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________________ ५४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय 828898280393015239298995303082439300 शब्द रूप रस गन्ध न जामें, नाय परस तप झांह रे प्राणी । तिमर उद्योत प्रभा कछु नाही, आतम अनुभब मांहि रे प्राणी । श्री. सुख दुःख जीवन मरन अवस्था, ए दस प्राण संगात रे प्राणी । इनथी भिन्न 'विनयचन्द' रहिये, ज्यों जलमें जल जातरे प्राणी । श्री. ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे, और न चाहुँ रे कंत, रीझयो साहेब संग न परिहरे रे, भांगे सादि अनंत रे-ऋषभ. प्रीतसगाई रे जगमा सहु करे रे, प्रीतसगाई न कोय, प्रीतसगाई रे निरुपाधिक कही रे, सोपाधिक धन खोय-ऋपभ. कोई कंत कारण काष्ट भक्षण करे रे, मलशु कंतने धाय, ए मेलो नवि कइये संभवे रे, भेलो ठाम न ठाय---ऋषभ० कोई पतिजन अति घणो ता करे रे, पतिर जन तन ताप, ए पतिर जन में नवि चित धरयु रे. जिन धातु मेलाप-ऋषभ. कोई कहे लीला रे अलख अलखतणी रे, लख पूरे मन श्राश, ___ दोषरहितने लीला नवि घटे रे, लीला दोष विलास-ऋषभ. चितप्रसन्ने रे पूजन-फल का रे, पूजा अखंडित एह, कपट रहित थइ यातम अरपणा रे,'श्रानन्दधन'पद-रेह--ऋषभ. [ राग-प्राशावरी] पंथड़ो निहालु रे बीजा जिनतणो रे, अजित अजित गुणधाम, जे तें जीत्या रे, ते मुझ जीतियो रे पुरुष किश्यु मुज नाम ?-पंथडो० चरमनयण करी मारग जोवतां रे, भुल्यो सयल संसार, जे नयणे करी मारग जोइए रे, नयण ते दिव्य विचार—पंथडो० पुरुष परम्पर अनुभव जोवतां रे, अंधोअंध पुलाय, वस्तु विचारे रे जो आगमें करी रे, चरण धरण नहीं ठाय-पंथडो. तर्क विचारे रे वाद परम्परा रे, पार न पहोंचे कोय । अभिमत वस्तु रे वस्तुगते कहे रे, ते विरला जग जोय-पंथड़ो. वस्तु विचार रे दिव्य नयणतणो रे, विरह पड्यो निरधार, तरतम जोगे रे तरतम वासना रे, बासित बोध आधार-पंथड़ो. काल-लब्धि लही पंथ निहालशु रे, ए आशा अवलन्ब, ए जन जीवे रे जिन जी जाणजो रे, 'अानन्दघन' मत अंब-पंथड़ो. पार, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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