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________________ ovo Goo -0 -0 O Jain Education International ११६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड तथा मतिमत्ता की पुष्टि राव मालदेव के पौत्र राजा शूरसिंह के एक परवाने से भी होती है। इसमें तेजा के पुत्र शाह सिमल का वृत्त है यह महत्वपूर्ण परवाना प्रस्तुत है। परवानों १ म्हाराज श्री सुरजसिंघजी रो सही सूधो साह सिंहमल गावहीयो लीखाय ल्याया पढ़ीयार भीवां ऊपरां तिणरी नकल । 1 स्वरूप श्री महाराजाधिराज महाराज श्री सुरजसिंघजी म्हाराजकुवार श्री गजसिंजी वचनायतुं पढ़ीयार भींवा दीस सुपरसाद वांचजो अठां रा समाचार भला छें थांहरा देजो तथा साहसिहगल नाहीयो से राव श्री मालदेजी दोषा जगात बगसीयो है तोणा दीसा दांणी बोलण करै छै । तीण सू मन करजी । वीजोइ इण नूँ कु न लागै छ । सरब माफ छै । इण रो ऊपर करजो । कोई चोलण करण न पावै । हुकम छै। सं० १६७१ जेठ वद मुकाम अजमेर प्रवानगी भाटी गोइंददासजी प्रवानी साह सिंहमल नुं सुपजो । साह तेजौ प्रथीराज जैतावत सं० १६१० रा चेत्र बद २ काम आयो जैमल वीरमदेवोत सागरी वेद में, मेहते कुंडल सलाय अतएव वीरगीत तथा राजकीय आज्ञा पत्र से स्पष्ट है कि तेजा ने दो युद्धों में भाग लिया और द्वितीय युद्ध १६१० में वह पृथ्वीराज जैतावत बगाड़ी के स्वामी तथा राव मालदेव के प्रधान सेनानायक के साथ मेड़तियों के साथ के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था । पता उरजनोत-पता मुहता अर्जुन का पुत्र था। वह सिवाना के राव कल्ला का प्रधान मन्त्री था । पता पर प्राप्त गीत इस प्रकार है: गीत पता उरजनोत मुहता रो परगह के मस्तक केइक हाथ पग, के तु ण के नैण तिम। अजण तणा म्रत हुवो अणखलो, जीव पख वप हुवौ जिम || ठाकर पंचसयंचभूत थिति, रहै सकँ तन नीत रखै । सब सारीखी हुवी समीयाणो पातल जोति स्वरूप पखे ॥ नाहि तो बल खमण न हाल विथका अंग सह परियािं खेत कलोधर हंस बेलियो कोड़ि सरीर सर कोई कांम ॥ नाड़ि नाड़ि नित भुरज भुरजनित, थूरंतो जाय अरि चा थाट । इस पतो थुगलोक हालीयो, देही दुरंग शो दहबाट । —दुरसा आढ़ा उपर्युक्त गीत में प्रसिद्ध कवि दुरसा आढा ने पता द्वारा सिवाना दुर्ग की रक्षा में जूझते हुए वीरगति प्राप्त करने का वर्णन किया है। पता ओसवालों की बंद शाखा के उरजन (अर्जुन) का पुत्र था वह सं० १६४४ वि० में शाही आज्ञा से मोटेराजा उदयसिंह के सिवाना दुर्ग पर आक्रमण करने पर वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारा गया था। नारायण एवं सांवलदास पताउत -पता का पुत्र नारायण और सांवलदास भी बड़े वीर योद्धा थे । नारायण की वीरता पर सर्जित एक गीत में कवि ने नारायण के युद्ध कौशल का लुहार के साथ रूपक बाँधा है गीत नारायण पताउत मुंहता रा अहिरिण रिपवेत थोड़ी आवध, मांस धमण तम रोम सहाय । आठे पोहर अथाकित ऊमौ, धड दल रयण घड़े घण घाय ॥ कर साउसी जड़ण कोयानल, धड धड़छे भड़ धूय घड़े । वैनाणी पातावत अरि बप, जड़ां ऊबेड़े भिजड़ जड़े ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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