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________________ १५८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड उपलब्ध हुई हैं । विवेच्यकालीन भगवान ऋषभनाथ की सर्वाधिक प्रतिमा कारीतलाई से प्राप्त हुई हैं। कारीतलाई के अतिरिक्त तेवर (जबलपुर), मल्हार एवं रतनपुर (बिलासपुर) से भी आदिनाथ की प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इनके अतिरिक्त अजितनाथ, चन्दप्रभ, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर की भी आसन-प्रतिमायें मिली हैं। इस काल में बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ की एक सुन्दर प्रतिमा धुबेला के संग्रहालय में है। कारीतलाई से प्राप्त तीर्थकरों की द्विमूर्तिका प्रतिमायें रायपुर संग्रहालय में संरक्षित है। __ कलचुरि कालीन जैन शासन५ देवियों की मूर्तियाँ बहुतायत से मिली हैं। ये स्थानक एवं आसन दोनों तरह की हैं। कलचुरि नरेशों के काल में निर्मित अधिकांश प्रतिमायें १०वीं से १२वीं सदी के मध्य की हैं। मध्यप्रदेश के विश्वप्रसिद्ध कलातीर्थ खजुराहो में चंदेल नरेशों के काल में निर्मित नागर शैली के देवालय अपनी वास्तू एवं मूर्ति संपदा के कारण गौरवशाली हैं। यहाँ के जैन मन्दिरों में जिन-मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं एवं प्रवेश द्वार तथा रथिकाओं में विविध जैन देवियाँ । प्रतिहारों के पतन के पश्चात् मालवा में परमारों का राज्य स्थापित हुआ । इनके समय में जैन धर्म मालवा में अपने स्वणिम काल में था। निमाड़ में ऊन नामक स्थान के अवशेषों में लगभग एक दर्जन मन्दिर परमार राजाओं के स्थापत्य के उत्तम नमूने हैं । यहाँ के जैन मन्दिरों में सबसे बड़ा चौबारडेरा नामक मन्दिर है। मन्दिरों में अनेक सुन्दर मूर्तियां स्थापित हैं । केन्द्रीय संग्रहालय इन्दौर में परमारकालीन तीर्थंकरों की लेखयुक्त प्रतिमायें हैं । मध्यकाल में मध्यप्रदेश के सूहानिया, पढावली, तिरासी, इन्दौर, टूडा, धंसौर, बरहटा, मुरार, नागौर एव जसो, सांची, धार, दशपुर, बदनावर, कानवन, बडनगर, उजैन,° जावरा, बड़वानी आदि ऐसे कलाकेन्द्र हैं जहाँ जैन प्रतिमायें अवस्थित हैं। उत्तर प्रदेश में मध्यकालीन जैन प्रतिमायें बहुलता से प्राप्त हुई हैं, जो प्रदेश के विभिन्न संग्रहालयों, देवालयों एवं यत्र-तत्र अवस्थित हैं । प्रयाग-संग्रहालय में अधिकांश जैन प्रतिमायें संरक्षित हैं । उत्तर प्रदेश के अधिकांश स्थलों से जैन यक्षी पद्मावती की प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं । झाँसी जिले के चन्देरी में भगवान महावीर की लावण्यमयी प्रतिमा आभा से परिपूर्ण है। श्रावस्ती के पश्चिम में जैन अवशेष प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यहीं पर भगवान संभवनाथ का जीर्ण-शीर्ण मन्दिर है । भोंडा जिले के महेत में आदिनाथ की सुन्दर प्रतिमा मिली है। बरेली जिले के अहिच्छत्र से अनेक प्रति. मायें मिली हैं । यहाँ से उपलब्ध पार्श्वनाथ की एक सातिशय प्रतिमा अत्यन्त सौम्य एवं प्रभावशाली है। १. कारीतलाई को अद्वितीय भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, अनेकान्त, अक्टूबर-दिसम्बर, १६७३ २. कलचुरिकालीन भगवान शांतिनाथ की प्रतिमायें- शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अगस्त, १९७२ ३. ध्रुबेला संग्रहालय की जैन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, जन, १६७४ ४. कारीतलाई की द्विमूर्तिका जैन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, सितम्बर, १९७५ ५. कलचुरिकला में जैन शासन देवियों की मूर्तियाँ-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अगस्त, १९७४ ६. भारतीय जैन शिल्पकला को कलचुरि नरेशों की देन, शिवकुमार नामदेव, जैन प्रचारक, सितम्बर-अक्टूबर, १९७४ ७. जैन कलातीर्थ खजुराहो-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अक्टूबर, १६७४ ८. खजुराहो की अद्वितीय जैन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, अनेकांत, फरवरी, १९७४ ६ मध्यप्रदेश में जैन धर्म एवं कला, शिवकुमार नामदेव, सन्मति संदेश, अप्रेल-मई, १९७५; भारतीय जैन कला को मध्यप्रदेश की देन-शिवकुमार नामदेव, सन्मति वाणी, मई-जून, १९७५ १० जैन धर्म एवं उज्जयिनी-शिवकुमार नामदेव, सन्मतिवाणी, जुलाई, १९७५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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