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________________ 300300300302030130030030030030233030030030030 १८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : प्रथम अध्याय ( हरीगीत छन्द) तो कहो, बहु पुण्य केरा पुंजथी शुभ देह मानवनो मल्यो, तोये श्ररे भव-चक्रनो श्रांटो नहि एके टल्यो, सुख प्राप्त करतां सुख टले छे, लेश ए लक्षे लहो, क्षण-क्षण भयंकर भाव मरणे, कां ग्रहो राची रहो ? लक्ष्मी श्रने अधिकार बचत शुं कुटुंब के परिवार थी वधवापणु ए नय ग्रहो, वधवापणु संसारनु नरदेहने हारी जयो, एनो विचार नहि हो ! हो ! एक पल तमने हो, निर्दोष सुख निर्दोष आनन्द, त्यो गमे त्यांथी भले, ए दिव्य शक्तिमान जोथी, जंजी परवस्तुमां नहि सुरो, एनी दया मुजने रही, ए त्यागवां सिद्धान्त के पश्चात् दुःख ते सुख नहि, दुकोणक्यांची भयो स्वरूप ऐसा वह ! कोना संबंध वळगण छे, राखु के ए परिहरु, एनो विचार विवेकपूर्वक, शान्त भावे जो कर्या, तो सर्व आमक ज्ञाननो सिद्धान्त तवो धनुभन्यो. ते प्राप्त करवा वचन कोनु, सत्य केवल मानवु, निर्दोष नरनु कथन मानो, तेह जेणे अनुभव', रे आत्म तारो, रे ग्राम तारो, शीघ्र पुने ओळख सर्वात्ममां समदृष्टि द्यो, ए वचनने वचनने हृदये लो। हम तो कबहुं न निज घर आये । पर घर फिरत बहुत दिन बीते नाम श्रनेक धराये । हम तो कबहुं न निज घर श्राये । मगन हूँ, परपरस्ति लपटाये । मनोहर, चेतनभाव न भाये । हम तो कबहुं न निज घर थाये । नर, पशु, देव, नरक निज जान्यौ परजयबुद्धि लहाये । अमल, अखण्ड, अतुल, अविनाशी श्रातमगुन नहीं गाये । हम तो कबहुं न निज घर श्राये । यह बहु भूल भई हमरी फिर, कहा काज पछताये । 'दीन'विषवन को सतगुरु वचन सुहाये। 2 हम तो कबहुं न निज घर आये । पर पद निजपद मान शुद्ध-बुद्ध सुखकन्द library.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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