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________________ १४. कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड व दीवान का पद प्रदान कर अपने प्रथम श्रेणी के सामन्तों में विभूषित किया। रंगोजी बोलिया ने ही महाराणा अमरसिंह के राजदूत के रूप में दिल्ली दरबार में उपस्थित होकर शहजादे सलीम के बादशाह जहाँगीर बनने पर मेवाड़ की बधाई दी और बादशाह जहाँगीर से महाराणा अमरसिंह एवं मेवाड़ की नयी राजधानी उदयपुर के निर्माण के लिये हीरे-जवाहरातों की अमूल्य भेंट स्वीकार की। यद्यपि रंगोजी बोलिया मेवाड़ राज्य के प्रमुख राजनयिक के रूप में दिल्ली दरबार की गतिविधियों में मेवाड़ राज्य का प्रतिनिधित्व करता था तथापि मेवाड़ राज्य के दीवान के रूप में भी उसने प्रथम बार मेवाड़ के गाँवों का सीमांकन एवं सामन्तों की सीमाएँ निश्चित कर मेवाड़ राज्य को सुदृढता प्रदान करने के उल्लेखनीय कार्य किये। दिल्ली दरबार में रंगोजी बोलिया की सफल राजनयिक भूमिका से प्रसन्न होकर जहाँगीर ने रंगोजी बोलिया को ५२ बीघा जमीन देकर सम्मानित किया। सिंघवी दयालदास - सिंघवी दयालदास मेवाड़ के राजपुरोहित की निजी सेवा में था। दयालदास का विवाह उदयपुर के पास देवाली गाँव में हुआ था। उसने अपने स्वामी राजपुरोहित से अपनी पत्नी का गौना लाने के लिये अवकाश की माँग की एवं सुरक्षा के लिये किसी शस्त्र की मांग की। राजपुरोहित ने उसे अपनी निजी कटारी देकर अवकाश की स्वीकृति दे दी। दयालदास सकुशल अपनी ससुराल देवाली गाँव पहुँच गया और वहाँ उसका अच्छा स्वागत-सत्कार किया गया। भोजन के उपरान्त विश्राम के समय उसके मन में पता नहीं क्या विचार आया कि उसने राजपुरोहित की कटारो का गुप्त खण्ड खोलकर देखा । उसमें उसे एक कागज मिला । उस कागज को पढ़ते ही चौंक गया और पत्नी का गौना छोड़ सीधा ही राजदरबार में महाराणा राजसिंह की सेवा में उपस्थित हुआ और उन्हें वह कागज दे दिया। महाराणा ने तत्काल राजपुरोहित और अपनी छोटी रानी को बन्दी बनवा लिया। उक्त कागज में एक ऐसे षड्यन्त्र की रूपरेखा थी जिसके अनुसार छोटी रानी के पुत्र को राजगद्दी पर बिठाने के लिये राजपुरोहित एवं छोटी रानी ने महाराणा राजसिंह की हत्या करना सुनिश्चित किया था। महाराणा ने दयालदास को तत्काल अपनी निजी सेवा में रख लिया। कुछ ही समय में महाराणा के प्रति अपनी विश्वसनीयता और योग्यता से निरन्तर पद-वृद्धि प्राप्त करते हुए दयालदास मेवाड़ राज्य का दीवान बन गया। ___ बादशाह और गजेब ने जब महाराणा राजसिंह के विरुद्ध मेवाड़ राज्य पर आक्रमण किया तब मुगल सेना ने लोगों को कत्ल कर, लूट-पाट कर और मन्दिरों को तोड़कर मेवाड़ को गम्भीर मानवीय, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक क्षति पहुँचाई । इसी समय कहते हैं एक मुगल टुकड़ी के हाथ में सिंघवी दयालदास की एक मात्र बहिन पड़ गयी और वह मुगल टुकड़ी मेवाड़ के दीवान की बहिन का अपहरण कर ले गयी। दयालदास पर अपनी बहिन के अपहरण का बहुत प्रभाव पड़ा। क्रोध एवं क्षोभ में उसने अपनी माता, पत्नी, पुत्री आदि कुल की सभी स्त्रियों को मौत के घाट उतार दिया और औरंगजेब के आक्रमण का बदला लेने के लिये उसने अपनी सेना के साथ मालवा की ओर कूच किया। मालवा पर भीषण आक्रमण कर उसने असंख्य मुगलों को मौत के घाट उतार दिया। मुगल थानों को तहस-नहस कर उसके स्थान पर मेवाड़ के थाने स्थापित कर दिये। मुगल बस्तियों में आग लगा दी और सम्पन्न मुगलों का सारा धन व आभूषण लूट लिये। मालवा से लौटते समय भी वह अपने मेवाड़ राज्य की सीमा तक रास्ते भर मुगलों के विरुद्ध ऐसी ही कठोर कार्यवाही करता रहा। इस लट के अतूल धन व अलंकारों को उसने अपने पास नहीं रखा । औरंगजेब के आक्रमण से जो हिन्दु प्रजा क्षतिग्रस्त हुई थी, उसे खुले मन से उसने वह धन बाँटा और निर्धन लोगों को भी खुलकर दान दिया। शेष जो धन बचा वह भी इतना अधिक था कि ऊँटों पर लादकर दयालदास ने महाराणा राजसिंह को भेंट किया। मालवा पर आक्रमण के बाद औरंगजेब ने चित्तौड़ में मुगल सेना बढ़ा दी। महाराणा राजासह की मृत्यु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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