SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 841
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८०६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय आधार मानकर यह चरितकाव्य रचा गया. इसके वर्णन, संवाद, दौत्यकर्म, प्रेमोनेक, युद्धवर्णन, प्रकृति-चित्रण, रससंयोजना, अलंकार-योजना आदि में उत्कृष्ट काव्य के तत्त्व विद्यमान हैं. चौदहवीं संधि में चित्रित जलक्रीड़ा और वसन्त वर्णन काव्य की अनूठी सम्पत्ति है. संधि के अंत में लिखा भी है-जल-क्रीड़ा में स्वयम्भू को, गोग्रह-कथा में चतुर्मुख को और मत्स्य-वेधन में 'भद्र' को आज भी कवि लोग नहीं पा सकते. महाकवि स्वयम्भू के पुत्र त्रिभुवन का यह कथन अक्षरश: सत्य प्रतीत होता है. समूचा वर्णन पढ़ कर चित्त खिल जाता है. कहा जाता है कि 'पउमचरिउ' की नब्बे संधियों में से अंतिम आठ त्रिभुवन की रचना की हैं. परन्तु पुलिन्दभट्ट की भांति उनकी रचना से काव्य-ग्रंथ में कोई भेद नहीं लक्षित होता. रिडणेमिचरिउ--यह भी स्वयम्भू की रचना है. इसमें ११२ संधियाँ है. इस ग्रंथ का प्रमाण १८००० श्लोक कहा जाता है. इसमें बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि या नेमिनाथ का चरित तथा जैन-परम्परानुसार कृष्ण और पाण्डवों की कथा वर्णित है. प्रसिद्ध है कि इस काव्य की निन्यानवे संधि के बाद का अंश स्वयम्भू के पुत्र त्रिभुवन की रचना है. इसी विषय को लेकर गोविन्द, भद्र और चतुर्मुख के अपभ्रश महाकाव्य प्रणयन का उल्लेख मिलता है. इन सभी रचनाओं का संबंध हरिवंशपुराण से है. जैन शास्त्रों में पद्मपुराण और 'हरिवंशपुराण' अत्यन्त ख्यातवृत्त हैं, जिनमें क्रमश: रामायण और महाभारत की मिलती-जुलती कथा प्राप्त होती है. हरिवंशपुराण का विषय लेकर लिखी जाने वाली रचनाओं में यशःकीति का ३४ संधियों का पौराणिक काव्य पाण्डुपुराण का उल्लेख मिलता है. इसका रचना-काल १५२३ ई० कहा गया है.' हरिवंशपुराण के आधार पर रची गई रचनायें अधिक हैं. धवल कवि का 'हरिवंशपुराण' ११२ सन्धियों का काव्य है, जिसका रचना-काल ग्यारहवीं सदी के पूर्व माना जाता है. रइधू (सिंहसेन) का 'रोमिणाह चरिउ' १६ वीं शताब्दी के लगभग की रचना है. इसी प्रकार श्रुतकीति का 'हरिवंश पुराण' १५५१ ई० का कहा गया है. लक्ष्मणदेव का 'रोमिणाह चरिउ' (संवत् १५१० से पूर्व) चार संधियों का है. हरिभद्र के 'रोमिणाह चरिउ' का भी उल्लेख प्राप्त होता है. इसी प्रकार अमरकीर्तिगणि के 'रोमिणाह चरिउ' का पता लगा है. यशःकीर्ति के हरिवंशपुराण का पता लगता है जो १५ वीं सदी की रचना है. इस परंपरा में अभी अन्य रचनाओं का पता लगाना शेष है. क्योंकि भारतीय परम्परा में रामायण और महाभारत की कथायें अत्यन्त लोकप्रिय तथा विविध रूपों में वर्णित हैं. 'पद्मपुराण' को आधार बनाकर लिखी जाने वाली रचनाओं में केवल रइधू के 'पद्मपुराण' का उल्लेख मिलता है. णायकुमारचरिउ-अपभ्रश के दूसरे महाकवि पुष्पदन्त हैं. उनका णायकुमारचरिउ एक रोमांटिक कथाकाव्य है. इसमें नागकुमार के जीवनचरित्र का वर्णन है. इसमें वर्णित घटनायें अतिरंजित और प्रेमोद्रेकपूर्ण हैं. कथा का प्रारम्भ स्वाभाविक विधि से हुआ है. भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है. पढ़ते ही रस-धारा बहने लगती है. रोमांटिक कथाकाव्य का यह उत्कृष्ट निदर्शन है. इसकी रचना संवत् १०२५ के लगभग कही जाती है. जसहरचरिउ--यह रचना भी पुष्पदन्त की है. इसे धार्मिक कथाकाव्य कहा जा सकता है. वस्तु-संयोजना में कसावट है. कथानक का विकास नाटकीय ढंग से होता है- समूचा कथानक धार्मिक, दार्शनिक उद्देश्यों से भरपूर है. आध्यात्मिक संकेत मिलने पर भी-रोमांटिक प्रवृत्ति जागरूक है. शैली उत्तम पुरुष में होने के कारण रचना में आत्मीय भाव अधिक है. प्रायः प्रबंधकाव्य की सभी साहित्यिक रूढ़ियाँ इस कथाकाव्य में दृष्टिगोचर होती हैं. कवि ने अपनी रचना को । धर्मकथानिबन्ध कहा है. कुल मिलाकर यह कथाकाव्य सुन्दर है. महापुराण - महाकवि पुष्पदन्त की यह तीसरी तथा सर्वोत्कृष्ट रचना है. इस बृहत्काय ग्रंथ में ६३ महापुरुषों के जीवनचरित्र का वर्णन है. इसका रचनाकाल सं० १०१६-१०२२ है. इस महापुराण में १०२ सन्धियाँ हैं. इसका प्रमाण १. देखिए- 'भारती' पत्रिका अक्टूबर २७, १६५७ में डा० हरिवल्लभ भायाणो का लेख 'स्वयम्भूदेव', पृ० ६२. २. नागरीप्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५०, अंक ३-४, सं० २००२, डा० हीरालाल जैन का लेख 'अपभ्रंश भाषा और साहित्य' पृ० ११६. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . " iiiiiiiii.. Jain Education interational . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ForPrivate &Personaruse only . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . " . . . . . . . . . . " . . . . . . . . . . www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy