SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ..-.-.-.-. -.-.-. -.-. -. -.-.-.-.-.-.-. -. -.- -.. जोधपुर के जन वीरों जम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य सौभाग्यसिंह शेखावत राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर (राजस्थान) राजस्थान की भूतपूर्व रियासतों, रजवाड़ों तथा ठिकानों में ओसवाल शाखा के वैश्यों का बड़ा वर्चस्व रहा है । राज्यों के दीवान, प्रधान, सेनापति, प्रांतपाल, तन दीवान, मन्त्री, फौजवक्षी, कामदार तथा राजस्व अधिकारी एवं वकील आदि प्रशासनिक, अप्रशासनिक पदों पर रहकर ओसवाल जाति के अनेक लोगों ने अपनी कार्यपटुता, प्रबुद्धता एवं नीति-कौशल का परिचय दिया है। राजस्थान की राजनीति, अर्थनीति तथा धर्मनीति को नवीन दिशा देने और समाज में संतुलन स्थापित किये रखने में भी ओसवाल समाज का महनीय योगदान रहा है । प्रशासनिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में अत्यधिक व्यस्त रहते हुए भी इस समाज में मोहनोत, नैणसी, लधराज मुहता, रूधा मुहता उदयचन्द्र भण्डारी. उत्तमचंद भण्डारी, सवाईराम सिंघवी, फतहचंद भण्डारी प्रभृति कतिपय ऐसे विद्वान् हो गए हैं जिनका कृतित्व कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। साहित्यिक क्षेत्र तथा मन्दिर, मठ, देवस्थान, उपाश्रय, कूप, वापिका आदि सार्वजनिक हित के कार्यों में ओसवाल समाज की पर्याप्त रुचि रही है। किन्तु इन प्रवृत्तियों के अतिरिक्त इस समाज में एक स्वभाव, धर्म और संस्कार विरुद्ध विशिष्टता रही है और वह है तराजू पकड़ने वाले हाथ में तलवार, कलम थामने वाले कर में कटार ग्रहण कर युद्ध में शत्रुओं से लोहा लेना तथा मारना और मरना। ओसवाल समाज के ऐसे अनेक रणोत्साही वीरों का प्राचीन काव्यों तथ. स्फुट छन्दों में चित्रण मिलता है जिन्होंने युद्ध-भूमि में प्रवेश कर वैरियों से दो-दो हाथ किये थे। यहाँ इसी कोटि के केवल जोधपुर क्षेत्र के कुछ ऐसे योद्धाओं का सोदाहरण उल्लेख करने का प्रयास किया जा रहा है जिनकी युद्धवीरता का वृत्तांत प्राचीन राजस्थानी छन्दों में प्राप्य है। साह तेजा सहसमलोत-जोधपुर क्षेत्र के ओसवाल योद्धाओं में पहला उल्लेख जोधपुर के राठौड़ शासक राव मालदेव और दिल्ली के सुल्तान शेरशाहसूरि के १६०० विक्रमी के गिर्ग सुमेल स्थान के प्रसिद्ध युद्ध में राव मालदेव की ओर से साह सहसमल के पुत्र तेजा (तेजराज) के भाग लेने का मिला है। एक समकालीन गीत में कवि ने तेजा की वीरता का बड़ा ही ओजमयी भाषा में वर्णन किया है गीत साह तेजा सहसमलौत रो सूर पतसाह नै मालदे सैफलौ, ठाकुरे वडबूडे छाडिया ठाल । गिरंद जूझारियाँ तेथ किण गादिय, प्रतपियौ तेजलौ गढ़ रख पाल । संमरे केम परधान सहसा सुतन, विरद पतसाह रौं हुवो बाथे । जोधपुर महाभारथ कियों जोरवर, हेमजो मार जस लियो हाथे ॥ भारमलहरे मेछांण दल भांजिया, राव रे काम अखियात राखी। कोट नव अचल राठौड़ साको कियो, सोम नै सूर संसार साखी ॥ हारिया असुर इम हिन्दुवै जस हुवौ, वाणीय इसी करदाख वारौ। थापियो मालदे तो तेजा थिरां, थयौ खण्ड मुर खंडै नाम थारौ॥ उपर्युक्त गीत इतिहाससम्मत है। इसमें गीतनायक तेजा गादहिया (गधैया) गोत्र का वैश्य अंकित है। तेजा के पिता का नाम सहसमल, पितामह का भारमल था। वह राव मालदेव का प्रधानमन्त्री था। शाह तेजराज के पराक्रम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy