SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया श्री ताराचन्द लूंकड़, राणावास रात्रि का समय था । मालानी क्षेत्र से चन्दा वसूल करके लौटते समय पाली व लूनी के बीच रोहट के नजदीक जीप के ब्र ेक अचानक फेल हो जाने के कारण जीप खड्डे में गिर गई, परन्तु इंजिन बन्द हो जाने से गाड़ी उल्टी नहीं हुई। हम भाग्यशाली रहे कि गाड़ी का आधा भाग हो बहने में गिरा। गाड़ी में मैं काकासाहब व श्री भंवरलालजी डागा थे श्रीमान् दामाजी व मैं नव-विवाहित थे । इस दुर्घटना से काकासाहब के दिल को बहुत आघात पहुँचा क्योंकि आपके साथ होने से हमारी जिम्मेदारी आपकी थी और कोई अप्रिय घटना घटित होती तो आपको बहुत दुःख होता । आपको अपनी चिन्ता के साथ दूसरों की कहीं अधिक चिन्ता रहती है। आपका वास्तव में पर-हिषी व्यक्तित्व है उस दिन के पश्चात् आपने संकल्प ले लिया कि रात्रि में किसी वाहन का उपयोग नहीं करेंगे, पाली पहुंचने पर मुनिश्री अमोलकचन्दजी स्वामी के सामने आपने इसी आशय का संकल्प लिया और तब से आज तक लगभग बीस वर्ष बीत चुके हैं आपने रात्रि में किसी वाहन में यात्रा नहीं की है। कितना भी जरूरी कार्य क्यों न हो, रात में आप उसे स्थगित कर देंगे । Jain Education International O संस्मरण ३६ For Private & Personal Use Only ++++ और धूम्रपान छूट गया घटना लगभग बीस वर्ष पहले की है, मुझे माननीय काका साहब के साथ मालानी क्षेत्र में समदड़ी, बालोतरा, जसोल, पचपदरा आदि स्थानों पर चन्दा प्राप्ति हेतु जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । हमारे साथ आदर्श निकेतन छात्रावास के भूतपूर्व गृहपति श्री भंवरलालजी डागा भी जीप में थे। मालानी क्षेत्र में प्रवेश के पहले लूनी पर हमने विश्राम किया । सबेरे के समय काका साहब शौच आदि से निवृत्त होने पधारे हुए थे। मैं और डागाजी पीछे अकेले थे । मुझे धूम्रपान की लत थी। मैंने सिगरेट पीना शुरू किया। कुछ समय पश्चात् काका साहब को सामने आते देखकर मुझे अपने दिल में भय का अनुभव हुआ । एक तरफ तो महान् संयमी आत्मा का सादा व संयममय जीवन और दूसरी तरफ मेरे जैसा व्यक्ति जिसको धूम्रपान का व्यसन | मेरी अन्तरात्मा पुकार उठी कि आपके जीवन से निश्चित रूप से मुझे प्रेरणा लेनी होगी, व्यसन का त्यागकर सदाचारी बनना होगा। मैंने उसी दिन से धूम्रपान को सदा के लिए त्यागने का संकल्प ले लिया । अब जब भी जीवन में उस घटना की याद आती है तब इसी बात की मधुर अनुभूति होती है कि काकासाहब का जीवन मेरे लिए हमेशा एक प्रेरणा का स्रोत रहेगा । 00 उनके शब्दों की शक्ति O मुनिश्री प्रसन्नकुमारजी (दिवेर) बद्धानिष्ठ सुधावक श्री केसरीमलजी सुराणा का से मिले, उन्हें विभिन्न पहलुओं से समझाने का सफल निकट से मेरा परिचय श्रद्धेय मुनिश्री सोहनलालजी स्वामी प्रयत्न किया । फलस्वरूप मेरे संसारपक्षीय अभिभावकगण के द्वारा हुआ। मुनिश्री से जब सुराणाजी को पता लगा मेरी दीक्षा के लिए अनुमति देने को तैयार हो गये । कि मेरी भावना कई वर्षों से चारित्र ग्रहण करने की है; किन्तु अभिभावकों की आज्ञा न मिलने के कारण मेरा चारित्रिक अभियान रुका हुआ है। पता लगते ही सुराणा जी ने मेरे से बात की। मुझे टटोला संयम की दृष्टि से मेरी योग्यता का अपने ढंग से उन्होंने परीक्षण किया। उन्हें मेरी दृढ़ भावना का आभास मिल गया और वे आश्वस्त हो गये तो वे जुट गये । प्रतिदिन अपनी कठोर उपासना के बावजूद वे इस पवित्र कार्य के लिए स्वयं चलकर मेरे संसार - पक्षीय गाँव दिवेर पहुँचे । अभिभावकों 1 मुझे कल्पना भी नहीं थी कि मेरे परिवार वाले इतनी मी मुझे दीक्षा लेने की अनुमति देने को तैयार हो जायेंगे और मेरा एकासन तपस्या का अभिग्रह नौ महीने मात्र के समय में ही पूरा हो जायेगा। यह सब सुराणाजी की प्रेरणा से हुआ। उनके शब्दों में शक्ति है। दूसरे व्यक्ति को अपने विचारों के अनुकूल बनाने की उनमें अपार क्षमता है । यह मैंने प्रत्यक्षतः देखा। मेरी भगवती दीक्षा दिलाने में सबसे प्रमुख भूमिका अगर किसी की रही तो वह सुराणामी की ही माननी होगी । .० www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy