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________________ सूरि पाटण (गुजरात) में आचार्य अभयदेवसूरिसे दीक्षा लेकर चित्तौड़ आये । और यहाँ कई वर्षों तक रहकर विधि मार्गका प्रचार किया तथा अपने प्रभाव के उद्गमका केन्द्र स्थान बनाया । वि० सं० १९६७में जिनदत्तसुरिको अपना पट्टधर नियुक्त कर इसी वर्ष कार्तिक कृष्णा १२को चित्तौड़में इनका देहावसान हो गया । कवि, साहित्यकार व ग्रन्थकारके रूपमें इनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । इनके द्वारा रचे गये ग्रन्थों में 'ब्रद्धनवकार' ग्रन्थ बड़ा प्रसिद्ध है । ग्रन्थका रचनाकाल विवादास्पद है । इसमें विकसित होती हुई डिंगल भाषाका निम्न स्वरूप मिलता है - चित्रावेली काज किसे देसांतर लंघउ । चवदह पूरब सार युगे एक नवकार । (४) जिनदत्तसूरि आचार्य जिनवल्लभसूरिके पट्टधर आचार्य जिनदत्तसूरिके संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं तत्कालीन लोक भाषाके प्रकांड पंडित हुए है । 'गणधर सार्द्धशतक' इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है । मेवाड़ के साथ-साथ सिन्ध, दिल्ली, गुजरात, मारवाड़ और बागड़ प्रदेशमें भी ये विचरण करते रहे । इनका स्वर्गवास वि० सं० १२११ में अजमेर में हुआ । श्वेताम्बर जैन समाजमें ये युगप्रधान बड़े दादा साहब व दादा गुरुके रूपमें प्रसिद्ध हैं ।' चर्चरी, उपदेश रसायन, काल स्वरूप कुलकम् इनकी अपभ्रंश-डिंगलकी रचनाएँ हैं ।' 'उपदेश रसायन' में कवि गुरुकी महिमाका वर्णन करते हुए तत्कालीन डिंगल भाषाका निम्न स्वरूप मिलता है— दुलहउ मणुय जम्मु जो पत्तउ । सह लहु करहु तुम्हि सुनि रुत्तउ । गुरू दंसण विष्णु सो सहलउ । होइ न कीपर वहलउ वहलउ ||३|| सु गुरु सु वुच्चइ सच्चउ भासइ । पर परिवायि-नियरु जसु नासइ । सब्वि जीव जिव अप्पर रक्खइ । मुक्ख मग्गु पुच्छियउ ज अक्खइ ||४|| " (५) सोदा बारहठ बारू जी — ये मूलतः गुजरात में खोड़ नामक गाँवके रहने वाले थे । इनकी माताका नाम बरबड़ीजी (अन्नपूर्णा ) था जो शक्तिका अवतार मानी जाती थी । महाराणा हम्मीर (वि०सं०१३७३-१४२१) द्वारा चित्तौड़ विजय (वि० सं० १४०० ) करने में इन्हीं बरवड़ीजी और बारूजीका विशेष हाथ था । " चित्तौड़ विजयकी खुशी में महाराणाने इन्हें करोड़ पसाव, आंतरी गाँवका पट्टा आदि देकर अपना रयण रासि कारण किसे सायर उल्लंघउ । सयल काज महिलसैर दुत्तर तर संसार | १. श्री रामवल्लभ सोमानी - वीर भूमि चित्तौड़, पृ०११६ । २. श्री शान्ति लाल भारद्वाज -- मेवाड़ में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ८९३ । ३. (i) खरतरगच्छ पट्टावली, पृ० १८ । (ii) श्री रामवल्लभ सोमानी - वीर भूमि चित्तौड़, पृ० ११७-१८ । ४. श्री शान्तिलाल भारद्वाज - मेवाड़ में रचित जैन साहित्य मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ८९३ । ५. सीताराम लालस कृत राजस्थानी सबद कोस, प्रथम खण्ड, भूमिका भाग, पृ० १०१ । ६. श्री शान्तिलाल भारद्वाज - मेवाड़ में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ०, ८९४ । ७. श्री अगरचन्द नाहटा - राजस्थानी साहित्यकी गौरवपूर्ण परम्परा, पृ० २९ । ८. वही, पृ० २९ । ९. वही, पृ० ४३ । Jain Education International १०. श्री राहुल सांकृत्यायन, हिन्दी काव्य धारा, पृ० ३५६-५८ । ११. मलसीसर ठाकुर श्री मूरसिंह शेखावत द्वारा सम्पादित-महाराणा यश प्रकाश, पृ० १७ । For Private & Personal Use Only भाषा और साहित्य : २३१ www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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