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________________ पालपोत बनाया। इस अवसरपर बारूजीका बनाया हुआ गीत मिलता है। इन्हें प्रथम राष्ट्रीय कवि कहा जा सकता है। क्योंकि चित्तौड़से विदेशी शासकोंको हटाने में इन्होंने अपने गीतोंके द्वारा महाराणा हम्मीरको बहुत उत्साहित किया था । महाराणाकी मल प्रेरक शक्ति चारिणी थी। हम्मीरके उत्तराधिकारी महाराणा क्षेत्रसिंह या खेता (वि० सं० १४२१-१४३९)के कालमें किसी समय बारूजी बून्दीके हाड़ा लाल सिंह (जिसकी कन्या महाराणा क्षेत्रसिंह)के लिये कृछ अपशब्द कहे इसपर बारूजीने पेटमें कटार मारकर आत्महत्या कर ली। (६) मेलग मेहडू-महाराणा मोकलके शासनकाल (वि० सं० १४५४-१४९०) के मध्य किसी समय यह चारण कवि मेवाड़ में आया। महाराणा इसकी काव्य प्रतिभासे बहुत प्रसन्न हुए और उसे रायपुरके पास बाड़ी नामक गाँव प्रदान किया । कविके बहुतसे फुटकर गीत उपलब्ध होते हैं। (७) हीरानन्दगणि-ये महाराणा कुम्भा (वि० सं० १४९०-१५२५) के समकालीन तथा पिपलगच्छाचार्य वीरसेनदेवके पट्टधर थे। महाराणा इन्हें अपना गुरु मानते थे। दरबारमें इनका बड़ा सम्मान था तथा इन्हें 'कविराजा' की उपाधि भी महाराणाने प्रदान की थी।९ देलवाड़ामें लिखे इनके 'सूपाहनाथ चरियं के अतिरिक्त कलिकालरास, विद्याविलासरास, वस्तुपालतेजपालरास, जम्बूस्वामी विवाहलउ, स्थूलिभद्र बारहमासा आदि ग्रन्थ भी मिलते हैं। (८) जिनहर्षगणि—ये आचार्य जयचन्द्रसूरिके शिष्य थे। महाराणा कुम्भाके शासनकालके समय इन्होंने चित्तौड़में चातुर्मास किया था।" इसी अवसरपर वि० सं० १४९७ में इन्होंने वस्तुपाल चरित काव्यकी रचना की। इनका प्राकृत भाषाका 'रमणसेहरीकहा' नामक ग्रन्थ बड़ा प्रसिद्ध है। (९) पीठवा मीसण-चारण पीठवा मीसण, महाराणा कुम्भाके समकालीन थे। इनके फुटकर गीत उपलब्ध होते हैं। सिवाना सिवियाणेके जैतमाल सलखावतकी प्रशंसामें इनका रचा हुआ एक गीत प्रसिद्ध है ।१२ इससे अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती। (१०) बारूजी बोगसा-बोगसा खांपके चारण बारूजीका रचनाकाल वि० सं० १५२० के आस-पास है। ये महाराणा कुम्भाके आश्रित थे। 3 इनके फुटकर गीत प्रसिद्ध हैं। एक गीतकी दो पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं १. मलसीसर ठाकुर भूरसिंहकृत महाराणा यशप्रकाश, पृष्ठ १८-१९ । २. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृष्ठ १३७ । ३. मलसीसर ठाकुर भूरसिंह कृत महाराणा यश प्रकाश, पृ० २०-२१ । ४. डॉ. मनोहर शर्मा-राजस्थानी साहित्य भारतकी आवाज, शोध पत्रिका, भाग-३, अंक-२ १०६ । ५. रामनारायण दूगड़ द्वारा सम्पादित मुंहणोत नैणसीकी ख्यात, प्रथम भाग, पु०-२२।। ६. सांवलदान आशिया-कतिपय चारण कक्यिोंका परिचय, शोध पत्रिका, भाग १२, अंक-४ पृ०६१ । ७. वही पृ० ५१ । ८. रामवल्लभ सोमानी, महाराणा कुंभा, पृ० २१७ । ९. वही, पृ० २१७ । १०. शान्तिलाल भारद्वाज-मेवाड़में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ०८९५ । ११. रामवल्लभ सोमानी-वीर भूमि चित्तौड़, पु० ११९ । १२. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० १४९ । १३. डॉ. मोतीलाल मेनारिया-राजस्थानी साहित्यकी रूपरेखा, पृ० २२२ । २३२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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