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________________ नेमिचन्द्र शास्त्री : संस्कृत कोषसाहित्य को आचार्य हेम की अपूर्व देन : ७६५ चौदहवीं शताब्दी में मेदिनिकर ने अनेकार्थशब्दकोश, हरिहर के मन्त्री इरुपद दण्डाधिनाथ ने नानार्थ रत्नमाला और श्रीधरसेन ने विश्वलोचन कोश लिखा है. सत्रह्वीं शती में केशव दैवज्ञ ने कल्पद्रुम और अप्पय दीक्षित ने नामसंग्रहमाला एवं वेदांगराय ने पारसीप्रकाश कोश की रचना की है. इनके अतिरिक्त महिप का अनेकार्थतिलक, श्रीमल्लभट्ट का आख्यातचन्द्रिका, महादेव वेदान्ती का अनादिकोश, सौरभी का एकार्थनाममाला-द्वयक्षरनाममाला कोश, राघव कवि का कोशावतंस, भोज का नाममाला कोश, शाहजी का शब्दरत्नसमुच्चय, कर्णपूर का संस्कृत-पारसीकप्रकाश एवं शिवदत्त का विश्वकोश उपयोगी संस्कृत कोशग्रंथ हैं. प्राचार्य हेम का महत्व और उनकी ऐतिहासिक सामग्री-हेमचन्द्र के संस्कृतकोशग्रंथ साहित्य की अमूल्य निधि हैं. इनके ग्रन्थों में भाषा, विज्ञान, इतिहास, संस्कृति एवं साहित्य सम्बन्धी महत्वपूर्ण सामग्री संकलित है. अभिधानचिन्तामणि की स्वोपज्ञवृत्ति में इन्होंने अपने पूर्वकर्मी ५६ ग्रंथकारों और ३१ ग्रंथों का उल्लेख किया है. यथा : अमर [५५-१७ तथा २१]', अमरादि [२७६-२१,२६६-१४], अलंकारकृत् [११२-१३], आगमविद् [७०-१४], उत्पल [७४-१४] कात्य [५६-१०,६२-८] कामन्दकि [५५०।४], कालिदास [४१३-२,४४०-१६], कौटिल्य [७०-४,२६६-२], कौशिक [१६६- १३,१७०-२८] क्षीरस्वामी [३५०-६,४६१-१७[, गौड [३६-२६,५३-३], चाणक्य [३६४-५] चान्द्र [५२८-२५]दन्तिल[१२१-१२२,५६३-३], दुर्ग[५७-२८, १७४-२७],द्रमिल[१५१-७, २०६-२७], धनपाल[१-५,७६-२१], धन्वन्तरि [१६६-२८,२५६-७], नन्दी [५२-५३], नारद [३५७-१८, नैसक्त[१६४-१८, १८६-६], पदार्थविद्[२०८-२२], पालकाप्य [४६५-२७], पौराणिक [३७३-६] प्राच्य [२८-२६], बुद्धिसागर २४५-२५], बौद्ध [१०१-१७] भट्टतौत [२४-१७], भट्टि [५६३-२३], भरत [११७-६] भागुरि [६६-१४], भाष्कार [६६-२३], भोज [१५७-१७], मनु [६३-११], माघ [६२-१७], मुनि [१७१-१८] याज्ञवल्क्य [३३६-२] याज्ञिक [१०३-६] लौकिक [३७८-२३], वाग्भट [१६७-१], वाचस्पति [१-६], वासुकि [१-५], विश्वदत्त [४६-८], वैजयन्तीकार [१३१-२३], वैद्य [१६६-२८], व्याडि [१-५] शाब्दिक [४३-७], शाश्वत [६४-७], श्रीहर्ष [११८-७], श्रुतिज्ञ [३३२-२७], सभ्य [१३४-१], स्मार्त [२०९-२१०], हलायुध [१४४-१५] एवं हृद्य [४५३-२७]. इन ग्रंथकारों के अतिरिक्त अमरकोश [८-५], अमरटीका ४५-१३]. [अमरमाला [४४०-३२], अमरशेष [१५३-२०], अर्थशास्त्र [२६७-२५] धातुपारायण [१-११], भारत [३३८-१३], महाभारत [८१-२३], वामनपुराण [४६.२६], विष्णुपुराण [६६-१६], शाकटायन [२-१], एवं स्मृति [३५-२७] आदि ३१ ग्रंथों का भी उल्लेख किया है. जहां शब्दों के अर्थ में मतभेद उपस्थित होता है, वहाँ आचार्य हेम अन्य ग्रंथ तथा ग्रंथकारों के वचन उद्धृत कर उस मतभेद का स्पष्टीकरण करते हैं. फलतः प्रसंगवश अनेक ग्रंथ और ग्रंथकारों के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी की सामग्री वर्तमान है. विलुप्त कोशकार भागुरी और व्याडि के सम्बन्ध में अभिधान-चिन्तामणि से ही तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है. नवीन शब्दों का संकलन-अभिधानचिन्तामणि में इस प्रकार के शब्द प्रचुर परिमाण में आये हैं, जो अन्य कोशग्रंथों में नहीं मिलते. अमरकोश में सुन्दर के पर्यायवाची—सुन्दरम्, रुचिरम्, चारुः, सुषमम्, साधुः, शोभनम् , कान्तम्, मनोरमम्, रुच्यम्, मनोज्ञम्, मंजुः और मंजुलम् ये बारह शब्द आये हैं. हेम ने इसी सुन्दरम् के पर्यायवाची चारुः, हारि रुचिरम्, मनोहरम्. वल्गु., कान्तम् अभिरामम्, बन्धुरम्, वामम्, रुच्यम्, शुषमम्, शोभनम्, मंजुलम्, मंजुः, मनोरमम्, साधुः, रम्यम्, मनोरमम्, पेशलम्, हृद्यम्, काम्यम्, कमनीयम्, सौम्यम्, मधुरम् और प्रियम् ये २६ शब्द बतलाये हैं. इतना ही नहीं हेम ने अपनी वृत्ति में 'लडह' देशी शब्द को भी सौंदर्यवाची ग्रहण किया है. अमरकोश के साथ तुलना करते हुए कुछ शब्दों के पर्यायों का निर्देश किया जाता है. पाह. १. अभिधानचिन्तामणि के भावनगर संस्करण के पृष्ठ और पंक्ति निर्दिष्ट हैं. NIORAT R ICTUTTARUNATuiumu MAINALISHALIRAJAMANARDANAN OUDHARY TY CELEBRIDAMAUNIG RANDRA Lum MARAM KLA SAMUNDRANI HinduDYO UMIDITO Jain E ngla SHAary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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