SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 869
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८३४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय गुन अनन्त गोपाल के कोऊ न पावत पार । मैं मति अपनी समझ कछु कहूं संभारि बिचार ।।७।। छप्पय भए सिरी हरिव्यास अवतार प्रगट जग । लाल लाडिली प्रेम रंग रस हिय मैं जगमग ।। सेवत कुवर गुपाल लाल महा रूप रसाला । निस दिन कान्ह सुजांन हिये वास्यौ प्रतिपाला ।। दुर गाहि ताहि दिच्छा दई किते पार करि करि दये । ब्रजदास दासी तुम सरन है श्रीहरिव्यास जय जय जए ॥८॥ परसराम गुरु महासकल गोपाल लडायौ । श्रीसर्चेसुर नाम रहै हिय नित प्रति छायो । रांम-रौंम की जात भूलि सुधि प्रेम रंग मैं । झलकत जुगलकिशोर माधुरी अंग अंग मैं ।। निहच प्रतीति रस रीति सों लषि सरबेसुर रस रसमें । व्रषभान लली ब्रज लाडली अरु गुपाल हिय में वस ।।६।। दोहा तिनकै पाट प्रसिद्ध महिं जोति जगत हरिवंस । रंग रंगे गोपाल के सुरगन करत प्रसंस ।।१०।। श्रीनारायनदेव जग प्रगट रसिक सिर मौर । लाल लाडिली रंग बिन हिय मैं ध्यान न और ।।११।। महा मदंध जग के नृपति तिनके अंकुस रिषिराज । करे साध परबोध करि यह जग जगी अवाज ।।१२।। काम क्रोध को दंड है तजी लोभ की टेव। जय जय जग में सब भई जयत नरांइनदेव ॥१३॥ छप्पै तिनके रिष रिषराज सिरी बृदावन प्रगटे । ज्यौं तिनुका धनसार तुही करि मनसुलपट ।। तन मन प्राण गुपाल नैन धन रूप रसालं । बंध्यौ रहत नित नित चरन हरि प्रीत हि जालं ।। सुभ ज्ञान ध्यान पूजन जुगति भगति भाव मन वच कियो । तिन बैर तीन कलिजुग मांहि सरबेसुर परचा दियौ ।।१४।। बेद स्मृति जे अंग बहुरि सासत्र सब गनिय । गनीय सबै पुरान सबै क्रम जुत नित भनिय ।। संध्या सुमरन मंत्र तंत्र जो कछु चलि आवै । लाल लडती रुंग सुजस हित सौं हिय छावै ॥ जग जीव जिते उद्धार को श्रीवृदावन अवतरे । बांके कृपाल गोपाल हरि प्रगट जगत अपने करे ।।१५।। * * * * * * * * * * 0000 Jain Education International H !!!! !! !! !! For Private !!!!!!! Personal use only ! !!!!!! !!!! ! ! www.jainelibrary.org !!!
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy