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________________ नाओंमें गतानुगतिकताका ही परिचय दिया है (जैसे डॉ० व्ही० एम० कुलकर्णीने पदुम चरियंकी अंग्रेजी प्रस्तावना पृ० १७-१८में और पं० अमृतलाल भोजकने चउप्पन्नपुरिस चरियंकी प्रस्तावना पृ० ४६७ में) और उक्त संभावनाकी बीन बजायी है। इस तरह विचार करनेसे विमलसूरिका हरिवंश कर्तत्व सिद्ध नहीं होता। बल्कि हरिवंशके उल्लिखित कर्ता एक हरिवर्ष ही सिद्ध होते हैं। उद्योतनसूरि द्वारा उल्लिखित पूर्ववर्ती कवियों और रचनाओंने कुवलयमालापर अपना प्रभाव डाला था, इस बातका दिग्दर्शन डॉ० उपाध्येने 'Kuvalayamala influenced by earlier works'-प्रकरणमें दिखाया है उसमें उनने परवर्ती रचना तरंगलोलासे मिलानकर उसकी आधारभूत "तरंगवती कथाका" प्रभाव भी दिखाया है तथा बाणकी ‘कादम्बरी', विमूलसूरिके “पदुमचरियं' जटिलके “वरांग चरित" तथा हरिभद्रसूरि कृत "समरादित्य कथा" का प्रभाव कुवलयमालापर दिखाया है। यदि हरिवर्ष कृत 'हरिवंश चरियं' उद्योतन सूरिके समयमें विद्यमान था तो उसका भी प्रभाव कुवलयमालापर और कुवलयमालाके रचना क्षेत्र जालौरके पड़ोस बढ़वानामें ५ वर्ष बाद रचित जिनसेनके हरिवंशपुराणपर भी अवश्य पड़ा होगा। कुवलयमालापर उस प्रभावकी परवर्ती रचना जिनसेनके हरिवंशसे कतिपय अंशों या विवरणोंको मिलान कर यदि दिखाया जा सके तो हरिवर्षका अनुपलब्ध हरिवंश कैसा क्या था यह अनुमान लयाया जा सकता है और जिनसेनका मूल क्या था इसपर प्रकाश पड़ सकता है। दिग० सम्प्रदाय मान्य जिनसेन रचित हरिवंश पुराण एक विशिष्ट कृति है। इसमें प्रतिकूल कुछ बातें दी गई हैं जैसे महावीरके विवाह का संकेत, नारदकी मुक्ति तथा सम्यग्दृष्टि कृष्ण द्वारा लोकमें अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये मिथ्या मूतिके निर्माणकी प्रेरणा । इसलिए इसके मलका पता लगाना आवश्यक है । कुवलयमालामें उल्लिखित हरिवर्ष कृत हरिवंश संस्कृत और प्राकृत या किसी भाषामें हो सकता है क्यों कि उद्योतनसूरिने संस्कृत और प्राकृतके कबियोंका समान भावसे स्मरण किया है । इसलिये उसे प्राकृतकी रचना होना आवश्यक नहीं है । १. पृष्ठ-८६-९१ । २. The tradition of Mahavir not having married is found in the स्थानांग समवायांग and haat texts the other tradition of his having married is well known since the days of kalpasutra. D.D.M. स्थानांग अने सूत्रकृतांग p. 330. इतिहास और पुरातत्त्व : १८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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