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________________ • ४० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड कर्म के साथ धर्मका समन्वय प्रो० शिवप्रकाश गाँधी, राणावास सत्र १९७६-८० के शीतकालीन अवकाश में श्री जैन दय छात्रावास में पधारते हैं। भाईसा के विनम्र आग्रह तेरापंथ महाविद्यालय राणावास के छात्रों द्वारा राष्ट्रीय को मानकर पिछले कुछ वर्षों से सर्वोदय संस्था की वार्षिक सेवा योजना के अन्तर्गत दस दिवसीय विशेष शिविर का साधारण सभा की अध्यक्षता भी करते हैं। सत्र १९७७आयोजन किया गया । इस शिविर में राणावास के मुख्य ७८ के अन्त में होने वाली वार्षिक साधारण सभा मे भाई बाजार और महाविद्यालय पथ में सड़क निर्माण के कार्य साहब ने यह विचार रखा कि सत्र १९७८-७६ से ही को प्राथमिकता दी गई। प्रारम्भ में सभी को यह लग रहा सर्वोदय छात्रावास में हरिजन रसोइया नियुक्त करने का था कि यह कार्य बहुत लम्बा और दुरूह है और हो सकता विचार है और हरिजन छात्रों को सम्पूर्ण सुविधायें निःशुल्क है कि छात्र इसे अल्प अवधि में पूरा न कर पायें । परन्तु देने का भी विचार है। लगभग सभी माननीय सदस्यों का समय के साथ सारी शंकायें निर्मूल सिद्ध होती गई। यह विचार था कि भाई साहब का प्रथम प्रस्ताव काकासा छात्रों ने मेहनत, लगन और शालीनता से न केवल निर्धा- को जॅचने वाला नहीं और हो सकता है कि उसका प्रतिरित कार्य पूरा कर लिया वरन् राणावास वासियों के कार करें परन्तु अपनी शान्त मुद्रा को तोड़कर काकासा हृदयों में विशेष स्थान बना लिया । येन केन प्रकारेण इस मुखरित हए-भाई साहब यदि यह आपकी विचारधारा से प्रगति की सूचना दिन प्रतिदिन काकासा के पास पहुँच प्रेरित है और आपके विचारों और उद्देश्यों को छात्रों एवं जाती थी तथा उनकी प्रसन्नता और सन्तोष के समाचार समाज में जागृत करने का सुगम माध्यम है तो जरूर अपभी कार्यक्रम अधिकारियों के पास पहुँच जाते थे। शिविर नाइये। इससे किसको और भला क्या आपत्ति हो सकती का अन्तिम दिन था सभी के चेहरों पर शिविर की सफलता है ? काकासा के विस्तृत दृष्टिकोण और व्यापक चिन्तन का विशेष उत्साह और उमंग थी । इस खुशी में छात्रों को सुनकर सब आश्चर्य चकित रह गये । अपनी माँ की द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम काकासा के निवास स्थान भंवर पूजा तो सभी करते हैं परन्तु दूसरों की माँ का भी आदर निवास पर आयोजित किया गया जिसमें ग्राम के प्रतिष्ठित तो करना ही चाहिये । मुझे ऐसा लगा जैसे काकासा के सज्जनों को भी आमन्त्रित किया गया। कार्यक्रम की रूप में दूसरा महात्मा (गाँधी) हमारे बीच में विद्यमान है। समाप्ति पर साध्वीश्री के वंदन एवं दर्शनार्थ ज्यों ही मैं दिल कोमल एक गुलाब सा भंवर निवास के अन्दर गया तो काकासा कहने लगे जितना काकासा के लघु भ्राता श्री मिश्रीमलजी सुराणा ने और जिस सुन्दरता के साथ गाँधीजी और मनोहर जी राणावास निवास हेतु पधारने के बाद १५ मार्च १९७३ से (कार्यक्रम अधिकारी) ने कार्य किया है और विद्यार्थियों ८ माह के लिये संन्यास धारण किया। भाई साहब ने से करवाया है उतना ही अनुराग यदि वे धर्म के प्रति रखें एकान्त निवास हेतु महावीर कन्या विद्यालय की दूसरी तो इनका कल्याण निश्चित है। इस छोटे से मामिक मंजिल पर स्थित एक कमरे का उपयोग किया तथा मुनियों वाक्य से मुझे लगा एक ओर काकासा.जहाँ सफलता की की तरह ही दिनचर्या का पालन किया । भाईसा गोचरी बधाई दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर जीवन कल्याण का मार्ग हेतु काकासा एवं अन्य श्रद्धालु सज्जनों के घर पर जाते थे। दिखा रहे हैं । कर्म और धर्म का यह समन्वय मेरे हृदय एक दिन भाईसा जब काकासा के घर गोचरी हेतु की अतुल गहराइयों को छू गया और मैं सहज ही अभिभूत नहीं पधारे तब काकासा का कोमल हृदय द्रवित हो उठा। हो नतमस्तक हो गया। 0 आप तुरन्त कन्याविद्यालय गये तथा उनकी सुखसाता पूछहरिजन रसोइया. कर गोचरी हेतु घर पधारने के लिये निवेदन किया परन्तु काकासा के लघु भ्राता 'भाई साहब' के नाम से भाईसा ने जब उन्हें बताया कि उन्होंने किन्हीं अन्य सज्जन विख्यात सुप्रसिद्ध सर्वोदयी कार्यकर्ता और गांधीवादी के यहाँ से आहार प्राप्त कर लिया है तब कहीं उन्हें संतोष चिन्तक श्री मिश्रीमल जी सा० सुराणा अपनी विचारधारा हुआ। परन्तु उसके बाद शेष अवधि में काकासा ने भाईसा के अनुरूप मुख्यतः दलित वर्ग की सुविधार्थ राणावास में मिलने और सुखसाता पूछने का नियमित क्रम बना लिया। सर्वोदय छात्रावास का संचालन कर रहे हैं । काकासा भाईसा का साधु हृदय भी इस श्रावक शिरोमणि की करुण अपने व्यस्त जीवन में से समय निकालकर यदा-कदा सर्वो- भक्ति और सेवा पाकर अभिभूत हुए बिना न रह सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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