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________________ महाकवि रइधूकी एक अप्रकाशित सचित्र कृति 'पासणाहचरिउ' प्रो० डॉ० राजाराम जैन १९वीं सदीके प्रारम्भसे ही भारतीय आचार, दर्शन, इतिहास एवं संस्कृतिके सर्वेक्षण-प्रसंगोंमें तीर्थङ्कर पार्वका व्यक्तित्व बहुचर्चित रहा है। पाश्चात्त्य विद्वानोंमें कोल्ब्रुक, स्टीवेंसन, एडवर्डटॉमस, शापंटियर, गेरिनो, इलियट, पुसिन, याकोबी, एवं ब्लूमफील्ड तथा भारतीय विद्वानोंमेंसे डॉ० भंडारकर, बेल्वेल्कर, डॉ० दासगुप्ता, कोसम्बी एवं डॉ. राधाकृष्णन प्रभृति विद्वानोंने उन्हें सप्रमाण ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध किया है तथा उनके महान् कार्यों का मूल्यांकन करते हुए उनके सार्वभौमिक रूपका विशद विवेचन भी किया है। प्राचीन भारतीय जैनेतर साहित्य एवं कलामें भी वे किसी न किसी रूप में चर्चित रहे हैं। जैन कवियोंने भी विभिन्न कालोंकी, विभिन्न भाषा एवं शैलियोंमें अपने विविध ग्रन्थोंके नायकके रूपमें उनके सर्वाङ्गीण जीवनका सुन्दर विवेचन किया है। इसी पूर्ववर्ती साहित्य एवं कलाको आधार मानकर मध्यकालीन महाकवि रइधूने भी गोपाचलके दुर्गके विशाल, सुशान्त एवं सांस्कृतिक प्राङ्गणमें बैठकर 'पासणाहचरिउ' नामक एक सुन्दर काव्यग्रन्थ सन्धिकालीन अपभ्रंश-भाषामें निबद्ध किया था, जो अभी तक अप्रकाशित है । उसकी एक प्रति दिल्लीके श्री श्वेताम्बर जैन शास्त्र भण्डारमें सुरक्षित है। उसीके अध्ययनके निष्कर्ष रूपमें उसका संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत कर रहा है। उक्त 'पासणाह चरिउ' महाकवि रइधूकी अन्य रचनाओंकी अपेक्षा एक अधिक प्रौढ़ साहित्यिक रचना है। स्वयं कविने ही इसे 'काव्य रसायन'की संज्ञासे अभिहित किया है। ग्रन्थ-विस्तारकी दृष्टिसे इसमें कुल ७७ x २ पृष्ठ है तथा ७ सन्धियाँ एवं १३६ कड़वक हैं। इनके साथ ही इसमें मिश्रित संस्कृतभाषा निबद्ध ५ मङ्गल श्लोक भी है। प्रथम एवं अन्तिम सन्धियोंमें ग्रन्थकारने अपने आश्रयदाता, समकालीन भट्टारक एवं राजाओंका विस्तृत परिचय देते हुए तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक परिस्थितियोंकी भी सरस चर्चाएं की हैं। अवशिष्ट सन्धियोंमें पार्श्व प्रभुके सभी कल्याणकोंका सुन्दर वर्णन किया गया है और प्रसंगवश स्थान-स्थानपर चित्रों द्वारा ग्रन्थकारकी भावनाको गहन बनानेके लिए चित्रोंका माध्यम भी अपनाया गया है। प्रति प्राचीन होनेके कारण जीर्ण-शीर्ण होनेकी स्थितिमें आ रही है। इसके प्रति पृष्ठमें ११-११ पंक्तियाँ एवं प्रति पंक्तिमें लगभग १४-१६ शब्द हैं। कृष्णवर्णकी स्याहीका इसमें प्रयोग किया गया है। किन्तु पुष्पिकाओंमें लाल स्याहीका प्रयोग हुआ है और संशोधन या सूचक चिन्हके रूपमें कहीं-कहीं शुभ्र वर्णकी स्याहीका भी प्रयोग हुआ है। रइधकृत 'पासणाह चरिउ' की अन्य प्रतियाँ जयपुर, ब्यावर एवं आराके शास्त्र-भण्डारोंमें भी मुझे देखनेका सौभाग्य प्राप्त हआ है। किन्तु प्रस्तुत प्रतिकी जो कुछ विशेषताएँ एवं नवीन उपलब्धियाँ हैं वे निम्न प्रकार है : १. प्राचीनता, २. प्रामाणिकता, ३. पूर्णता, ४. सचित्रता एवं ५. ऐतिहासिकता, १. उक्त प्रतिके सम्बन्धमें मुझे सर्वप्रथम श्रद्धेय बाबू अगरचन्द्रजी नाहटा सिद्धान्ताचार्यने सूचना दी थी। उनकी इस सौजन्यपूर्ण उदारताके लिए लेखक उनका आभारी है । १८२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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