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________________ महावीर कोटिया : जैन कृष्ण-साहित्य : ७६७ पुरुषों का वर्णन हुआ है. ६ प्रतिवासुदेवों को अलग न गिनकर वासुदेवों के साथ ही गिन लिया गया है. इस रचना का समय ई० सन् ८६८ बताया जाता है.' [३] भव-भावना-इसके कर्ता मलधारि हेमचन्द्र सूरि कहे गये हैं. इन्होंने वि० सं० ११७० (सन् १२२३) में उक्त ग्रन्थ की रचना की.२ कृति में १२ भावनाओं का वर्णन है. कुल ५३१ गाथाएँ हैं. हरिवंश कुल का विस्तार से वर्णन हुआ है. कंस का वृत्तान्त, वसुदेवचरित, देवकी से वसुदेव जी का विवाह, कृष्ण-जन्म, कंसवध, नेमिनाथ-चरित आदि का सुन्दर वर्णन हुआ है. यह प्रकाशित रचना है. इन्हीं कवि की एक अन्य कृति 'उपदेशमालाप्रकरण' है. इसमें जैन-तत्त्वोपदेश से सम्बन्धित कितनी ही धार्मिक व लौकिक कथाएँ दी हुई हैं. तपद्वार में वसुदेव-चरित का वर्णन हुआ है. यह भी प्रकाशित रचना है. [४] कुमारपाल-पडिबोह-इस कृति के रचयिता सोमप्रभ सूरि, आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य थे. इसकी रचना वि० सं० १२४१ में हुई. इस कृति में उन शिक्षाओं का संग्रह है जो समय-समय पर आचार्य ने गुजरात के चालुक्यवंशी राजा कुमारपाल को दी. दृष्टान्त रूप में ५४ कथाएँ भी दी गई हैं. इस क्रम में मद्यपान के दुर्गुण बताते हुये द्वारिकादहन की कथा तथा तप का महत्त्व बतलाते हुये रुक्मिणी की कथा आई है.. [५] कण्हचरियं—प्रस्तुत कृति में जैन-पुराणों में वणित कृष्ण-कथा को ही प्रस्तुत किया गया है. रचयिता तपागच्छीय देवेन्द्र सूरि हैं, जिन्हें जगच्चन्द्रसूरि का शिष्य बताया गया है. देवेन्द्र सूरि का स्वर्गवास सन् १२७० में हुआ.३ कृति के मुख्य विषय इस प्रकार हैं-वसुदेवचरित, कंस की जन्मकथा, कृष्ण-बलदेव के पूर्व भव, कृष्ण-जन्म, नेमिनाथ जी के पूर्व भव व उनका जन्म, कंसवध, द्वारिका नगरी का निर्माण, कृष्ण की अग्रमहिषियों का वर्णन, प्रद्युम्न-जन्म, पाण्डवों का वर्णन, जरासन्ध से श्रीकृष्ण का युद्ध, श्रीकृष्ण की विजय, नेमिनाथ-राजुल का कथानक, द्रौपदीहरण व श्रीकृष्ण का उसे वापिस लौटा लाना, गजसुकुमारचरित, थावच्चापुत्र का वृत्तान्त, यादवों की दीक्षा, द्वारिका-दहन, बलराम व कृष्ण का द्वारिका से प्रस्थान, श्रीकृष्ण की मृत्यु, बलदेव जी का विलाप व दीक्षा, पाण्डवों की दीक्षा व नेमिनाथ का निर्वाण आदि. प्राकृत की उक्त कृतियों के अतिरिक्त आगमों के व्याख्या-साहित्य तथा कथा-संग्रहों में, यथा-कथाकोषप्रकरण, कथारत्नकोष, आख्यानमणिकोष आदि में भी कृष्ण-कथा के विभिन्न प्रसंग यत्र-तत्र वणित हुए हैं. संस्कृत का जैन-कृष्ण-साहित्य :-जनों का संस्कृत साहित्य विक्रम की प्रथम शताब्दी से ही उपलब्ध है. चरितसाहित्य की दृष्टि से संस्कृतभाषा का प्रथम ग्रन्थ रविषेणाचार्य कृत पद्मपुराण है. इसकी रचना सन् ६७६ में हुई. इसमें राम की कथा वणित है. कष्ण-कथा की दृष्टि से प्रथम कृति हरिवंशपुराण है. (१) हरिवंशपुराण :-जैन-साहित्य में इस ग्रन्थ का एक विशिष्ट स्थान रहा है. यह एक विशाल ग्रन्थ है. ६६ सर्गों में विभक्त १२ हजार श्लोक परिमित है. ग्रन्थ का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय तीर्थकर नेमिनाथ का वंश हरिवंश है. ग्रन्थ के १८ वें सर्ग से लेकर ६३ वें सर्ग तक यादव कुल तथा श्रीकृष्ण का चरित वर्णन किया गया है. ग्रन्थ का रचनाकाल विक्रम की नवमी शताब्दी का मध्य भाग है. यह ग्रन्थ शक संवत् ७०५ (वि० संवत् ८४०) में १. प्राकृत और उसका साहित्य-डा0 हरदेव बाहरी. २. प्राकृत सा० का इतिहास-डा० जगदीशचन्द्र जैन पृ० ५०५. ३. वही पृ० ५६१. ४. जिनसेनकृत हरिवंशपुराण की भूमिका नाथूराम प्रेमी पृ०३. V mIND KARRAON ENANININवाजाINENININANINININNINyorg
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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