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________________ जोधपुर के जैन वीरों सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य १२३ ............................................................-.-.-.-.-.-.-. उसके उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। महाराजा ने इन्द्रराज को वि० सं० १८६४ में जोधपुर का दीवान बनाया और वि० सं० १८७२ तक वह इस पद पर कार्य करता रहा । महाराजा ने इसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर इसे अनेक रूक्के आदि प्रदान किये तथा अमीर खां पिण्डारी द्वारा वि० सं०१८८२ में इनकी हत्या करवा देने पर उनके पुत्र फतहराज को पच्चीस हजार की जागीर प्रदान की। स्वयं महाराजा मानसिंह ने, जो अच्छा कवि भी था, इन्द्रराज द्वारा की गई सेवाओं की स्मृति में निम्न सोरठे व दोहे रचे । इनके अलावा अन्य कवि का एक गीत भी लिखा मिलता है। दोहे, सोरठे और गीत द्रष्टव्य हैं सोरठा गेह छुटो कर गेड़, सिंह जुटो फूटो समद । अपनी भूप अरोड़, अड़िया तीनू इन्दड़ा ।। १ ।। गेह सांकल गजराज, घहै रह्यौ सादुल धीर । प्रकटी बाजी बाज, अकल प्रमाणे इन्दड़। ॥ २॥ दोहा पड़तो घेरो जोधपुर, अड़ता दला अर्थभ । आप डींगता इन्दड़ा, थे दीयों भुज थंभ ॥३॥ इन्दा वे असवारियाँ, उण चोहटे आमेर । घिण मन्त्री जोधाण रा, जैपर कीनी जेर ॥ ४ ॥ पोडियो किण पोशाक सू, जंग केडी जोय । गेह कटे है जावतां, होड न मरता होय ॥ ५॥ बेरी मारण मीरखां, राजकाज इन्द्रराज । मैं तो सरणे नाथ के, नाथ सुधारे काज ॥६॥ गीत इन्द्रराज सिंघवी रो दल अटकै कमण ऊबाणों दुजड़े, करसी कमण घरा रौ काज। सिंघवी राव मरण तो सुणतां, राजां सोच कियौ इन्द्रराज ॥१॥ मेल दलां पर दलां मरोड़ण, छव वरणां आधार छतो। अकल निधान भीमसुत ऊभा, हिन्दस्थान न चीत हुतौ ॥ २ ॥ जण आसान उदैपुर जयपुर, सबल नरां सर अंक सही। मोटा साह तुझ मिलव री, राजां राणां हूंस रही ॥ ३ ॥ सिंघवी गुलराज-यह सिंघवी इन्द्रराज का छोटा भाई और महाराजा मानसिंह का समकालीन था। इसने महाराजा मानसिंह को जालोर के घेरे में लाकर जोधपुर की राजगद्दी पर बैठाने में बड़ी सेवा की। इससे प्रसन्न होकर महाराजा ने इसे एक खास रूक्का प्रदान किया था। वि० सं० १८७२ में जब अमीर खाँ पिण्डारी ने अपना खर्च प्राप्त करने सम्बन्धी बखेड़ा उठाया तथा आयस देवनाथ और सिंघवी इन्द्रराज को इसने मरवा डाला, उस समय गुलराज ने बड़ी दूरदर्शिता से काम लेकर अमीर खाँ को जोधपुर से रवाना किया और महाराजा की आज्ञा से गुलराज तथा इसका भतीजा फतैराज दोनों राज्यों का प्रबन्ध देखने लगे। अन्त में यह भी षड्यन्त्र का शिकार हुआ तथा वि० सं० १८७४ में कैद कर इसे मरवा दिया। गुलराज की प्रशंसा में कहे गये निम्न दो दोहे उपलब्ध होते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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