SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुर्तगालियोंपर निर्णायक विजय हई। इसके पश्चात् औरंगजेबकी मृत्युके आधी शताब्दी बाद ही जब बंगालपर भी अंग्रेजोंका अधिकार हो गया तब जहाजरानीके अधिष्ठाता अंग्रेजोंकी सामरिक शक्तिके आगे समस्त भारतने घुट ने टेक दिये और धीरे-धीरे सारा भारत लाल हो गया। अंग्रेजोंके आधीन जहाजरानीमें विशेष प्रगति हुई। भारत में अंग्रेजी जलसेनाकी कहानीका प्रारम्भ सन १६१३ ई०से होता है। जबकि कम्पनीकी व्यापारिक रक्षा एवं पुर्तगाली तथा समुद्री डाकुओंके भयसे एक 'स्ववाड्रन' की स्थापना की गई थी। सन् १६१५में इसे स्थायी कर दिया गया और कुछ ही समय बाद 'बम्बई मेरीन' के नामसे बम्बईमें जहाज निर्माण कारखाना भी स्थापित कर दिया गया और उसका निदेशक श्री डब्ल्यू पेटको बनाया गया। इसी समय सूरत के डाक्यार्डमें फेमजी तथा जमशेदजीके नेतृत्वमें १०० टन वजनके दो जहाज निर्मित हुए। १९वीं शतीके आरम्भ तक इन पारसी परिवारोंने अंग्रेजी सरकारके लिये केवल सूरतमें ही ९ व्यापारिक, ७ फ्रिगेट एवं ६ अन्य छोटे जहाज बनाये थे। १७८०में मैसूर नरेश हैदर अलीके आक्रमणोंसे बंगालके तटकी सुरक्षा खतरे में पड़ गई अतः सिलहट, चिटगांव एवं ढाकामें जहाज निर्माणके कारखाने खोले गये । पर इस क्षेत्र में सबसे अधिक ख्याति अजित की कलकत्ताने। १७८१से १८००के बीच कलकत्तामें ३५ जहाजोंका निर्माण हुआ और इसके पश्चात् प्रति वर्ष लगभग २० जहाज निर्मित होते रहे। ईस्ट इंडिया कम्पनीके इस जहाजी बेड़ेने प्रथम एवं द्वितीय वर्मा युद्ध तथा प्रथम चीनी युद्ध में सक्रिय भाग लिया और लाल सागर, पशियाकी खाड़ी एवं पूर्वी अफ्रीकाके किनारों तक टोह लगाई। १८४०के पश्वात् कम्पनीकी जहाजरानीका पतन प्रारम्भ हो गया और अप्रैल १८६३में यह पूर्णरूपेण बन्द कर दिया गया जब भारतीय शासन ब्रिटिश सम्राट् द्वारा संचालित होने लगा। इस युगके प्रमुख जहाज प्रकारोंमें 'ग्रेब' ( तीन पतवारवाले नोकीले जहाज ) "पिनासी' या 'यच' ( एक मस्तूलवाला पर कई कमरोंमें विभाजित ) 'पत्तोआ' ( एक मस्तूलवाला पर कई तख्तियोंपर निर्मित ) आदि थे। इनके अतिरिक्त 'बौंगिल्स, 'डोनी', ब्रिक' आदि छोटे जहाज भी थे। प्रारम्भमें नो बेड़ा समुद्र के ऊपरी तल तक लड़ने में ही सीमित था। प्रथम विश्वयुद्धने अस्त्र-शस्त्रकी दिशामें व्यापक प्रेरणा दी। फलस्वरूप प्रत्येक क्षेत्रमें शोध किये गये एवं भयानक अस्त्रोंकी रचना की गई। इसी समय पनडुब्बियोंकी खोज हुई जिसने नौ बेड़ेके इतिहासमें क्रान्ति ला दी। आक्रमण एवं रक्षात्मक दोनों दृष्टिकोणोंसे इसका महत्व बहुत था। पनडुब्बीकी कल्पना अठारहवीं शतीके आरम्भमें डा० एडमन्ड हेलीने की थी जो अपने साथ ५ आदमियोंको ७० फीट पानीके नीचे ले गये थे और जहाँ वे १० मिनट तक रहे थे। इस कार्यमें प्रयुक्त पहली मशीन 'कार्नोलियस डेबेल'ने ईजाद की जिसने जेम्स प्रथमको १५ फीट पानीके नीचे विहार करवाया था। पानीके अन्दर आक्रमणको संभावनाको सबसे पहले 'डेविड बुशनल'ने खोजा जिसने 'टटिल' नामक मशीन तैयार की पर आधुनिक पनडुब्बियोंके स्वरूपकी रचनाका समस्त श्रेय 'राबर्ट' फुल्टन' को है। साधारणतया ये पनडुब्बियां डीजल या बैटरीसे चलती है पर अब अणुचालित पनडुब्बियोंका भी व्यापक रूपसे प्रयोग होने लगा है। यह पानीके ऊपर एवं काफी नीचे तैर सकती हैं, एक स्थानपर स्थिर रह सकती हैं एवं पुनः सतहपर वापस आ सकती हैं। इनमें ऐसे आधुनिकतम यन्त्र लगे हैं कि रातमें भी ये बेरोकटोक चल सकती हैं, पानीके अन्दरसे ही सतहपर चलनेवाले जहाजोंको नष्ट कर सकती हैं, दूरसे ही शत्रुके बन्दरगाहोंको ध्वस्त कर सकती हैं एवं ऊपर उड़नेवाले गगनविहारी वायुयानोंको हमेशाके लिये जलसमाधि दिला सकती हैं। यद्यपि अब इन्हें नष्ट करनेके लिये 'टारपीडो' एवं 'ऐन्टी सबमेरिन'का भी प्रयोग हो गया है पर विश्वके लगभग तीस लाख वर्गमीलमें विस्तृत जल क्षेत्रकी अतल गहराईसे एक पनडुब्बीको ४० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-प्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy