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________________ प्रभाचन्द्र अपने अनेक शिष्यों के साथ पट्टण, खंभात, धारानगर और देवगिरि होते हुए जोयणिपुर (दिल्ली) पधारे थे। जैसा कि उनके शिष्य धनपालके निम्न उल्लेखसे स्पष्ट है पट्टणे खंभायच्चे धारणयरि देवगिरि । मिच्छामय विहुणंतु गणि पत्तउ जोयणपुरि ॥ -बाहुवलिचरिउ प्र० आराधना पंजिकाके सं० १४१६ के उल्लेखसे स्पष्ट है कि वे भ. रत्नकीतिके पट्टको सजीव बना रहे थे। इतना ही नहीं, किन्तु जहाँ वे अच्छे विद्वान्, टीकाकार, व्याख्याता और मंत्र-तंत्रवादी थे, वहाँ वे भावक व्यक्तित्वके धारक भी थे। उनके अनेक शिष्य थे। उन्होंने फीरोजशाह तुग़लकके अनुरोधपर रक्ताम्बर वस्त्र धारण कर अन्तःपुरमें दर्शन दिये थे। उस समय दिल्लीके लोगोंने यह प्रतिज्ञा की थी कि हम आपको सवस्त्रजती मानेंगे। इस घटनाका उल्लेख बखतावरशाहने अपने बुद्धिविलासके निम्न पद्यमें किया है 'दिल्लीके पातिसाहि भये पेरोजसाहि जब । चांदो साह प्रधान भट्टारक प्रभाचन्द्र तब ॥ आणे दिल्ली मांझि वाद जीते विद्यावर । साहि रीझिकैं कही करै दरसन अंतःपुर ।। तिहि समै लंगोट लिवाय पुनि चाँद विनती उच्चरी । मानिहैं जती जुत वस्त्र हमसब श्रावक सौगंद करी ।।'६१६ यह घटना फीरोजशाहके राज्यकालकी है. फोरोजशाहका राज्य मं० १४०८ से १४४५ तक रहा है। इस घटनाको विद्वज्जन बोधकमें सं० १३०५ की बतलाया है जो एक स्थूल भूलका परिणाम जान पड़ता है; क्योंकि उस समय तो फीरोजसाह तुग़लकका राज्य नहीं था, फिर उसकी संगति कैसे बैठ सकती है । कहा जाता है कि भ० प्रभाचन्दने वस्त्र धारण करने के बादमें प्रायश्चित्त लेकर उनका परित्याग कर दिया था, किन्तु फिर भी वस्त्र धारण करनेको परम्परा चालू हो गयी। इसी तरह अनेक घटना क्रमोंमें समयादिकी गड़बड़ी तथा उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर लिखनेका रिवाज भी हो गया था। दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजीके समय स्थित राघो चेतनके समय घटने वाली घटनाको ऐतिहासिक दृष्टिसे विचार किये बिना ही उसे फीरोजसाह तुग़लकके समयकी घटित बतला दिया गया है। (देखो, बुद्धि विलास पृष्ठ ७६) और महावीर जयन्ती स्मारिका अप्रैल १९६२ का अंक पृ० १२८)। १. सं० १४१६ चैत्र सुदी पंचभ्यां सोमवासरे सकलराजशिरोमुकुटमाणिक्यमरीचिपिंजरीकृतचरणकमल पादपीठस्य श्री पेरोजसाहेः सकलसाम्राज्यधुरीविभ्राणस्य समये श्री दिल्यां श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भ. श्री रत्नकीर्तिदेवपट्टोदयाद्रि तरुणतरणित्वमुर्वी कुर्वाणे भट्रारक श्री प्रभाचन्द्रदेव तत्शिष्याणां ब्रह्म नाथूराम इत्याराधना पंजिकायां ग्रन्थ आत्य पठनार्थे लिखापितम । दूसरी प्रशस्ति सं० १४१६ भादवो सुदी १३ गुरुवारके दिन लिखी हुई ब्रह्मदेव कृत द्रव्यसंग्रह टीकाकी है, जो जयपुरके ठोलियोंके मन्दिरके शास्त्र भंडारमें सुरक्षित है। ग्रन्थ-सूची भाग ३ पृ० १८० । १९२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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