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________________ वैशाली-गणतन्त्र का इतिहास ५. 'लिच्छवि' शब्द की व्युत्पत्ति जैन-ग्रन्थों में लिच्छवियों को 'लिच्छई' अथवा 'लिच्छवि' कहा गया है। व्याकरण की दृष्टि से, 'लिच्छवि' शब्द की व्युत्पत्ति 'लिच्छु' शब्द से हुई है। यह किसी वंश का नाम रहा होगा। बौद्ध-ग्रन्थ 'खुद्दकपाठ' (बुद्धघोषकृत) की अट्ठकथा में निम्नलिखित रोचक कथा है—काशी की रानी ने दो जुड़े हुए मांस-पिण्डों को जन्म दिया और उनको गंगा नदी में फिकवा दिया। किसी साधु ने उनको उठा लिया और उनका स्वयं पालन-पोषण किया। वे निच्छवि (त्वचारहित) थे । कालक्रम से उनके अंगों का विकास हुआ और वे बालक-बालिका बन गये। बड़े होने पर वे दूसरे बच्चों को पीड़ित करने लगे, अतः उन्हें दूसरे बालकों से अलग कर दिया गया (वज्जितव्व-वजितव्य) । इस प्रकार ये 'वज्जि' नाम से प्रसिद्ध हुए। साधु ने उन दोनों का परस्पर विवाह कर दिया और राजा से ३०० योजन भूमि उनके लिए प्राप्त की । इस प्रकार उनके द्वारा शासित प्रदेश 'वज्जि-प्रदेश' कहलाया। सात धर्म मगधराज अजातशत्रु साम्राज्य-विस्तार के लिए लिच्छवियों पर आक्रमण करना चाहता था। उसने अपने मन्त्री वस्सकार (वर्षकार) को बुद्ध के पास भेजते हुए कहा- "हे ब्राह्मग ! भगवान् बुद्ध के पास जाओ और मेरी ओर से उनके चरणों में प्रणाम करो। मेरी ओर से उनके आरोग्य तथा कुशलता के विषय में पूछकर उनसे निवेदन करो कि वैदेही-पुत्र मगधराज अजातशत्रु ने वज्जियों पर आक्रमण का निश्चय किया है और मेरे ये शब्द कहो-'बज्जिगण चाहे कितने शक्तिशाली हों, मैं उनका उन्मूलन करके पूर्ण विनाश कर दूंगा।' इसके बाद सावधान होकर भगवान् तथागत के वचन सुनो।' और आकर मुझे बताओ । तथागत का वचन मिथ्या नहीं होता।" अजातशत्रु के मन्त्री के वचन सुनकर बुद्ध ने मन्त्री को उत्तर नहीं दिया बल्कि अपने शिष्य आनन्द से कुछ प्रश्न पूछे और तब निम्नलिखित सात अपरिहानीय धर्मों (धम्म) का वर्णन किया १. अभिण्हं सन्निपाता सन्निपाता बहुला भविस्संति। ---हे आनन्द ! जब तक वज्जि पूर्ण रूप से निरन्तर परिषदों के आयोजन करते रहेंगे; २. समग्गा सन्निपातिस्सति समग्गा बुट्ठ-हिस्संति समग्गा संघकरणीयानि करिस्संति । .--जब तक वज्जि संगठित होकर मिलते रहेंगे, संगठित होकर उन्नति करते रहेंगे तथा संगठित होकर कर्तव्य कर्म करते रहेंगे; ३. अप्पञ्चत न पत्रापेस्संति, पञ्जतं न समुच्छिन्दिस्संति यया, पञ्चतेषु सिक्खापदेसु समादाय वत्तिस्संति । ....-जब तक वे अप्रज्ञप्त (अस्थापित) विधानों को स्थापित न करेंगे, स्थापित विधानों का उल्लंघन न करेंगे तथा पूर्व काल में स्थापित प्राचीन वज्जि-विधानों का अनुसरण करते रहेंगे ; ४. ये ते संवपितरो संघपरिणायका ते तककरिस्संति गुरु करिस्संति मानेस्संति पूजेस्संति तेस च सोत्तन्वं मञिस्संति । -जब तक वे वज्जि-पूर्वजों तथा नायकों का सत्कार, सम्मान, पूजा तथा समर्थन करते रहेंगे तथा उनके वचनों को ध्यान से सुनकर मानते रहेंगे ; १. री डेबिड्स (अनुवाद) बुद्ध-सुत्त (सेक्रिड-बुक्स आफ ईस्ट, भाग ११-मोतीलाल बनारसीदास, देहली), पृष्ठ २-३-४. २. पालि-पाठ राधाकुमुद मुखर्जी के ग्रन्थ 'हिन्दू सभ्यता' (अनुवादक-डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल) द्वितीय संस्करण, १९५८, पृ० १६६-२०० से उद्ध त । नियम-संख्या मैंने दी है। ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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