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________________ मदीयम् प्रस्तुत स्मृति-ग्रंथ अध्येताओं के कर-कमलों में है. ग्रंथ कैसा है, इसका निर्णय तो स्वयं अध्येता ही करेंगे, परन्तु मुझे जो कहना है वह यह हैवि० सं० २०१८ की चैत्र कृष्णा दशमी की रात्रि में पूज्य गुरुदेव श्रीहजारीमलजी महाराज का स्वर्गवास नौखा (मारवाड़ ) में हुआ था. उस समय मेरे स्वान्त में एक संकल्प आया कि स्वर्गीय गुरुदेव की स्मृति में एक महत्त्वपूर्ण स्मृति-ग्रंथ के निर्माण की योजना बनाई जाय. मैंने अपना संकल्प परम श्रद्धेय पूज्यवर श्रीब्रजलालजी महाराज की सेवा में रक्खा. उनकी ओर से इसके लिए पूरा प्रोत्साहन मिला. मेरा यह विचार गुरुदेव के परम श्रद्धालु धर्मप्रेमी सेठ खींवराज जी चोरडिया को भी रुचिकर लगा. स्वयं सेठजी स्वर्गीय गुरुदेव की स्मृति में एक ट्रस्ट की स्थापना करना चाहते थे. इस सम्बन्ध में मंत्रणा करने और योजना बनाने के लिए उन्होंने अपने ग्राम नौखा में एक सभा का आयोजन किया, उक्त सभा में ट्रस्ट सम्बन्धी विचारणा के साथ-साथ स्मृति-ग्रंथ के निर्माण के विषय में भी विचार-विनिमय किया गया, श्रीयुत चोरडियाजी की ओर से तथा सभा में सम्मिलित सभी सज्जनों की ओर से स्मृति-ग्रन्थ के निर्माण के लिए पर्याप्त बल दिया गया. उक्त सभा में श्रीयुत पंडित शोभाचन्द्रजी भारिल्ल भी आये हुए थे. उनसे यह सादर अनुरोध किया गया कि आपके नेतृत्व में स्मृति-ग्रंथ का सम्पादन होना चाहिए और आप एक सम्पादक-परिवार का गठन कर इस कार्य में जुट जांय. पूज्य गुरुदेव का प्रथम स्मृति-दिवस ब्यावर में मनाया गया उस अवसर पर स्मृति-ग्रंथ की योजना को कार्यान्वित करने के लिए एक स्मृति-ग्रंथ प्रकाशन समिति का गठन किया गया. ब्यावर नगरपालिका के अध्यक्ष श्रीयुत चिम्मनसिंह जी लोढ़ा समिति के व्यवस्थापक चुने गए. समिति का कार्यालय ब्यावर में रखा गया और कार्य प्रारम्भ किया. समिति के निर्णय के अनुसार श्रीयुत भारिल्लजी प्रधान सम्पादक बने उन्होंने एक सम्पादक परिवार भी बनाया. अपने परिवार के सहयोग से पण्डित जी का यह सम्पादन पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हुआ. श्रीभारिल्लजी जैन समाज के एक मान्य मनीषी विद्वान् हैं. प्रस्तुत ग्रन्थ में पण्डित जी की मनीषिता का अच्छा परिचय यत्र-तत्र सर्वत्र मिल रहा है. कुमार सत्यदर्शीजी एक उत्साही नवयुवक लेखक हैं लेखन में उनकी नव्या भव्या प्रगति है. इस ग्रंथ में जो उत्तम कलाकौशल व साज-सज्जा दृग्गत हो रही है, इसका श्रेय आपको ही है. स्मृति-ग्रंथ का कार्य श्रम-साध्य था, अतः इसके पीछे पूरा श्रम किया. 'श्रेय सफलता' इस बात का यह ग्रंथ एक उज्ज्वल उदाहरण है. भारत के तथा अन्य देशों के अधिकारी लेखकों का सहयोग इस ग्रंथ को खूब मिला है. उसी सहयोग का यह सुफल है है कि इस ग्रंथ ने स्मृति-ग्रंथों में अपना एक विशिष्ट रूप प्राप्त किया है. मैं तो अकिंचन हूं. फिर भी अगर मेरा किंचिदपि सहयोग इस ग्रंथराज को मिला है तो मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझता हूं. प्रायः जैनधर्म और जैनदर्शन एवं संस्कृति से सम्मत निबन्धों का चयन ही अधिकृत रूप से इस ग्रंथ में किया गया है. जैनदर्शन के प्रायः सभी विषयों के निबन्धों के संकलन का प्रयास रहा है. फिर भी व्यापक दृष्टि का परित्याग नहीं किया गया है. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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