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________________ ८५२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय किया कि कोई कृति की रचना करो जिससे आपका यश स्थायी हो जाय. इतने में हातिमताई की पुस्तक कवि के हाथ लग गई और "हातमचरित्र" नाम से अनुवाद प्रस्तुत कर डाला. कृष्णचरित्र-भागवत के दशमस्कंध के अनुवाद के लिये कोई ऐसी बात नहीं कही, संभव है यह कवि की स्वान्तःसुखाय प्रवृत्ति का परिणाम हो. हातमचरित्र के आदि भाग के आठवें पद्य में परमसुख राय ने बीकानेर के ओसवाल कुलावतंस मेहता मूलचंदजी के पुत्र हिन्दूमल का न केवल उल्लेख ही किया है, अपितु उनके प्रति हार्दिक सद्भाव भी व्यक्त किया है. इनके पूर्वज राजकीय कार्य में परम निपुण थे. हिन्दूमलजी स्वयं कुशल प्रशासक और प्रतिभाशाली वकील थे. सं० १८८४ में बीकानेर राज्य की ओर से वकील के रूप में दिल्ली में रहा करते थे. इनकी बुद्धिमत्ता से न केवल बीकानेर नरेश ही प्रभावित थे, अपितु आंग्ल शासक भी अपने प्रिय और विश्वस्त व्यक्तियों में इन्हें मानते थे. अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि हातमचरित्र और दशमस्कंध के अनुवाद का काल क्या हो सकता है ? कवि पर भी थोड़ा आश्चर्य होता है कि जब उसने ग्रंथानुवाद की पीठिका में ५० से अधिक छंद लिखे हैं, वर्णन भी विस्तार से किया है तो रचनाकाल पर मौन कैसे धारण कर लिया ? पर प्रति में प्रतिलिपिकाल विद्यमान है जिससे रचना समयपरक किंचित् अनुमान को अवकाश है. इसका प्रतिलिपिकाल सं० १८९३ है. कवि की हिन्दूमल से कब और कहाँ भेट हुई यह तथ्य तिमिरातृत है. दोनों समानधर्मा व्यवसायी थे अतः अनुमित है कि अजमेर में ही परिचय हुआ हो और यह घटना सं० १८६३ से पूर्व में घटित हुई है. अन्यान्य ऐतिहासिक साधनों से प्रमाणित है कि उदयपुर के महाराणा ने बीकानेर नरेश रत्नसिंहजी (राज्य काल सं० १८८५-१९०८) से विशिष्ट कार्यवश हिन्दूमलजी को वि० सं० १८६६ में मांगा था, पर परमसुखराय का परिचय इतः पूर्व घनिष्ठ हो चूका था जैसा कि हातमचरित्र से स्पष्ट है. हिन्दूमल द्वारा नांवासर में एकलक्ष मुद्रा व्यय कर मंदिर और दुर्ग निर्माण करवाने का उल्लेख हातमचरित्र में ही मिलता है. कृष्णचरित्र और हातमचरित्र का रचनाकाल सं०१८६३ से पूर्व का है. आगामी पंक्तियों में दोनों कृतियों का विवरण दिया जा रहा है : हातमचरित्र दोहा श्रीगणपति सिधि करन हें विघ्न हरन सुषदाय । तिनके चरन निवाइ सिर कहत परमसुषराय ॥१॥ पुन पद सरसिज सारदा बंदौं प्रीत समेत । कहौं रुचिर पद हित सरस पर उपकारिनि केत ।।२।। सवैया लोचन लोलसुज्योत करहि रसना रस स्वाद रचय सवइ । पुन ज्ञान दोयें हरि रूप लर्षे पद-पंकज बंद अनंदमइ ।। श्रव जीव तवे चुन आदि क्यिो कुचि-क्षीर भरे जब पेट भई । असिस भ्यर्थनाथको नाम लिये मुद मंगल होत जिन्हें नितई । चौपाई मालम यह मुलक सकल सुषरासी, नयर सटोरा के हम वासी। कायथ माथुर जात हमारी धगरोटीया अल्ल अति प्यारी ।। SANpal T imro Jain Ede A Ubrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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