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________________ ८१२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय द्वादशांगों के नाम १. आचारांग, २. सूत्रकृतांग, ३. स्थानांग, ४. समवायांग, ५. भगवतीसूत्र,' ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७. उपासकदशा ८. अंतकृत्दशा, ६. अणुत्तरोपपातिक दशा, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाक श्रुत, १२. दृष्टिवाद' (विलुप्त है). द्वादश उपांगों के नाम [१] औपपातिक, [२] राजप्रश्नीय, [३] जीवाभिगम, [४] प्रज्ञापना, [५] सूर्य प्रज्ञप्ति, [६] चन्द्र प्रज्ञप्ति, [७] जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, [4] (निरयावलिका) कल्पिका, [६] कल्पावतंसिका, [१०] पुष्पिका, [११] पुष्प चूलिका, [१२] दृष्णि दशा. पाँच मूल सूत्रों के नाम [१] दशवकालिक, [२] उत्तराध्ययन, [३] नन्दीसूत्र, [४] अनुयोग द्वार सूत्र, [५] आवश्यक सूत्र. छह छेद सूत्रों के नाम [१] बृहत्कल्प, [२] व्यवहार, [३] दशाश्रुत स्कंध, [४] निशीथ, [५] महानिशीथ, [६] पंचकल्प. प्रकीर्णकों के नाम [१] चतुःशरण, [२] आतुर प्रत्याख्यान, [३] भक्त परिज्ञा, [४] संस्तारक, [५] तंदुल वैचारिक, [६] चंद्रवंध्यक [७] देवेन्द्रस्तव, [८] गणिविद्या, [६] महा प्रत्याख्यान, [१०] वीरस्तव, [११] अजीवकल्प, [१२] गच्छाचार [१३] मरणसमाधि, [१४] सिद्ध प्राभृत, [१५[ तीर्थोद्गार, [१६] आराधनापताका, [१७] द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, [१८] ज्योतिष करंडक, [१६] अंगविद्या, [२०] तिथि प्रकीर्णक, [२१] पिंड नियुक्ति, [२२] सारावली, [२३] पर्यन्ताराधना, [२४] जीवविभक्ति, [२५] कवच, [२६] योनि प्राभृत, [२७] अंगचूलिका, [२८] बंग चूलिका, [२६[ वृद्धचतु:शरण, [३०] जम्बूपयन्ना. नियुक्तियों के नाम १ आवश्यक, २ दशवकालिक, ३ उत्तराध्ययन, ४ आचारांग, ५ सूत्रकृतांग, ६ बृहत्कल्प, ७व्यवहार, ८ दशाश्रुतस्कंध, ६ कल्पसूत्र, १० पिण्ड, ११ ओघ १२ संसक्त.५ शेष सूत्रों के नाम १ कल्पसूत्र, २ यति-जीत कल्प, ३ श्राद्ध-जीत कल्प' ४ पाक्षिक सूत्र, ५ खामणा सूत्र, ६ वंदित्तु सूत्र, ७ ऋषिभाषित सूत्र. वर्गीकरण-नन्दीसूत्र में ८४ आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार है : कालिक ३७, उत्कालिक २६, अंग १२, दशा ५, आवश्यक १. वर्तमान में उपलब्ध ४५ आगमों के नाम : १. समवायांग-नन्दी सूत्र में भगवती सूत्र का 'वियाह' नाम दिया है. वियाह का संस्कृत 'व्याख्या' होता है, अनेक आगमों में 'जहा पण्णत्तीए' से भगवतो सूत्र का 'पन्नत्ति' यह संक्षिप्त नाम सूचित किया है. भगवती सूत्र का वास्तविक नाम 'वियाहपएणत्ति' है. टीकाकार इसका संस्कृत नाम 'व्यास्याप्रप्ति' देते हैं. 'भगवती सूत्र' यह नाम केवल महत्ता (पूज्यता) सूचक है, वास्तविक नहीं; किन्तु जनसाधारण में यही नाम अधिक प्रसिद्ध है. २. वर्तमान में दृष्टिवाद के विलुप्त होने पर उसके स्थान में विशेषावश्यक भाष्य का नाम मिलाकर ८४ संख्या की पूर्ति कर ली गई है. ३. नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार सूत्र को चूलिका सूत्र भी कहते हैं. ४. छठा छेद सूत्र 'पंचकल्प' इस समय विलुप्त है. ५. सूर्यप्राप्ति-नियुक्ति और ऋषिभाषित नियुक्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है. NAAD ININENENINEERINEETITINENEFINENavaad Jain Education International For Private Personal use only www.jamiiforary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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