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________________ पं० अंबालाल प्रेमचन्द शाह : जैनशास्त्र और मंत्रविद्या : ७७७ ४. ओं णमो उवज्झायाणं ह्रौं नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा । ५. ओ" णमो लोए सव्वसाहूणं ह्रः पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । इस प्रकार अंगन्यास करके पंचांग रक्षा करनी चाहिये अथवा 'क्षिप स्वाहा' इन बीजाक्षरों से मस्तक, मुख, हृदय, नाभि और पाँव अंगों में सुलटे-उलटे क्रम से न्यास करने से पंचांग रक्षा होती है. ५. उपचार-सकली क्रिया करने के बाद पंचोपचार पूजा के यन्त्र के अधिष्ठाता देव की पूजा नीचे बताई हुई विधि से करनी चाहिए. वे पांच उपचार ये हैं-१ आह्वान, २ स्थापन, ३ संनिधीकरण, ४ पूजन, ५ विसर्जन मुद्रापूर्वक करना चाहिए. उनके मंत्र इस प्रकार हैं १. ओं ह्रीं नमोऽस्तु' ... एहि एहि संवौषट् । (आह्वान) २. ओं ह्रीं नमोऽस्तु .......तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापन) ३. ओ ह्रीं नमोऽस्तु मम संनिहिता भव भव वषट् । (संनिधीकरण) ४. ओं ह्रीं नमोऽस्तु ..." गन्धादीन् गृहाण गृहाण नमः । (अष्ट द्रव्यों से पूजन) ५. ओं ह्रीं नमोऽस्तु... स्वस्थानं गच्छ जः ज: (विसर्जन) आह्वान पूरक प्राणायाम से; स्थापन, संनिधीकरण और पूजन ये तीन कुभक प्राणायाम से और विसर्जन रेचक प्राणायाम से करना चाहिये. अंत में इस प्रकार बोलना चाहिये-- आह्वानं नैव जानामि न च जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि प्रसीद परमेश्वर ! ।। "आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मन्त्रहीनं च यत् कृतम् । क्षमस्व देव ! तत् सर्व प्रसीद परमेश्वर ! ।।" ६. जप-सामान्य रीति से मंत्र के जाप की संख्या १०८ अथवा १००८ मानी गई है. जप के भी तीन प्रकार हैं-(१) मानस जप, (२) उपांशुजप और (३) वाचिकजप. सब मन्त्र मानस जप-मन में जिह्वा से धीरे से शुद्ध बोलना चाहिये. जाप से मंत्र अपनी शक्ति प्राप्त करता है और मन्त्र-चैतन्य स्फुरित होता है, और होम व पूजा आदि से मन्त्र का स्वामी तृप्त होता है. ७. होम-एक तो स्वयं अग्नि और उसमें यदि पवन की सहायता मिले तो वह क्या नहीं कर सकता. इस प्रकार मन्त्रजाप के पश्चात् होम करने से यथेष्ट फल प्राप्त हो सकता है. जाप के समय मंत्र के अन्त में कर्मानुसार पल्लवों का उपयोग होता है, क्योंकि मंत्रों का निवास ही पल्लव में होता है. जाप के समय मंत्र के अन्त में 'नमः' पल्लव और होम के समय 'स्वाहा' पल्लव लगाना चाहिए. मूल मंत्र की जापसंख्या से दशवें भाग का जाप होम के समय में करना चाहिए अर्थात् एक हजार जाप को होम के साथ करें तब १०० संख्या का जाप करना चाहिए. सामान्य जाप पूरा होते ही होम करना चाहिए. होमविधि-होमकुंड तीन प्रकार के होते है—१. चतुष्कोण, २. त्रिकोण, ३. गोल. १. चतुष्कोण-शांति, पौष्टिक, स्तंभन आदि कर्म में. २. त्रिकोण-मारण, आकर्षण कर्म में. १. इस रिक्त जगह में जिन देवता की आराधना करनी हो उन देवता का नाम बोलना चाहिये. जैसे पद्मावती की आराधना करनी हो तो "भगवति पद्मावति देवि!" * * * * * * * * * * * * * * For Private & Personal Use Only Jain Education International . . . . . . . . . . www.jaineliterary.org . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . HN A M A .
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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