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________________ wwwwwwwˇˇˇˇˇˇˇ Jain Educat मध्य मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय पुंजपुर डूंगरपुर के शासक श्री पुंजराज (सं० १६६४-१७१३) द्वारा बसाया गया. २५. श्रनाथी संधि — प्रसिद्ध जैनतीर्थ ऋषदेव से मील दूर कल्याणपुर नामक स्थान पर कवि क्रम ने सं० १७४५ में उक्त कृति की रचना की. यह मुनि हेम लोकागच्छ के मुनि खेतसी के शिष्य थे. 'अनाथी-संधि में अनाथी नाम के एक जैन मुनि पर लिखा गया चरितकाव्य है. कल्याणपुर मेवाड़ के इतिहास का एक प्रमुख स्थान है जहाँ पुरातत्त्व की विपुल सामग्री मिलती है. २६. इशुकार सिद्ध चौपाई — इसका रचनाकार भी वही कवि हेम है जिसने अनाथि संधि की रचना की. सं० १७४७ में यह कृति उदयपुर में रची गई. यह एक चरितकाव्य है और 'उत्तराध्ययन सूत्र' के आधार पर रचा गया है. २७. कक्का बत्तीसी — अक्षर बत्तीसी - यह वस्तुतः एक ही कृति के दो नाम हैं जिसकी रचना कवि महेश ने सं १७५० में उदयपुर में की किसी-किसी प्रति में इसके रचयिता का नाम मुनि हिम्मत भी बताया गया है. हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों के १५ वें त्रिवार्षिक विवरण में भी इसका रचनाकार उदय नामक कवि दिया गया है जो संभवतः अन्वेषक की faffaषयक भूल ही है. यह एक उपदेशात्मक काव्य है. २८. वैरसिंह कुमार चौपाई- - देवगढ़ में मोहन विमल कवि ने सं० १७५८ में इसकी रचना की. देवगढ़ के तत्कालीन शासक कुंवर पृथ्वीसिंह के लिये यह पौराणिक काव्य रचा गया. २६. चन्दन मलयागिरि चौपई संवत् १७७६ में लास नामक गाँव में केसर कवि ने यह कृति रची. यह एक लोककाव्य है. इस लोककाव्य की प्रथम कृति भद्रसेन (हवीं सदी) की है ऐसा उल्लेख भी मिलता है. यह एक प्रचलित लोकाख्यान है जिसकी सचित्र कृतियाँ भी मिलती हैं. ३०. ऋषिता चौपाई देवगढ़ में कवि चौवमल ने सं० १९६४ में ऋषिदत्ता चौपाई' की रचना की. यह एक पौराणिक काव्य है जो उपदेशमाला के आधार पर रचा गया है. ३१. स्थानकवासी तेरापंथी मूर्तिपूजकों की चर्चा - नाथद्वारा में कविराज दीपविजय ने सं० १८७४ में इस कृति की रचना की. इनकी और रचनायें भी मिलती हैं जिनमें सोहमकुल पट्टावलि रास मुख्य है. ३२. केसरियाजी का रास- इस नाम की और भी स्तवनमूलक रचनायें मिलती हैं. केसरिया जी में सं० १८७७ में श्री तेजविजय ने इस रास की रचना की. सीहविजय भी सं १८८७ में केसरिया जी आये और धूलेवा ( ऋषभदेव ) में उन्होंने भी 'केसरिया जी का रास' की रचना की. ३३. ढालमंजरी और रामरास- यह एक पौराणिक काव्य है. धनेश्वरसूरि, हेमचन्द्रसूरि आदि आचार्यों द्वारा रचित प्राचीन कृतियों के आधार पर इस रास की रचना की गई. सुज्ञानसागर ने उदयपुर में सं० १८८२ में इस कृति की रचना की. सत्रहवीं शताब्दी में विजयगच्छीय मुनि केसराज ने भी 'राम यशोरसायन' नामक कृति में रामकथा का विस्तार किया है. नगरवर्णनात्मक काव्य भारत के प्राचीन साहित्य में नगर वर्णनात्मक सैकड़ों उल्लेख मिलते हैं. कथा साहित्य में भी नगर रचना-विषयक प्रकरण मिलते हैं. भव्य नगर वर्णन काव्य की महाकाव्योचित गरिमा की भी कसौटी माना गया है. नगरों के विभिन्न स्थानों पर सर्वांगपूर्ण प्रकाश डालने वाले स्वतंत्र ग्रन्थों में जैनाचार्य श्री जिनप्रभसूरि रचित विविधतीर्थकल्प का स्थान सर्वोच्च है. ' १. नगर वर्णात्मक हिन्दी पद्य संग्रह सं० मुनि कान्तिसागर. Pita Personase Ony www.rary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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