिकाल में भोजन करने से अनेक जीवों की हिंसा होती है. किन्तु इसका वैज्ञानिक महत्त्व एव आधार यह है कि हमारे आसपास के वातावरण में अनेक ऐसे सूक्ष्म जीवाण विद्यमान रहते हैं जो दिन में सूर्य की किरणों से नष्ट हो जाते हैं । रात्रि में सूर्य की किरणों के अभाव में वे सूक्ष्म जीवाण विद्यमान रहते हैं और वे हमारे भोजन को दूषित, मलिन ब विषमय कर देते हैं । वे भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रविष्ट होकर शरीर में विकृति उत्पन्न कर देते हैं । दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि स्वास्थ्य विज्ञान एवं आहार पाचन सम्बन्धी नियमानुसार हम जो आहार ग्रहण करते हैं वह मुख से गले के मार्ग द्वारा सर्वप्रथम आमाशय में पहुँचता है, जहाँ उसकी वास्तविक परिपाक क्रिया प्रारम्भ होती है। परिपाक हेतु वह आहार आमाशय में लगभग चार घण्टे तक अवस्थित रहता है। उसके बाद वह आमा गय से नीचे क्षुद्रान्त्र में पहुँचता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि जब तक भोजन आमाशय में रहता है तब तक मनुष्य को जाग्रत एवं क्रियाशील रहना चाहिए। क्योंकि मनुष्य की जाग्रत एवं क्रियाशील अवस्था में ही आमाशय की क्रिया संचालित रहती है । मनुष्य की सुषुप्त अवस्था में आमाशय की क्रिया मन्द हो जाती है जिससे भुक्त आहार के पाचन में बाधा एवं विलम्ब होता है । अत: यह आवश्यक है कि मनष्य को अपने रात्रिकालीन शयन से लगभग ४-५ घण्टे पूर्व ही भोजन कर लेना चाहिए, ताकि उसके शयन करने के समय तक उसके भुक्त आहार का विधिवत् सम्यक् पाक हो जाय । इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को सायंकाल ६ बजे या इसके कुछ पूर्व ही भोजन कर लेना चाहिए । क्योंकि मनुष्य के शयन का समय सामान्यतः रात्रि को १० बजे या उसके आसपास होता है। अत: जैन दर्शन का यह दृष्टिकोण कितना महत्त्वपूर्ण एवं वैज्ञानिक आधार लिए हुए है कि मनुष्य को सूर्यास्त के पूर्व ही भोजन कर लेना चाहिए। इसी प्रकार जब वह सायंकाल ६ बजे या उसके आसपास भोजन करता है तो आधुनिक चिकित्सा से अनुसार दो भोजन कालों का अन्तर सामान्यत: न्यूनातिन्यून आठ घण्टे का होना चाहिए। इसका अभिप्राय यह हुआ कि जो व्यक्ति सायंकाल ६ बजे भोजन करना चाहता है तो उसे आवश्यक रूप से प्रातःकाल १० बजे या इसके आसपास भोजन कर लेना चाहिए। जो व्यक्ति प्रातः १० बजे भोजन करता है वह स्वाभाविक रूप से सायंकाल ६ बजे तक बुभुक्षित हो जायगा । अत: स्वास्थ्य के नियमों में ढला हुआ और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरने वाला जैन धर्म के द्वारा प्रतिपादित आहार सम्बन्धी नियम न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य का विकास करने वाला है, अपितु उसके स्वास्थ्य की रक्षा करता हुआ मानव-शरीर को नीरोग बनाने वाला और उसे दीर्घायुष्य प्रदान करने वाला है। रात्रिकालीन भोजन के निषेध के सम्बन्ध में एक यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि आधुनिक चिकित्सा सिद्धान्त में कहीं भी यह उल्लेख नहीं मिलता है कि किसी भी रोगी को रात्रिकाल में उसके पथ्य की व्यवस्था की जाय। दिन में ही रोगी को पथ्य देने की व्यवस्था की जाती है। प्रातःकाल और सायंकाल के हिसाब से दो समय ही भोजन दिया जाता है । अर्थात् रात्रि को भोजन नहीं दिया जाता। आहार सम्बन्धी नियम की यह मान्यता निश्चय ही जैनधर्म की आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को एक महत्त्वपूर्ण देन है। प्रकृति के नियमानुसार मनुष्य को उसके जीवन सम्बन्धी आचरण का निर्देश कर उसके परिपालन हेतु उसे प्रेरित करना जैन धर्म की मौलिक विशेषता है। आहार-सेवन के क्रम में शुद्ध एवं सात्त्विक आहार के सेवन को विशेष महत्व दिया गया है। इस प्रकार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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