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________________ Ne कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ षष्ठ खण्ड ५. ये ते वज्जीनं वज्जिमहल्लका ते सक्करिस्संति, गुरु करिस्सन्ति मानेस्संति पूजेस्संति, या ता कुलित्थियो कुलकुमारियो ता न आक्कस्स पसह्य वास्सेन्ति । जब तक कुल की महिलाओं का सम्मान करते रहेंगे और कोई भी कुल स्त्री या कुल-कुमारी उनके द्वारा बलपूर्वक अपहृत या निरुद्ध नहीं की जायेगी ; ६. वज्जि तियानि इअंतरानि वेव वाहिरानि च तानि सक्करिस्सति, गुरु करिस्संति, मानेस्संति, पूजेस्संति, तेस दिन कल धामिकं बलिनो परिहारसंति नो परिहापेस्संति । - जब तक वे नगर या नगर से बाहर स्थित चैत्यों (पूजा-स्थानों) का आदर एवं सम्मान करते रहेंगे और पहले दी गई धार्मिक दलि तथा पहले किए गए धार्मिक अनुष्ठानों की अवमानना न करेंगे; ७. वज्जीनं अरहतेसु धम्मिका रक्खावरण-गुत्ति सुसंविहिता भविस्संति । - जब तक वज्जियों द्वारा अरहन्तों को रक्षा, सुरक्षा एवं समर्थन प्रदान किया जायेगा ; तब तक वज्जियों का पतन नहीं होगा, अपितु उत्थान होता रहेगा । आनन्द को इस प्रकार बताने के बाद बुद्ध ने वस्सकार से कहा, "मैंने ये कल्याणकारी सात धर्म वज्जियों को वैशाली में बताये थे ।" इस पर वस्सकार ने बुद्ध से कहा, "हे गौतम! इस प्रकार मगधराज वज्जियों को युद्ध में तब तक नहीं जीत सकते, जब तक वह कूटनीति द्वारा उनके संगठन को न तोड़ दें।" बुद्ध ने उत्तर दिया, "तुम्हारा विचार ठीक है ।" इसके बाद वह मन्त्री चला गया। वस्सकार के जाने पर बुद्ध ने आनन्द से कहा- "राजगृह के निकट रहने वाले सब भिक्षुओं को इकट्ठा करो ।” तब उन्होंने भिक्षु संघ के लिए निम्नलिखित सात धर्मों का विधान किया Jain Education International १. हे भिक्षुओ ! जब तक भिक्षुगण पूर्ण रूप से निरन्तर परिषदों में मिलते रहेंगे २. जब तक वे संगठित होकर मिलते रहेंगे. उन्नति करते रहेंगे तथा संघ के कर्त्तव्यों का पालन करते रहेंगे ३. जब तक वे किसी ऐसे विधान को स्थापित नहीं करेंगे जिसकी स्थापना पहले न हुई हो, स्थापित विधानों का उल्लंघन नहीं करेंगे तथा संघ के विधानों का अनुसरण करेंगे; - ४. जब तक वे संघ के अनुभवी गुरुओं, पिता तथा नायकों का सम्मान तथा समर्थन करते रहेंगे तथा उनके वचनों को ध्यान से सुनकर मानते रहेंगे ; ५. जब तक वे उस लोभ के वशीभूत न होंगे जो उनमें उत्पन्न होकर दुःख का कारण बनता है ; ६. जब तक वे संयमित जीवन में आनन्द का अनुभव करेंगे ; ७. जब तक वे अपने मन को इस प्रकार संयमित करेंगे जिससे पवित्र एवं उत्तम पुरुष उनके पास आयें और आकर सुख-शान्ति प्राप्त करें ; तब तक भिक्षु संघ का पतन नहीं होगा, उत्थान ही होगा। जब तक भिक्षुओं में ये सात धर्म विद्यमान हैं, जब तक वे इन धर्मों में भली-भाँति दीक्षित हैं, तब तक उनकी उन्नति होती रहेगी । महापरिनिब्बान सुत्त के उपर्युक्त उद्धरण से वैशाली - गणतन्त्र की उत्तम व्यवस्था एवं अनुशासन की पुष्टि होती है। वैशाली के लिए विहित सात धर्मों को कुछ परिवर्तित करके) बुद्ध ने अपने संघ के लिए भी अपनाया, इससे स्पष्ट है कि २६०० वर्ष पूर्व के प्राचीन गणतन्त्रों में वैशाली गणतन्त्र श्रेष्ठ तथा योग्यतम था । लिच्छवियों के कुछ अन्य गुणों ने उन्हें महान् बनाया। उनके जीवन में आत्म-संयम की भावना थी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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